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राम चरन भाग इक्यावन

Ram Charan

कुंवर खम्मन सिंह ढोलू, उनकी पत्नी इंद्राणी और साला जन्मेजय – तीनों साथ-साथ बैठे थे लेकिन तीनों के तीन दिमागों में मुसीबत एक थी – सुंदरी!

जन्मेजय जानता था कि सुंदरी आधी रियासत की मालिक थी।

“ये इज्जत का सवाल है!” इंद्राणी ने धीमे स्वर में कहा था। “पता नहीं कौन है?” उनका इशारा राम चरन की ओर था। “कोई जानेगा तो क्या कहेगा?” वह गमगीन हो आई थीं। “मैसूर वालों को तो पता चलेगा तो शर्म में डूब मरेंगे! और यहां .. जब कृषि मंत्री की बहन का स्कैंडल खुलेगा तो ..?”

जन्मेजय ने कुंवर साहब को आंख उठा कर देखा था। वो चुप थे। गंभीर थे। एक सदमे से जूझते लगे थे।

“निकाल दें कांटा?” जन्मेजय ने इंद्राणी को संबोधित कर पूछा था। “हुक्म करो!” उसने सीधा प्रश्न किया था। “खतरा खत्म करें!” वह तनिक सा मुसकुराया था।

“लेकिन .. केस खुल गया तो?”

“कहां खुलेगा?” जन्मेजय खुल कर हंसा था। “ठीक से पैक करके लाश को पाकिस्तान के लिए पार्सल करा देंगे!” उसने सीधा सुझाव सामने रख दिया था।

कुंवर साहब ने मुड़ कर जन्मेजय को देखा था। उन्हें जन्मेजय के सुझाव पर शक न था। वह जानते थे कि जन्मेजय कितना कैपेबल था। क्राइम की दुनिया का बादशाह माना जाता था उसे। अच्छे-अच्छे तीस मार खान उससे बच कर चलते थे। जन्मेजय का जारी किया फतवा पार जाता था।

“सुंदरी समाज सेविका है। उसका अलग से एक नाम है। अगर अचानक गायब हो गई तो प्रश्न तो उठेंगे जरूर। प्रेस तो पूछेगा – प्रश्न! संस्था भी छान बीन करेगी और अगर हम पर उंगली उठी तो ..?” कुंवर साहब बड़े ही विवश हो आए थे।

“तो ..?” इंद्राणी की आवाज तल्ख थी। “मैं .. मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी कुंवर जी कि सुंदरी ..”

“शादी कर देते हैं।” कुंवर साहब का सुझाव था।

“लेकिन किससे? उसका क्या पता – वो कौन है?” इंद्राणी ने मुंह एंठ कर असहमति जाहिर की थी।

“मैं पता लगा लेता हूँ!” कुंवर साहब ने जिम्मा ओटा था। “हमारी कोई संतान है नहीं!” कुंवर साहब ने मन की बात उगल दी थी। “अगर सुंदरी ..”

जमा तीनों ने तीन-तीन बार एक दूसरे को देखा था! लगा था – जैसे कहीं सुदूर में एक चिराग जला था और रोशनी दौड़ कर उन तक पहुंच गई थी।

सुंदरी समझ न पा रही थी कि अब क्या करे?

भाभी साहिबा को तो सब कुछ पता था। और भाई साहब भी अब तक बेखबर न थे। लेकिन उन्होंने भी आज तक उससे कोई बात न की थी। वह शपथ समारोह में नहीं गई थी। लेकिन भाई साहब ने आज तक मुड़ कर पूछा तक न था कि ..

“कब तक पड़ी रहोगी नीलम के घर?” सुंदरी ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “आज नहीं तो कल लव अफेयर तो उजागर होगा! ये छुपता नहीं। इश्क तो सर चढ़ कर बोलता है। इश्क तो ..” ठहर गई थी सुंदरी। “इश्क का अंत है – शादी?” तुरंत उत्तर आया था।

लेकिन सुंदरी के लिए शादी करना इतना आसान तो न था।

अगर राम चरन के साथ वो कोर्ट मैरिज भी कर ले तो भी सच को उजागर तो होना ही था। और तब .. उस हालत में तो ढोलुओं पर कयामत टूटनी थी। और फिर उसे अभी तक राम चरन पर भरोसा भी न था। कोशिश के बावजूद भी राम चरन ने अपने बारे में कुछ नहीं कहा था। लेकिन क्यों?

अब सुंदरी चाह रही थी कि राम चरन के साथ एक प्रगाढ़ परिचय स्थापित हो! वह उसे महेंद्र की तरह जान ले और मान ले। तभी तो शादी का विचार ..

और आज शादी का विचार सुंदरी को पंख लगा कर ले उड़ा था।

“संतान का मुंह देखने को मिलेगा।” सुंदरी अपार आनंद में आकंठ आ डूबी थी। “ढोलुओं की वंश बेल चल पड़ेगी!” उसने हवा को बोल कर बताया था।

लेकिन भाई साहब ..?

जटिल प्रश्न था जो सुंदरी के सामने आ खड़ा हुआ था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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