“मिलिए! राम चरन!” पंडित कमल किशोर ने आचार्य प्रहलाद का परिचय कराया था। उन्हें अपना वायदा याद था। “और आप हैं – काशी संस्कृत विद्यापीठ के आचार्य प्रहलाद!” तनिक मुसकुराए थे पंडित कमल किशोर। “मेरे सहपाठी हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया था।
“ओह! दिस फूल इज द फादर ऑफ संघमित्रा!” राम चरन ने आश्चर्य के साथ स्वयं को सूचित किया था। “ट्रैप हिम!” उसने स्वयं को आदेश दिया था। “यह भी कोई यतीम ही होगा।” वह मन ही मन हंसा था। “ऑफर हिम बँगला नम्बर सैवन।” उसने साथ ही साथ निर्णय ले लिया था।
“आप से मिल कर प्रसन्नता हुई!” प्रहलाद ने राम चरन से हाथ मिलाया था। “जीनियस हैं आप – कमल ने बताया था।” प्रहलाद ने राम चरन की चतुर निगाहों को परखा था। “हमने तो जीवन में केवल यश कमाया है। आप की तरह ..”
“सच की कमाई ही काम आती है।” राम चरन अनायास ही आचार्य प्रहलाद की प्रशंसा करने लगा था। “आप की तो बेटी भी ..?” राम चरन तनिक हंसा था। “आइए न कभी ऑफिस में?” उसने सीधा-सीधा आचार्य को निमंत्रण दिया था। “हमें भी कोई ज्ञान ध्यान?”
“अवश्य आएंगे!” आचार्य प्रहलाद ने वायदा किया था। “हो सका तो ..” उन्होंने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया था।
“संघमित्रा के साथ आएंगे!” राम चरन ने उनका वाक्य पूरा किया था लेकिन अपने मन में!
उम्मीदों पर ही तो आसमान टिका है – राम चरन का प्रफुल्लित मन आज कूद-कूद रहा था। संघमित्रा अगर साथ आती है तो ..? राम चरन कोई नायाब तोहफा देने के बारे सोचने लगा था। तभी उसे याद आया था – बंगला नम्बर सैवन। अभी तक खाली था। और शायद .. उसका सबब भी संघमित्रा ही थी।
“बहलोल लोधी सुंदर सुनार कन्या को उठा लाया था और दिल्ली में सल्तनत कायम की थी।” इतिहास ने ऑफिस में आते ही राम चरन को याद दिलाया था।
“अल्लाह!” आसमान की ओर आंखें उठा कर मुनीर खान जलाल ने पहली बार इबादत की थी। “ग्रांट मी दिस बून ऑफ दी लास्ट टाइम!” उसकी मांग थी। “संघमित्रा मिलती है तो ..?” मुनीर का मर गया मन आज जीवंत हो उठा था।
आचार्य प्रहलाद आज अलग तरह से नाच कूद रहा था।
उन्हें पहली बार लगा था कि काशी संस्कृत विद्यापीठ से अलग और भी एक रचा बसा संसार है। सभा में गीता प्रवचन सुनने आए संभ्रांत लोग आचार्य के लिए किसी आश्चर्य से कम न थे। उनके पास अपार वैभव था। वो .. वो लोग उन लोगों से बिलकुल अलग थे जो रोटी कमाने के जुगाड़ में रात दिन खटते रहते थे। और शायद वो स्वयं भी उसी रोटी के जुगाड़ के तहत काशी संस्कृत विद्यापीठ में मामूली से वेतन के सहारे जीते रहे थे। वो कोई तपस्या न थी – वो तो मजदूरी ही थी .. जो ..
“राम चरन ने उन्हें ऑफिस में मिलने बुलाया था।” सहसा आचार्य के दिमाग ने एक नई रोशनी को जागते देखा था। “तो क्या .. तो क्या ..?” वह कुछ सोच ही नहीं पा रहे थे।
गीता प्रवचन के दौरान श्रद्धालुओं को निष्काम कर्मयोग समझाते-समझाते आज उन्हें लगा था कि वो ताउम्र व्यर्थ की बातों में समय गंवाते रहे थे। उन्होंने जीवन को तो जी कर देखा ही नहीं। एक अकेली कन्या के हाथ पीले करने की सामर्थ्य तक नहीं जुटा पाए थे – वो। धन्य है संघमित्रा जिसने स्वयं को संभाल लिया है .. और ..
“अगर राम चरन ..?” आचार्य प्रहलाद के मन में विचार आया था। “कमल किशोर की तरह उन्हें भी ..?”
जिन्दगी को फिर से जीने की लालसा आचार्य के अंतर में न चाहते हुए भी उदय हो गई थी।
गीता प्रवचन के बाद आचार्य प्रहलाद के चरण छू-छू कर जाते श्रद्धालु, संत और महंत आज उन्हें आशीर्वाद देने से मना करते लगे थे।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड