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राम चरन भाग इक्कीस

Ram Charan

“आप कौन ..?” सुंदरी ने प्रश्न किया था। जो आदमी सामने बैठा था उसे उसने मंदिर में पहले कभी नहीं देखा था।

मंदिर में ढोलू शिव के मेले की तैयारियां चल रही थीं। क्योंकि सुंदरी हर बार ही ढोलू शिव के मेले की व्यवस्था देखती थी आज भी उसी के संदर्भ में मंदिर चली आई थी। पंडित कमल किशोर को चंद आदेश पकड़ा कर वह मंदिर के पीछे बावली की ओर सैर पर निकल आई थी। उसे यहां आ कर बड़ी शांति मिलती थी। लेकिन आज बावली की शहतीर पर बैठे उस आदमी को देख सुंदरी दंग रह गई थी।

उस आदमी ने भगवा वस्त्र पहने थे। उस आदमी का ललाट शीशे सा दमक रहा था। वह आदमी पुजारी न लग कोई फिल्म ऐक्टर जैसा जंच रहा था। उसका परिधान भी बेहद आकर्षक था। वह कोई साधारण मनुष्य न लग रहा था – सुंदरी को।

“म .. म .. मैं ..” राम चरन ने जब मुड़ कर सुंदरी को देखा था तो वह भी बेहोश होने को था। उसने भी पहले कभी इतनी सुंदर औरत न देखी थी। यहां तक कि .. एक नाम उसके होंठों पर आया था पर उसने दबा लिया था। “मैं .. राम चरन!” उसने लड़खड़ाती आवाज में उत्तर दिया था।

सुंदरी ने सहसा महसूस किया था कि उस व्यक्ति का जहां परिधान भगवा था वहीं वह किसी प्रेमाकुल हुए प्राणी का संदेश भेजता लगा था।

“राम चरन कौन?” सुंदरी ने दूसरा प्रश्न दाग दिया था।

राम चरन चुप ही बना रहा था। वह बोलना न चाहता था। वह अपनी दृष्टि को सामने खड़ी उस आकर्षक महिला से हटाना ही न चाहता था। वह गिन-गिन उस नारी श्रेष्ठ महिला के नख शिख की प्रशंसा करने में लगा था। वह सोचे जा रहा था कि ..

तभी सुंदरी को अपनी दशा का ज्ञान हुआ था। वह भी पगलाई सी एक टक राम चरन को ही देखे जा रही थी। उसका पुरुष शौष्ठव सुंदरी को अनायास ही भा गया था। न जाने क्यों कई बार महेन्द्र का नाम उसने लेना चाहा था लेकिन वो बार-बार बुलाने पर भी लौट-लौट गया था। लेकिन क्यों? क्या था इस आदमी में जो आज तक सुंदरी ने अन्यत्र नहीं देखा था।

सुंदरी को अचानक लज्जा ने आ घेरा था।

वह मुड़ी थी और सीधी मंदिर के बाहर निकल गई थी। उसने अपनी कार स्टार्ट की थी और बड़ी तेज रफ्तार में घर की ओर भाग ली थी। उसने कार को खूब तेज-तेज भगाया था लेकिन राम चरन उसे हर बार अगले मोड़ पर ही मिला था। उस पुरुष श्रेष्ठ व्यक्ति को वह चाह कर भी भुला न पा रही थी।

और राम चरन एक गहरे आश्चर्य में डूबा हुआ हर बार सुनता – राम चरन कौन? लेकिन उत्तर देने को उसकी जुबान न खुलती। उससे तो बोलना तक न बना था। वो बोलना ही कब चाहता था। वह तो बस उसे देखते ही रहना चाहता था। उसने तो उसका पता ठिकाना तक न पूछा था।

“कहां रहते हो?” सुंदरी उसे पूछ लेना तो चाहती थी लेकिन फिर उसकी हिम्मत कहां हुई थी कि पूछे।

आज पहली बार था कि सुंदरी अपना मन मंदिर में छोड़ खाली हाथ घर लौट आई थी।

और राम चरन सारे समुंदरों को बावली में सिमटे देखता ही रहा था!

उन दोनों को लगा था कि उस दिन कोई अजूबा था – जो घट गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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