कुंवर खम्मन सिंह ढोलू ने महसूसा था कि आज हिंदू राष्ट्र का राजा छोटूमल ढोलू का सपना फिर से लौट कर देश के द्वार पर आ खड़ा हुआ था।
“इट्स कम्यूनल!” नेहरू ने चीखते हुए राजा छोटूमल ढोलू को ललकारा था। “हिन्दू राष्ट्र से मतलब ..?” वह प्रश्न पूछ रहे थे। “यू मीन सिर्फ हिन्दुओं का होगा भारत देश?” नेहरू जी पूछ रहे थे। “कमऑन राजा साहब! आप इतने छोटे विचार को लेकर महान भारत का निर्माण करेंगे, मैं सोच भी नहीं सकता!”
“देश हाथ से निकल जाएगा, पंडित जी!” राजा छोटूमल ढोलू ने चेतावनी दी थी। “मुस्लिम लीग की तैयारियां अलग हैं!”
“नॉनसेंस!” कहते हुए पंडित नेहरू सभा में से उठ कर चले गए थे।
धर्म निरपेक्ष देश बनाने की चाल में फंसा भारत आज तक भटकता रहा है। लेकिन आज – अब वक्त का इशारा है! जागो – सवेरा हो चुका है। देखो, बाहर प्रकाश फैल रहा है। निकलो तो बाहर ..
कुंवर खम्मन सिंह ढोलू का मन आज बेहद प्रसन्न था।
“ईश्वर ने चाहा तो राजा साहब का सपना साकार करके ही दम लूंगा!” कुंवर साहब ने मन ही मन प्रतिज्ञा की थी। “कांग्रेस के मंत्र – फूट डालो राज करो का अब अंत आएगा। अब जन मानस की समझ बढ़ी है। इस्लाम के बढ़ते खतरे से आज भारत ही नहीं पूरे विश्व का भविष्य खबरदार होकर खड़ा हो गया है। यह सांप सभी को डसेगा – अब हर कोई मान रहा है।” कुंवर साहब के पास इसके ठोस प्रमाण भी थे।
फिर भी विरोध तो था। विरोधी पार्टियों के पास एक घटिया सोच था। लालच ने जैसे देश की नाव डुबोने की जिद ठान ली थी। भ्रष्टाचार चर्म पर था। पार्टियां घोर स्वार्थी हो चुकी थीं। आदमी एक बीड़ी पर बिक रहा था। वोट एक व्यापार बन चुका था। कुंवर साहब को एहसास था कि उन्हें राजा छोटूमल ढोलू से भी ज्यादा बड़ा संघर्ष करना होगा। लेकिन आज वो हर कीमत अदा करने को तैयार थे।
“आप कृषि मंत्री बनेंगे!” इंद्राणी ने उन्हें सूचना दी थी।
कुंवर साहब चौंके थे। रानी साहिबा तो घर में बीमार पड़ी थीं। फिर उन्हें ये सूचना कैसे मिली?
“ये तो राजा साहब का सपना था।” कुंवर साहब ने रानी साहिबा को बताया था। “तुम खुश तो हो?”
“हां! मैं बहुत खुश हूँ। किसानों के लिए कुछ ऐसा करना कुंवर साहब .. जो ..”
“वही जो राजा साहब करना चाहते थे?”
“हां!” इंद्राणी ने प्रसन्न होकर हामी भरी थी। “हमारी तो कोई संतान है नहीं!” इंद्राणी ने गंभीर होते हुए कहा था। “अब हम इन्हीं को अपनी संतानें मानेंगे! किसान मजदूर ही हमारे बेटी बेटे होंगे! मह शेष जीवन ..” कहते कहते रानी साहिबा रुक गई थीं। “लेकिन ..” कुछ सोच कर वह कुछ और कहना चाहती थीं।
“लेकिन ..?” कुंवर साहब ने उन्हें पूछ ही लिया था।
“कुछ नहीं!” इंद्राणी ने अपने मनोभाव छुपा लिए थे।
इंद्राणी ने अच्छा नहीं समझा था कि कुंवर साहब को इस मुबारक मौके पर सूचना देतीं कि सुंदरी राम चरन के साथ मिल कर गुल छर्रे उड़ा रही थी। वह जानती थी कि इस सूचना का कुंवर साहब पर कैसा भी असर हो सकता था। शपथ समारोह के बाद वह अच्छे मूड में हल्के से बात करेगी। तब दोनों शांति पूर्वक बैठ कर कोई समाधान खोज लेंगे।
इंद्राणी का दबंग भाई जन्मेजय भी दिल्ली पहुंच गया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड