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राम चरन भाग पचपन

Ram Charan

“प्रणाम रानी साहिबा।” राम चरन ने झुक कर बड़ी विनम्रता के साथ इंद्राणी को प्रणाम किया था।

चरण स्पर्श करता राम चरन इंद्राणी को बहुत भला लगा था।

इंद्राणी ने सजेवजे राम चरन और सुंदरी को एक साथ देखा था। दोनों का मैच मिला दिखा था। दोनों अपने आप में जहां बेजोड़ थे वहीं दोनों मिल कर एक बेजोड़ जोड़ा लग रहे थे। इंद्राणी को सुंदरी की सूझबूझ और समझ बुरी न लगी थी। राम चरन और सुंदरी की संतानें जैसे ढोलू सराय को किलकारियों से गुंजायमान कर रही थीं – इंद्राणी उस पवित्र लमहे के बारे सोच गई थी।

“बैठिए!” इंद्राणी ने उन दोनों को आदर पूर्वक बिठाया था।

तभी कुंवर खम्मन सिंह ढोलू पधारे थे। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी कुंवर साहब आज अतिरिक्त साज सज्जा में सुसज्जित थे। उन्होंने सर पर ढोलू वंश की कदीमी पगड़ी पहनी थी और बंद गले के कोट तथा चूड़ीदार पाजामे में पुराने शासक की तरह उदय हुए थे। राम चरन को नया-नया तो लगा था लेकिन आश्चर्य न हुआ था। वह इस तरह की राहे रस्मों से बेखबर न था।

“चरण स्पर्श!” राम चरन ने कुंवर साहब के पैर छू कर आशीर्वाद लिया था।

सुंदरी को अच्छा लगा था। लगा था – राम चरन ने आज सारे किले फतह कर लिए थे।

“सुंदरी और तुम्हारी शादी करने का निर्णय हम तो कर चुके हैं, राम चरन।” कुंवर साहब ने हंसते हुए कहा था। “सुंदरी महेंद्र की विधवा है।” कुंवर साहब ने विनम्रता पूर्वक कहा था। “अगर तुम्हें कोई आपत्ति हो तो ..”

“मैं जानता हूँ सर!” राम चरन स्वीकारते हुए लाल हो गया था। “मुझे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।”

“चट मंगनी और पट ब्याह!” इंद्राणी ने हंस कर कहा था। “तुम दोनों ..” इंद्राणी ने जुबान पर आई बात रोक ली थी।

राम चरन और सुंदरी ने एक दूसरे को आंखों-आंखों में देखा था और अह्लाद से भर गए थे। तभी जन्मेजय का आगमन हुआ था।

“क्षमा चाहूंगा राजा साहब!” उसने प्रणाम करने के बाद कहा था। “अत्यंत जरूरी काम आन अटका था। सोचा – निकालता चलूं!” वह जोरों से हंसा था। “सीजन गरम है – शादियों का! सोचा देखता चलूं कहां डेट फिट होती है।” वह बता रहा था। “बहिन जी आपकी मुराद पूरी हुई! शादी की तारीख नौ जनवरी तय मानो!”

“ओ भइया! तुमने मेरी लाज रख ली!” इंद्राणी गदगद हो गई थी। उसने मुड़ कर सुंदरी और राम चरन को देखा था। “ढोलू शिव प्रसन्न हैं। अब शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए!” उसने बात को अंतिम रूप दे दिया था।

लेकिन राम चरन ये सब नहीं सुन रहा था। वह तो टकटकी लगा कर जन्मेजय को ही देखे जा रहा था। लंबी-लंबी काली मूँछें, छह फुट से भी ज्यादा लंबा जन्मेजय – बड़ी-बड़ी आंखों से सारे जगत को एक साथ देखता राम चरन को जल्लाद लगा था।

“ये कंस मामा कहां से चले आए?” राम चरन ने मन ही मन शब्दों को मनकों की तरह फेरा था। “ये चीज क्या है भाई?” राम चरन स्वयं से पूछ रहा था।

“सी यू इन जैसलमेर सून!” जन्मेजय ने राम चरन से हाथ मिलाया था। “शादी मैंने ही करानी है!” वह हंस गया था।

“मारे गए गुलफाम!” राम चरन ने स्वयं से कह कर लंबी उच्छवास छोड़ी थी!

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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