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राम चरन भाग एक सौ सोलह

Ram charan

मुनीर खान जलाल की किस्मत के पाँसे अब सीधे पड़ रहे थे। कभी असंभव लगने वाला सब कुछ अब संभव होता चला जा रहा था। कुमारी टापू पर आ कर उसका मन प्रसन्न हो उठा था। एक छोटा स्वर्ग सा बसा था वहां। चारों ओर समुद्र से घिरे कुमारी टापू की साफ सुथरी बीच और टापू पर उगा लता गाछ अद्भुत नजारा पेश करता था। महलनुमा बना बड़ा भवन बेहद आकर्षक था। उसके रहने खाने और नहाने घूमने फिरने की जो व्यवस्था थी वो भी बेजोड़ थी। महलनुमा भवन में हर तरह की सुविधा उपलब्ध थी। दुनिया जहान की हर सूचना, समझ और साहित्य वहां उपलब्ध था। दुनिया में कितने धर्म थे, कैसे-कैसे लोग थे, कहां-कहां रहते थे और कौन-कौन सी भाषाएं बोलते थे – ये सारी जानकारी वहां थी।

एक छोटा हैलीकॉप्टर बीच पर खड़ा था तो समुद्र में एक लांच उसके सैर सपाटे के लिए हाजिर था।

अचानक मुनीर खान जलाल को अपना कराची का फ्लैग स्टाफ हाउस याद हो आया था। सलमा के यहां सब कुछ उपलब्ध था। उसे सब कुछ याद हो आया था।

“यहां शगुफ्ता ने सब कुछ संजोया हुआ है।” किसी ने मुनीर के कान में कहा था। “सलमा से भी चार कदम आगे है – शगुफ्ता।” उसे चेतावनी मिली थी।

शगुफ्ता के अलावा मंजूर अहमद था और नूरी था। ये तीनों मुनीर के शिक्षक थे। बूढ़े तोते को राम नाम रटाने के लिए इन्हें नियुक्त किया गया था। नूरी साईकोलॉजिस्ट था – तो मंजूर अहमद हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई – चारों के मर्मों का भयंकर भेदिया था। शगुफ्ता को भारत की नारियों के चरित्र से लेकर चौखट के अंदर तक का सब कुछ ज्ञात था।

मुनीर खान जलाल की छह महीने तक यहां ट्रेनिंग होनी थी।

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद झंझट ये खड़ा हुआ था कि उसे कैसे, किस रूप में भारत के भीतर दाखिल किया जाए? व्यापारी, नौकर, गली का गुंडा, फिल्म एक्टर या कि पॉलिटीशियन बना कर चुपचाप भेजा जाए। लेकिन कोई बात बन न पा रही थी।

“मेरी समझ में इन्हें भिखारी बना कर भारत भेजें।” मंजूर अहमद की राय थी। “भारत में एक भिखारी बेताज बादशाह है। उसे कोई नहीं पूछता चाहे वो नंगा बीच सड़क पर पड़ा रहे। उससे सब डरते हैं कि कहीं कोई श्राप न दे बैठे। उसे सब देकर जाते हैं। उससे किसी को कुछ लेना नहीं होता।”

मंजूर अहमद की बात में दम था। अतः तय हुआ था कि मुनीर खान जलाल को भिखारी बनाया जाएगा और भारत भेजा जाएगा।

और उसे भिखारी बनाते-बनाते महीनों बीत गये थे। उसके दाएं गाल पर एक काला तिल उगाया गया था तो बालों को गंदा कर छल्लों में तोड़ तुरप कर बिठाया गया था। फटी कमीज और डेढ टांग का वो पायजामा एक्सपर्ट्स ने कठिनाई से पास किया था।

आगे के कुछ अहम प्रश्नों का उत्तर पाना भी आसान न था।

कहां से घुसेगा भारत में ये भिखारी – पूछा जा रहा था। काशी से आरंभ होने की बात चली थी तो शगुफ्ता बिगड़ गई थी। क्यों नहीं महरौली से घुसे? शगुफ्ता ने पूछा था। कुतुबुद्दीन ऐबक भी तो यहीं से शुरू हुआ था – कह कर मुसकुराई थी शगुफ्ता और उसकी बात मान ली गई थी।

मुनीर खान जलाल का भी मन मान गया था। दिल्ली जाने का तो उसका बड़ा मन था। किस्मत ही थी कि जहां लोग बादशाह बन कर आए थे वो भिखारी बन कर जा रहा था। लेकिन उसे न जाने क्यों अल्लाह पर अटूट विश्वास था। उसे एक न एक दिन बनना तो बादशाह ही था।

भिखारी की पोशाक पहने मुनीर खान जलाल जब शीशे के सामने खड़ा हुआ था तो दंग रह गया था। उसे लगा था कि वो एयर कमाडोर की बर्फ सफेद यूनीफॉर्म में सजावजा सामने खड़े एक भिखारी को देख रहा है और उसका नाम पता पूछना चाहता है। वह जोरों से हंसा था। कमाल ही था कि वो अपने आप को पहचान ही न पाया था।

अनेकानेक नाम सुझाए गए थे। लेकिन किसी ने कोई नाम न माना था। लेकिन नूरी ने जब राम चरन नाम सामने रक्खा था तो सब दंग रह गए थे।

“भारत में राम का अभी भी राज है!” नूरी ने ही बताया था। “और चरन – राम के चरन में तो सभी हिन्दू शीश झुकाते हैं।” वह हंसा था। “राम चरन ही चलेगा।” उसका ऐलान था।

और फिर तीन दिन का भूखा प्यासा भिखारी राम चरन घर का खाना बेचते कालू की रेहड़ी के सामने आ खड़ा हुआ था – अचानक!

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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