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राम चरन भाग सौ

Ram charan

आज इतवार था। फिर भी राम चरन की नींद जल्दी खुल गई थी। सुंदरी ने तो ग्यारह बजे तक सोना था। भाभी जी की पूजा की जलती अगर बत्तियों की महक आ रही थी। राम चरन को याद था कि उसे आज राम लीला मैदान जाना था। क्रांति वीरों का हिंदू राष्ट्र स्थापित करने का उद्घोष होना था। पूरे हिन्दुस्तान के युवा आ रहे थे।

हिन्दू राष्ट्र बने या खलीफात कायम हो – राम चरन आज इन दोनों प्रश्नों से परे था।

आज पहली बार था, न जाने कितने अंतराल के बाद उसके होंठों पर प्रेम गीत – आई लव यू डार्लिंग – थिरक रहा था। ये गीत कभी वो सलमा को पाने की खातिर गाया करता था। लेकिन आज .. संघमित्रा का सुलगता सौंदर्य उसके मन प्राण पर छा सा गया था।

कार में बड़े थरमस में कॉफी थी और सैंडविच खूब सारे ले लिए थे। वह बइनाक्यूलर लेना न भूला था। संघमित्रा को दूर से देखते रहने का ही अवसर मिलना था – वह जानता था।

राम लीला मैदान में पहले जा कर राम चरन उसके सारे आसपास को देख लेना चाहता था और समय से पहले कार पार्क कर लेना चाहता था। सुबह का वक्त था। भीड़ भाड़ ज्यादा न थी। क्रांति वीरों ने तो अभी आना ही था। अतः उसने राम लीला मैदान का सारा आस पास छान मारा था।

तुर्कमान गेट से लेकर वो मीलों तक डोल आया था। उसने महसूसा था कि राम लीला से बड़ी तो मुगल लीला वहां पहले से ही मौजूद थी। इन क्रांति वीरों और कर्म वीरों के बस का नहीं था कि ये किसी भी सूरत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर लेते। हां! खलीफात कायम करने का चांस तो था।

राम चरन ने पीपल के पेड़ के नीचे बगल में दीवार को ले कर कार को बड़ी चतुराई से पार्क किया था। गरमा गरम कॉफी की चुस्कियां लेते-लेते उसने सबसे पहले बाइनाक्यूलर से राम लीला मैदान में लगे कट आउटों को देखा था।

“संघमित्रा ..!” पहचानते ही राम चरन प्रसन्नता से उछल पड़ा था। तिरंगे की साड़ी पहने, दाहिने हाथ मे त्रिशूल लिए और बांएं हाथ को शेर के सर पर रख कर खड़ी संघमित्रा वास्तव में ही कोई महान शक्ति जैसी लगी थी राम चरन को। एक बारगी तो वो डर गया था। “आई लव यू!” तनिक होश लौटा था तो उसने संघमित्रा के कट आउट को फ्लाइंग किस दिया था।

देखते-देखते सभा जुड़ गई थी। देश की युवा शक्ति पहली बार सामने आई थी।

क्रांति वीरों और कर्मवीरों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए थे। सभी ने भारत भूमि से उन आए आक्रमणकारियों को बाहर भगाने की बात की थी और मातृ भूमि को फिर से गंगा जल से धो कर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का व्रत लिया था। लेकिन राम चरन को इनकी बातों में कोई दम न दिखा था।

सुमेद ने कहा था – हमें सर्व प्रथम अपने न्यायालयों और विद्यालयों को बदलना होगा। सुमेद की बात वाजिब थी। भारत में भारत का सा तो कुछ दिखता ही नहीं था। राम लीला मैदान से पुराना तो बगल में खड़ा तुर्कमान गेट ही था।

संघमित्रा बोली थी तो राम चरन अभिभूत हो गया था। पहली बार ही था कि उसने विदुषी महिला के प्रवचन सुने थे। संघमित्रा का ये कहना कि औरत ने अपना स्तर गिरा कर महज एक सेक्स डौल का रोल पकड़ लिया है और कपड़े उतार कर बाजार में आ खड़ी हुई है। हमारी नारियां सती नारियां थीं – सीता थीं – गार्गी थीं – और मैत्रेयी थी। हमें इस बाजारू लव जिहाद, लव मैरिज और शादी से पूर्व साहचर्य से निजात पानी होगी। अपनी पवित्रता खोने के बाद नारी के पास बचता ही क्या है? हमें हिन्दू राष्ट्र की संरचना में परम पूज्य नारियों की आवश्यकता है।

जम कर तालियां बजी थीं। संघमित्रा का कद उठ कर आसमान छू गया था।

“क्या तुम छू पाओगे इसे – राम चरन?” कार में बैठे-बैठे ही राम चरन के दिमाग में प्रश्न पैदा हुआ था। “इस्लाम ने तो नारी को बुरके में बंद कर दिया है। सेक्स डौल से लेकर .. राम चरन को पहली बार असमंजस हुआ था। इस्लाम में नारी का स्थान कुछ था ही नहीं।

पहली बार ही था कि राम चरन के सामने सनातन और शहरियत दोनों साथ-साथ आ खड़े हुए थे। किसे चुने राम चरन – उसकी समझ में ही न आ रहा था।

राम चरन तो बाइनाक्यूलर पर दिखाई देती संघमित्रा के अंग विन्यास देखने में ही मगन हो गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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