खुली खिड़की के पास बैठा मुनीर खान जलाल सूने आसमान पर लिखी अपनी किस्मत की इबारत को गौर से पढ़ रहा था।
वो तीनों जिगरी दोस्त थे। वो तीनों तीस मार खान थे। उन तीनों को शिखर छूने थे। और नाम और नामा कमाना था। औस सलमा ..? तीनों की दोस्त थी। तीनों की हार्ट बीट थी। लेकिन नाम उसके लिख गई थी। फिर .. सोलंकी ..?
“क्या गलती है बलूच की?” मुनीर ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “स्टीलिंग लव ऑफ ए ब्रदर ऑफीसर – क्राइम है। और बेवफाई .. एक संगीन जुर्म है। सलमा और नारंग का यही जुर्म था। एक था उसका जिगरी यार और दूसरी थी उसकी ..
“गुड जॉब डन!” मुनीर खान जलाल ने अपनी पीठ थपथपाई थी। “मौत ही सही।” उसने स्वीकारा था। “बलूच को दोष देना बेकार है।” उसका अपना विचार था।
निम्मी ने नाश्ता लगा दिया था। लेकिन मुनीर का मन कुछ भी खाने का न था। वह तो चाह रहा था कि क्यों न इस तिमंजिले से छलांग लगाए और आत्म हत्या कर ले? सलमा की मौत उसे जीने न देगी – मुनीर खूब जानता था।
“क्या चीफ बनने के बाद बलूच बदल जाएगा?” मुनीर ने अपने आप से अहम प्रश्न पूछा था। “क्या बलूच कभी मुंह खोलेगा?” मुनीर समझ न पा रहा था। “अमन और चमन आ कर लौट गए थे। बड़े हो रहे थे। उन्हें अब सब समझ थी। क्या-क्या बताएगा उन्हें? क्या वह कह सकेगा कि वो दोनों उसके नहीं नारंग के बेटे थे?”
अचानक ही मुनीर के अंतर में शर्म का अशांत दरिया ठाठें मारने लगा था।
“बहुत बुरा हुआ!” उसने लंबी निश्वास छोड़ी थी। “जीने का जरिया ही जाता रहा।” उसे याद हो आया था। “वॉट ए लाइफ – इट वॉज?” वह सराह रहा था। “वॉट ए ब्राइट कैरियर? वॉट ए स्मार्ट वाइफ? एंड टू संन्स ..?” सब एक पल छिन में मिट गया, मिट्टी हो गया।
“लैट मी ऑलसो कॉल इट ए डे!” फिर से मुनीर के मन ने तिमंजिले से छलांग लगाने की कमर कस ली थी। “जी न पाऊंगा!” उसका आखिरी वचन था।
“आप का लैटर!” निम्मी इंजैक्शन लगाने आई थी तो एक पत्र उसके लिए लाई थी।
मुनीर ने हैरान परेशान निगाहों से निम्मी को घूरा था। उसने कोई ध्यान ही न दिया था। वह इंजैक्शन लगा कर चली गई थी।
“मौत से जिंदगी कई गुना बेहतर है, मुनीर। हार ही तो जीत की उम्मीद जगाती है। चाहो तो जीने का एक मौका तुम और ले सकते हो।
आज रात दो बजे अस्पताल के पीछे रनवे पर खड़े चार्टर्ड प्लेन में चले आना। जैसे ही अंदर आओ बजर दबा देना। प्लेन तुम्हें ले उड़ेगा।” फरिश्ता।
अचानक मुनीर ने पत्र पढ़ कर अपने चारों ओर को देखा था। वहां कोई न था। वह अकेला ही था। निम्मी ने भी अब नहीं लौटना था – वह जानता था। इंजैक्शन लगने के बाद उसे नींद ने आकर घेर लेना था – वह जानता था। लेकिन वो पत्र ..?
मुनीर ने झटपट उस पत्र को अपने सीने के साथ चिपका लिया था।
“कौन है ये नई जिंदगी बांटने वाला?” मुनीर का दिमाग अब चल पड़ा था।
“मुझे ही तकदीर कहते हैं, मुनीर!” उत्तर आया था। “जो लिखा है उसी को पढ़ सुनाया है। मौत से पहले जिंदगी अगर मौका देती है तो इसमें हर्ज क्या है बेटे?”
मुनीर को नींद नहीं आई थी। मुनीर रह-रह कर दीवार पर लगी घड़ी में समय देखता रहा था। राम के दो बजते ही वह उन्हीं मरीजों के कपड़ों में लिपटा उठा था और चप्पलें उतार नंगे पैरों चोरों की तरह चार्टर्ड प्लेन तक पहुंचा था। अंदर घुसते ही उसने बजर दबाया था और एक आश्चर्य की तरह वह प्लेन उसे ले उड़ा था।
कहां जा रहा था मुनीर – कोई नहीं जानता था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड