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राम चरन भाग एक सौ सैंतालीस

Ram charan

राम चरन आया था तो उन दोनों की अभिलाषाओं के चिराग रोशन हो उठे थे।

“सॉरी सर, लेट हो गया।” राम चरन ने माफी मांगी थी। “वो काम ही इतना है कि ..” उसने अपनी व्यस्तता बखानी थी।

“कबाब ठंडे हो गए हैं।” रोजी ने शिकायत की थी। वो तीनों जोरों से हंस पड़े थे।

रोजी ने आज बड़े दिनों के बाद तीन गिलासों में तीन पैग शिवाज रीगल के बनाए थे। साेडा डाला था और हां गिलासों में बर्फ के दो-दो क्यूब डाले थे। तब तीनों ने बड़े हर्ष के साथ साथ-साथ शराब की चुस्कियां लगाई थीं। बड़े ही आत्मीय पल हो आए थे – सात नम्बर के बंगले में।

“हुआ कुछ?” प्रश्न राम चरन ने किया था।

“हां-हां। कम्पलीट बैटल प्लान इज रैडी।” जनरल फ्रामरोज ने उत्तर दिया था। “आओ चलें।” वो उठ खड़े हुए थे।

वॉर रूम बने बैड रूम में उन तीनों ने अपने आप को बंद कर लिया था।

“यू कैन सी द बैटल मैप ऑफ अवर एशियाटिक अंपायर।” जनरल फ्रामरोज ने दीवार पर टंगे बैटल मैप से पर्दा उठाया था। “ऑल द बैटल डिटेल्स आर मार्क्ड् ऑन द मैप।” जनरल साहब ने मैप पर पॉइंटर से दिखाया था। “लेकिन बैटल प्लैन अभी भी अधूरी है।”

“लेकिन क्यों?” राम चरन ने तुरंत प्रश्न पूछा था।

“इसलिए कि जब तक इस्लामिक स्टेट की बैटल प्लान से तालमेल नहीं बैठेगा तब तक सब बेकार है।” जनरल फ्रामरोज ने हाथ झाड़े थे। “अब तुम बताओ कि .. कि ..?” जनरल फ्रामरोज ने राम चरन के सामने एक जटिल प्रश्न रख दिया था।

राम चरन सकते में आ गया था। वह नहीं चाहता था कि अपनी इस्लामिक स्टेट की बैटल प्लैन को किसी और के सामने रख दे। लेकिन उसे याद आया था 1971 की लड़ाई का पाकिस्तानी आर्मी का वॉर रूम। तीनों सेनाओं की मिली जुली बैटल प्लान थी। उसमें सब का रोल था और सभी का एक्शन था। और फिर ..

“नौ तारीख दिसंबर रात के दो बजे ऐशियाटिक अंपायर एट हैदराबाद ..” राम चरन अपनी पूरी इस्लामिक स्टेट की बैटल प्लान बताता रहा था और जनरल फ्रामरोज उसे नक्शे पर उतारता रहा था।

बड़ा ही बोरिंग काम था – रोजी ने महसूस किया था। उसे यूं ही लड़ना झगड़ना कभी से अच्छा न लगता था। उसने अपने सपनों का ऐशियाटिक अंपायर जिंदा किया था और अपने फ्लैग स्टाफ हाउस में विजय दिवस की पार्टी ऑरगेनाइज करने लगी थी। विशाल पंडाल लगे थे और उनमें सेना के बड़े-बड़े दिग्गज एकत्रित हुए थे। आर्मी बैंड – वी हैव डन इट की धुन बजा रहा था। नाना प्रकार की तोपें सैल्यूट दाग रही थीं। चारों ओर ऐशियाटिक अंपायर के झंडे लहरा रहे थे। गजब की गहमा गहमी थी।

“आप दिल्ली से कमांड करेंगे – एज चीफ ऑफ ऐशियाटिक अंपायर आर्मी और मैं हूंगा एट हैदराबाद – एज दी एंपरर ऑफ ऐशियाटिक अंपायर।” राम चरन बताता रहा था। “आप के ग्यारह जनरल्स ..?”

“दूसरे बैटल फैज की तैयारी में लगे होंगे।” जनरल फ्रामरोज ने वाक्य पूरा किया था। “पहले चाइना को सरेंडर कराएंगे और उसके बाद रूस का नम्बर लेंगे।” फ्रामरोज ने राम चरन की आंखों में देखा था। राम चरन सहमत हुआ लगा था।

“गुड। वैरी-वैरी गुड।” राम चरन हर्षित हो उठा था। “एक्सिलैंट प्लान, सर।” उसने प्रशंसा में कहा था।

“लैट्स हैव ए ड्रिंक दैन?” जनरल फ्रामरोज ने बात समाप्त की थी।

रोजी ने फिर से तीन पैग बनाए थे। तीनों ने अपने अपने गिलास हवा में उछाले थे और चियर्स फॉर द ऐशियाटिक अंपायर का नारा लगाया था। तीनों ने एक घूंट में गिलास खाली कर दिए थे।

पूरी रात ढल गई थी। सुबह होने को थी। जनरल फ्रामरोज और रोजी ने ऐशियाटिक अंपायर के मोनार्क को हाथ हिला-हिला कर विदा किया था।

दुनिया में आज एक नए सूरज का उदय हुआ था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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