शगुफ्ता सोलंकी के लिए मुनीर खान जलाल एक कटी पतंग था।
वह उसके बारे में उससे ज्यादा जानती थी। वह जानती थी कि सलमा मर चुकी थी और सुंदरी उसकी पत्नी नहीं एक प्लॉय थी। उसे पूरा-पूरा अनुमान था कि इस मिशन के पूरे होते ही मुनीर सत्ता के वो सोपान चढ़ेगा जिसका कोई हिसाब नहीं था। वह बेहद होशियार और पढ़ी लिखी औरत थी। उसे अब हर कीमत पर मुनीर खान जलाल को पा लेना था।
“आज रात बिस्तर में आ घुसेगी – शगुफ्ता सोलंकी!” मुनीर के दिल दिमाग ने उसे बताया था। “बच सको तो बचो!” एक चेतावनी उसे मिली थी।
और वह उस रात बिस्तर में न जाकर बाहर चौड़े में टहलने निकल गया था।
चांदनी रात थी। खुले समुंदर के ऊपर चांद आ बैठा था। समुंदर की लहरें लगातार किनारे से आ आकर टकरा रही थीं। उसका मन प्राण प्रफुल्लित हो आया था।
“आओ दोस्त!” अचानक सागर ने उसे पहचान लिया था और स्वागत में आ खड़ा हुआ था।
वह भी उसे कहां भूला था। 1971 की 4 दिसंबर की वो रात, वो कैसे भूल सकता था? घोर संग्राम चल रहा था। वह पाकिस्तान के नेवल वॉर शिप बाबर का कमांडिंग ऑफीसर था। बाबर पाकिस्तान का शक्ति स्तंभ माना जाता था और वो बंबई पर हमला करने की तैयारियों में जुटे थे। सब प्रसन्न थे, वो इस बार बंबई को लूटेंगे और ..
तभी इंडिया की नेवी ने कराची पर आक्रमण कर दिया था।
भयंकर आक्रमण हुआ था। तीन ओर से हमला आया था। बाबर को उसने पहले ही मेन अप्रोच पर तैनात किया हुआ था। बाबर के ऊपर अचानक कहर टूटा था लेकिन वो सब जी जान लगा कर मुकाबले में डटे थे। अचानक शिप में आग भड़क उठी थी। उसने स्थिति को संभालने की भरसक कोशिश की थी। लेकिन ..
हमारे सेलर बोट ले लेकर खुले समुद्र में भागे जा रहे थे। बाबर जल रहा था। लेकिन वह बाबर के डेक पर अकेला डटा था। वह मुकाबला करता ही रहा था। तभी एक धरती दहलाने वाली आवाज आई थी और बाबर ..
छत्तीस घंटों के बाद उसे होश आया था, तो वह अस्पताल में था।
उसे बहादुरी के लिए हलाले जुर्रत से नवाजा गया था। नौ माह बाद वह घर लौट रहा था। सलमा और दोनों बेटे बेहद प्रसन्न थे। घर पर मिलने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। घर का फोन बजता ही रहा था। एक उत्सव जैसा था जो बिन मांगे मनाया जा रहा था। चर्चा थी – उसकी बहादुरी की चारों ओर चर्चा थी।
“इनाम नहीं दोगी?” एकांत में जब वो और सलमा मिले थे तो उसने मांग की थी।
“क्यों नहीं!” सलमा चहकी थी। “तन, मन और मेरा रोम-रोम तुम्हारा है मुनीर!” वह कहती रही थी। “लेकिन .. लेकिन लंदन चलते हैं! सुकून मिलेगा तो सेलीब्रेट करेंगे।” सलमा का सुझाव था जिसे उसने फॉरन स्वीकार कर लिया था।
लंदन की वो रातें .. वो दिन .. वो पल छिन बेजोड़ थे। सलमा ने उसे जो सोंपा था वह तो कोई स्वर्ग था। एक-एक गरम सांस .. एक-एक संवाद और एक-एक स्पर्श उसे आज तक याद था।
“हैलो!” हवाई जहाज में लौटते वक्त अचानक नसीर नारंग सामने आया था। वह भी उसी फ्लाइट से पाकिस्तान लौट रहा था। “कांग्रेट्स!” उसने उसे हलाले जुर्रत की बधाई दी थी।
“कहां हो?” उसने संयत स्वर में सवाल पूछा था। वैसे तो वो अंदर से जल भुन कर राख हो गया था।
“जोजीला ब्रिगेड मिला है।” नसीर नारंग ने बताया था। “तुम कहां हो?” उसने भी पूछ लिया था।
“शायद हैड क्वाटर चला आऊं!”
“क्यों नहीं!” नसीर गहक कर बोला था। उसने चोर निगाहों से सलमा को देख लिया था। “यू डिजर्व इट!”
नसीर नारंग अभी तक कुंवारा था। उसने शादी नहीं की थी। सलमा न जाने क्यों अब आंखें चुरा रही थी। उसे आज पहली बार सलमा पर शक हुआ था। नसीर नारंग के हाव भाव से उसे लगता रहा था कि उनके बीच कुछ काला पीला था। पहली बार ही था कि वह दोनों जिगरी यारों की तरह बांहें पसार-पसार कर न मिले थे। वो दोनों अलग-अलग खड़े थे।
सलमा का दोहरा चरित्र उसने उस दिन देख लिया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड