नयन विस्फरित राम चरन शाम को भी मंदिर में उन्हीं स्वयं सेवकों की भीड़ को भरते देख रहा था। अब वो यूनिफोर्म में नहीं थे। उतने डरावने नहीं लगे थे। सहज थे। हंस खेल रहे थे। पंडित कमल किशोर से संवादों में उलझे थे। प्रश्न ही प्रश्न थे उनके पास। राम चरन ने पंडित कमल किशोर की प्रसन्नता को आश्चर्य चकित आंखों से पढ़ा था।
“इत्ता प्राचीन ढोलू शिव का ये आलीशान मंदिर किसी आक्रमणकारी ने क्यों नहीं तोड़ा?” एक स्वयं सेवक आम प्रश्न पूछ रहा था। “यहां – दिल्ली में ये ढोलू शिव तो बिलकुल साबुत बैठे हैं!” वह हंसा था।
अन्य स्वयं सेवक भी खुल खिल कर हंसे थे। पंडित कमल किशोर ही थे जिनका चेहरा मलिन हुआ लगा था।
“कैसे बचे ढोलू शिव पंडित जी?” एक सामूहिक प्रश्न पंडित जी के पास फिर पहुँचा था।
अब सभी दर्शनार्थियों की निगाहें पंडित कमल किशोर पर जा टिकी थीं।
“ढोलू शिव जागृत शिव हैं।” पंडित कमल किशोर बताने लगे थे। “कहते हैं कि सिकंदर लोधी ने तो तोड़ने के आदेश कर दिए थे!” उन्होंने जमा लोगों को आंखें भर-भर कर देखा था। “बड़ा जालिम था – सिकंदर लोधी। उसने हिन्दू पुजारियों, दार्शनिकों और धर्म गुरुओं को जिंदा जलवाया था।” पंडित जी ने रुक कर लोगों के चेहरे पढ़े थे। “हिन्दुओं का वो सबसे बुरा वक्त था। किसानों की खड़ी फसलें लूट ली जाती थीं। कभी भी किसी भी घर में ..” ठहर गए थे पंडित जी।
“विरोध ..? मेरा मतलब कि हिन्दू ..?”
“नहीं! यों तो कोई विरोध ..”
“फिर ढोलू शिव कैसे बचे?” प्रश्न वहीं आ कर ठहर गया था।
“सिकंदर लोधी अचानक बीमार पड़ गया था।” पंडित जी बताने लगे थे। “अकाल पड़ा था – दिल्ली में। वर्षा नहीं हुई। शाही फौजें भूखी मरने लगीं। सैनिक घोड़ों को काट-काट कर खा रहे थे। हाथी भूखे मर रहे थे। पानी तक न था।” पंडित जी फिर चुप हो गए थे।
“तो फिर बचे कैसे पंडित जी?”
“ढोलू शिव के पुजारी की शरण में आया था, सिकंदर लोधी! जान भी बची और अकाल भी गया!” पंडित जी तनिक विहंसे थे।
एक चुप्पी छा गई थी स्वयं सेवकों के बीच में।
“हमारी यही कमजोरी है!” कोई कह रहा था। “हम दुश्मन को भी मरने से बचा लेते हैं!”
राम चरन ने उस व्यक्ति को बड़े गौर से देखा था।
“उसके बाद तो ढोलू शिव को औरंगजेब ने भी नहीं छूआ!” पंडित जी ने सूचना दी थी। “आज भी .. इनके दर्शन पा कर दीन दुखी पार हो जाते हैं।”
राम चरन ने चोरी से, चुपके से और आहिस्ता-आहिस्ता दोनों हाथ जोड़े थे और मन ही मन ढोलू शिव से प्रार्थना की थी और कुछ मांगा था उसने। प्रार्थना के बाद उसका चेहरा सहज हो आया था। पंडित कमल किशोर ने राम चरन की ये चोरी पकड़ ली थी।
“कुछ खास नहीं आया आज!” राम चरन पंडित जी को रिक्शे में बिठा माल टाल पकड़ा रहा था। “भूखे नंगे लगते हैं ये लोग!” राम चरन ने स्वयं सेवकों को कोसा था। “दाम दमड़ी किसी के भी पास नहीं है।” राम चरन को पहली बार पंडित जी ने आज मुसकुराते देखा था।
“ये लोग देश भक्त हैं!” पंडित जी ने राम चरन को समझाया था। “ये लोग देश की निस्वार्थ सेवा करते हैं, धन नहीं कमाते!”
“फिर इनका परिवार ..?”
“ये देश को ही अपना परिवार मानते हैं।” पंडित जी ने राम चरन की बात काटी थी। “ये लोग पीड़ितों, पिछड़ों और जरूरतमंदों की देख रेख करते हैं।”
पंडित जी के लाख समझाने और बताने के बाद भी राम चरन की जिज्ञासा ज्यों की त्यों बना रही थी। इन स्वयं सेवकों के बारे वो पूरी तरह से आंदोलित हो उठा था। पूरी रात वह करवटें बदलता रहा था। वह चाहता रहा था कि परेड ग्राऊंड में किसी तरह पहुंचे और देखे कि ये स्वयं सेवक वहां करते क्या थे?
इतने बड़े देश की रक्षा ये लोग लाठी डंडों से कैसे कर सकते थे – राम चरन रात भर सोचता ही रहा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

