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राम चरन भाग पचहत्तर

Ram Charan

दुबई हवाई अड्डे पर प्लेन से उतरा था राम चरन और एक इशारा पा कर ओट में खड़े उस चार्टर्ड प्लेन में आ बैठा था।

तब उसने खिड़की पर चढ़ते मंजूर अहमद को देख लिया था। उसी के पीछे-पीछे शगुफ्ता सोलंकी भी चढ़ कर चली आई थी। उन दोनों ने एक साथ राम चरन को देखा था और हाथ मिलाए थे। दोनों के चेहरे किसी अनजान प्रसन्नता में लबरेज थे। लगा था – राम चरन का कायाकल्प हुआ था और वह अब राम चरन नहीं – मुनीर खान जलाल था।

जैसे अपनों में आज गलती से चला आया था – मुनीर खान जलाल और अब उनके साथ भूले बिसरे वक्त को बांट रहा था।

“चियर्स!” उसने अपने अंतरंग मित्र आर्मी कमांडर बलूची को फॉरन पहचान लिया था। उसे याद आ गया था गोल्डन ट्राएंगल – नसीर नारंग, बलूची बलोच और स्वयं वो – मुनीर खान जलाल, तीनों तीन महत्वाकांक्षी उपग्रहों जैसे थे। “कब टेकओवर कर रहे हो?” बलूची ने गिलास में भरी व्हिस्की का लंबा घूंट सूंता था।

“हो सकता है कुछ वक्त लगे।” उसने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया था।

“नसीर तो अगले साल ले लेगा कमांड। अप्रूव हो गया है।” बलूच ने अगली सूचना दी थी। “तुम्हारा तो जिगरी दोस्त है।”

“तुम्हारा नहीं है?” उलाहने के तौर पर उसने प्रश्न पूछा था।

“अरे भाई! हमें कौन पूछता है। तुम दोनों तो एक जान .. एक ..” बलूची की आंखों में शरारत तैर आई थी। “सलमा शेख ..” वह कुछ कहते-कहते रुक गया था। “तुम्हारे दोनों बेटे अमन और चमन डिट्टो नारंग से मिलते हैं।” बलूची खबरदार होते हुए बोला था। “बुरा मत मान जाना दोस्त! लेकिन ये भी कोई ऊपर वाले की नजर है।” वह खुल कर हंसा था और कई पलों तक हंसता रहा था।

उसका डटकर पी व्हिस्की का नशा न जाने कैसे काफूर हो गया था। मुनीर खान जलाल ने महसूसा था कि जो बलूची बलोच की आंखों में छपा था – वो तो बहुत भयंकर था।

न जाने क्यों उसे लगा था कि वह बहुत थक गया था। उसकी आंखें बंद हो गई थीं। वह घोर और गहरी निद्रा में जा डूबा था और तब उसकी आंखों के सामने तराजू के दो पलड़े झूल गए थे। दोस्त और दुश्मन उन दो पलड़ों में आ बैठे थे। एक में वो बैठा था तो दूसरे पलड़े में नसीर नारंग बैठा था। दो जिगरी यार न जाने कैसे अब दो दुर्दांत दुश्मन थे। दोनों के बीच में सलमा शेख आ कर खड़ी हो गई थी। दोनों बेटे अमन और चमन साथ थे।

“किसके बेटे हैं?” वह सलमा से प्रश्न पूछ रहा था। “क्या रिश्ता है तुम्हारा इस नारंग से? तुम .. तुम दोनों ..?” उसकी दांती भिच गई थी।

“उठो-उठो!” कोई उसे जगा रहा था। “प्लेन लैंड होने वाला है!” वह बता रहा था।

आंखें राम चरन ने नहीं मुनीर खान जलाल ने खोली थीं।

प्लेन समुंदर पर नीचे उतर आया था। कुछ दूर पर एक टापू दिख रहा था। प्लेन उसी पर उतरने जा रहा था शायद। टापू सघन वन से आच्छादित था। किनारों पर सफेद रेत बिछी थी। प्लेन उस टापू के पेट में घुसा था और घुसता ही चला गया था। जब रुका था तो उन्हें उतरने के आदेश मिले थे।

कुछ बेहद अजीब, अजूबा और रमणीक स्थान था जिसे मुनीर खान जलाल शक और शंका से निरखता परखता रहा था।

“स्वागत है आपका!” मुनीर सुन रहा था। “वैलकम टू दि इस्लामिक स्टेट!” एक धारदार आवाज आई थी। “लैट्स बिगिन ए न्यू इरा ऑफ इस्लाम!” कह कर आवाज बंद हो गई थी।

शगुफ्ता सोलंकी और मंजूर अहमद उसके दाएं बाएं चल रहे थे।

शायद कुछ बड़ा होना था – बहुत बड़ा, मुनीर खान जलाल अनुमान लगाता रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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