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राम चरन भाग एक सौ तेंतालीस

Ram charan

“आप के पी एम बनने का इससे अच्छा वक्त फिर कभी नहीं आएगा – राम चरन ने कहा है।” सुंदरी कुंवर खम्मन सिंह ढोलू को समझा रही थी। इंद्राणी सुंदरी की बात से सहमत थी और साथ बैठी थी। “राम चरन का गणित और गोटें आप के फेवर में हैं।” सुंदरी ने सफलता के संकेत दिए थे।

तभी जन्मेजय कान्फ्रेंस रूम में चला आया था। उसने कुंवर साहब के पैर छूकर प्रणाम किया था। इंद्राणी का चेहरा खिल उठा था।

“मैंने ही बुलवाया है इसे।” इंद्राणी ने बताया था। “चुनाव का सारा काम यही संभालेगा।” उन्होंने कुंवर साहब को सूचित किया था।

“लहर तो है आपके नाम जीजा श्री।” जन्मेजय बताने लगा था। “लोग आप को बहुत पसंद करते हैं।” उसका कहना था। “मेरा प्रयास होगा कि आप एक बेहद बड़े मार्जिन से चुनाव जीतें। इसका प्रभाव पड़ता है।”

“याद है भइया! पिताजी भी तो पी एम ही बनना चाहते थे? लेकिन नेहरू ने उन्हें साइड में लगा दिया था। उसके बाद से ही उनका राजनीति से मन भर गया था। मुझे याद है जब उनके भीतर निराशा का घुन घर कर गया था। और वो उदास रहने लगे थे।”

“यही गम ले गया था उन्हें।” कुंवर खम्मन सिंह ढोलू ने सुंदरी का समर्थन किया था।

“अब फिर से मौका आ गया है।” जन्मेजय तनिक मुसकुराया था। “बदला उतार देते हैं इन कांग्रेसियों का।” उसने विरोधियों को चुनौती दी थी।

“राम चरन कहता है कि चुनाव से पहले किसान रैली दिल्ली में आयोजित हो जाए।” सुंदरी ने अगली योजना बताई थी। “सारे देश के किसान रैली में आएं। उससे पहले राम चरन कहता है कि हम सैनिकों की तरह ही किसानों के लिए भी अपने फाइव स्टार होटलों में खाना रहना फ्री कर दें।” वह तनिक सी मुसकुराई थी।

“उलटा असर होगा।” जन्मेजय ने विरोध किया था।

“नहीं। पॉजिटिव होगा।” कुंवर साहब बोल पड़े थे। “सैनिकों के लिए जो हमने किया है – उसकी चर्चा देश विदेश तक में है। मुझे संदेश आते रहते हैं। और अगर किसानों के लिए भी कुछ हुआ तो ..”

“कर देते हैं – कमी क्या है ढोलुओं के पास? ढोलुओं पर ढोलू शिव का हाथ है। भंडार भरे हैं।” वह हंस गई थी। “किसान तो हमारे बहुत अजीज हैं।” उसने अंतिम तर्क सामने रख दिया था। “एक बार तुम राम चरन से जरूर मिल लेना।” उसने जन्मेजय को सलाह दी थी। “ये आदमी बड़ा ही जहीन है। इसने हमारी कंपनी का काया कल्प कर दिया है।” उसने राम चरन की बड़ाई की थी।

जन्मेजय भी चाहता था कि एक बार राम चरन से जरूर मिले। उसे याद है जब उसने इन दोनों की शादी कराई थी। उसके बाद तो न जाने कितने साल गुजर गए थे राम चरन से मिले।

“आप से कोई जन्मेजय मिलने आया था।” राम चरन के संदेश वाहक ने उसे बताया था।

राम चरन चौंका था। राम चरन डरा था। राम चरन की आंखों के सामने जन्मेजय का चेहरा एक खतरे के मानिंद उजागर हुआ था। बड़ी-बड़ी, काली-काली और फहराती मूंछें, लाल-लाल रत्नारे लोचन, काले घुंघराले बाल और लंबा कद काठ उसे सताने लगा था। दद्दा जोरावर सिंह उसे याद हो आए थे। राजपूत तो वो भी था – राम चरन ने मन में दोहराया था। लेकिन वो जन्मेजय से इतना क्यों डरता था?

हैदराबाद जाती रात की फ्लाइट में सीट पर बैठा राम चरन केवल और केवल जन्मेजय के बार ही सोचता रहा था। क्यों आया था जन्मेजय, वह जान लेना चाहता था।

“इस बार राजपूतों से संधि नहीं करनी।” राम चरन ने जन्मेजय के डर का उत्तर खोज लिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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