खाली ठेली को देख कर श्यामल ने अंदाजा लगा लिया था कि राम चरन आया था।
कालू के चेहरे पर खेलते विजय भाव इस बात के गवाह थे कि उसने आज का रण जीत लिया था। आज भाग्योदय हुआ था। आज के बाद हर सपना पूरा होगा और अगर राम चरन आता रहा तो ..
“आया था राम चरन?” फिर भी श्यामल के पेट को पानी न पचा था तो उसने पूछा था।
“हां!” कालू ने गर्दन हिलाई थी। “और .. और .. इतने सारे ग्राहक श्यामो कि .. कि खाने की टूट पड़ गई!”
“सच ..?”
“हां, सच! राम चरन के लिए भी थोड़ा बहुत बचा था। मैं तो ..”
“हाय राम! तुम अभी तक भूखे हो?”
“भूख किसे लगी ..?” हंस रहा था कालू। “नोट जो छापता रहा था – राम चरन!” वह बताता जा रहा था। “राम चरन ने क्या फुर्ती दिखाई श्यामो कि ..” कालू बताता ही रहा था।
“साथ क्यों नहीं ले आए उसे?”
“पागल!” प्यार से देखा था श्यामल को कालू ने। “अंजान आदमी को घर में घुसाते हैं क्या?”
श्यामल शर्मा गई थी। उसकी आंखों में लाज लरज आई थी। उसे भी एहसास हुआ था कि – राम चरन ..? हां-हां! राम चरन उनका नौकर ही तो था। फिर नौकर को ..
“इस करवा चौथ पर तेरे लिए साड़ी लाऊंगा श्यामो!” कालू ने विषयांतर किया था। वह नहीं चाहता था कि उसकी श्यामल भूल से भी किसी और मर्द के गुण गाए।
“राधा के पास है एक साड़ी! अगर ..”
“हां-हां! तुम्हारी पसंद की ही लाऊंगा!” कालू ने मान लिया था।
अब दोनों अगले दिन की तैयारी में उलझ गए थे।
लेकिन श्यामल का मन घोड़ों की तरह दौड़ रहा था। आते धन ने उसका तन मन सज्जल कर दिया था। गरीबी में कटे दिन अब भागते नजर आ रहे थे। उसे नजर आ रहे थे वो सपने जो उसने राधा के घर बैठ कर देखे थे। वैसा ही घर बनाएंगे – जैसा राधा ने बनाया था – उसने तय कर लिया था और ..
“अरुण वरुण का दाखिला अच्छे स्कूल में करा देते हैं।” काम में संलग्न कालू बोला था। “पढ़ाई लिखाई बहुत जरूरी है श्यामो!” उसकी राय थी।
“फिर तो अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते हैं बच्चों को।” श्यामल ने भी अपनी राय सामने रक्खी थी। “अंग्रेजी सीख गए तो .. विदेश तक ..”
“और देश ..?” कालू ने बात काटी थी।
“जाकर देख तो लिया था – देश?” श्यामल बिगड़ गई थी। “कोरोना से डर कर गांव भागे थे – बेकार में। वहां पहुंच कर जो हाल हुआ .. सो ..!” रुआंसी हो आई थी श्यामल। “देश तो कभी न जाएंगे!” उसने शपथ ली थी। “सब बुरवार हैं, कोई किसी का नहीं। यहां शहर में फिर भी लोग काम आ जाते हैं। अब राम चरन को ही देख लो ..”
अचानक कालू की आंख उठी थी। उसने श्यामल को कठोर निगाहों से देखा था। श्यामल को फिर से अपनी गलती का एहसास हुआ था। लेकिन वो क्या करती? उसे राम चरन आदमी नहीं कोई अनोखा मरद लगने लगा था।
श्यामल डर गई थी। उसे कालू से डर लगता था। कभी जभी कालू नाराज होता तो हाथ भी उठा देता था। अरुण और वरुण ही उसे संभालते थे। कालू उन दोनों से तनिक सा खतरा खाता था। अभी तो दोनों बच्चे थे बड़े होने पर तो कालू ..
“यहीं कहीं ढोलू सराय में प्लॉट ले लेंगे और घर बना लेंगे।” श्यामल ने एक नया सपना सुझाया था। “अभी तो घर बनाना बाबा के मोल है! लेकिन अगर काम बढ़ा तो सब आसान हो जाएगा!” श्यामल जानती थी।
“नहीं!” कालू नाट गया था। “पहले होटल खोलेंगे!” उसने तनिक मुसकुरा कर कहा था। “श्यामल फूड्स!” कालू ने नाम भी सुझा दिया था।
श्यामल ने कालू को प्रशंसक निगाहों से देखा था। उसे आश्चर्य हुआ था कि ये नाम कालू के जेहन में कैसे चला आया?
“नाम अरुण वरुण ने दिया है।” कालू ने हंसते हुए कहा था। “वो दोनों ..”
“तो क्या विदेश नहीं जाएंगे?” श्यामल ने तुनक कर पूछा था। “सब तो अमरीका जाते हैं?”
“अब अमरीका इधर आएगा!” कालू खूब हंसा था।
श्यामल फिर से राम चरन को पुकार लेना चाहती थी लेकिन ..
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

