Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

राम चरन भाग एक सौ चालीस

Ram charan

एस एस कोड पहुंच गया था। ठीक छह माह बाद जिहाद की जंग का ऐलान होना था। एक साथ पूरी दुनिया में धमाका होना था। आइडिया था कि कोई भी देश किसी की मदद करने के लिए ठाली न छोड़ा जाए। हर आदमी की चौखट पर एक ही समय में जंग रुप जाए। हर कोई अपनी-अपनी जंग लड़े और मारा जाए।

“जीत का चांस १००० पर सेंट है।” हंसते हुए किरन कस्तूरी ने कहा था। “एक दम सुपर्ब प्लानिंग है, सर।” उसका रिमार्क था।

राम चरन किरन कस्तूरी को पढ़ने में लगा था। किरन कस्तूरी का मतलब था – मिस्टर अब्बास मियां। अरब के मसीहाओं का ऐजेंट था। किरन कस्तूरी को अब तक के भारत में हुए पूरे ऑपरेशन की तैयारी का पूरा इल्म था। और जो वो जानता था वही वहां बैठे सब खलीफा और शेख भी जानते थे।

लेकिन जो राम चरन जानता था वो न तो शेख जानते थे और न ही किरन कस्तूरी जानता था। ऐशियाटिक अंपायर अभी तक राम चरन के अपने अकेले दिमाग में कैद था।

“हर वी आई पी और वी वी आई पी के घर में हमारा दखल पहुंच गया है सर।” किरन कस्तूरी ने कन्फर्म कर कहा था। “किसी का बेटा, किसी की बेटी या फिर बहू हो – दामाद या फिर वो स्वयं हमारे सहायक बन चुके हैं। हमारे साथ होंगे जिहाद में।” किरन कस्तूरी ने राम चरन की आंखों में घूरा था।

“गुड! वैरी गुड!” राम चरन मुसकुरा रहा था। “और व्यापारियों का क्या हाल है?” उसने पूछा था।

“उन्हें तो मुनाफे से मतलब है सर। जो होगा तभी तो कुछ लेगा।” कस्तूरी का संक्षिप्त उत्तर था।

“और ये आर एस एस और क्रांतिकारी कितने घातक हैं?” राम चरन ने एक सीधा सवाल पूछा था।

“कुछ नहीं है, सर।” कस्तूरी ने हाथ झाड़ दिए थे। “सुमेद का मिशन तो टांय-टांय फिस्स है।”

“क्यों?”

“लोग होशियार है सर। जानते हैं कि ये लौंडा माल कमाने निकला है। हाहाहा।” हंसा था कस्तूरी। “इस की तो वो भी भाग गई।”

“कहां?” बमक पड़ा था राम चरन। “क्यों भाग गई रे?”

“इसके पास है क्या, जो ठहरे।” कस्तूरी फिर से बात काट कर बोला था।

अब राम चरन सकते में आ गया था। उसका मन उचट गया था। वह वहां से उठ कर संघमित्रा की तलाश में बाहर निकल गया था।

कस्तूरी किरन ने एक-एक कर सारी मुहिम बताई थी। बताया था कि किस तरह देश का पूरा सहयोग उनके साथ आ जाएगा। किस तरह प्रशासन उनकी मदद करेगा। किस तरह उनके समर्थन में काम करते साधू और भविष्य वक्ता प्रोपेगेंडा फैलाएंगे और किस तरह ..

“कहां हो सकती है संघमित्रा?” राम चरन ने स्वयं से ही प्रश्न पूछा था।

“काशी।” सीधा उत्तर आया था। “आचार्य प्रहलाद की पर्ण कुटीर में बैठी मिलेगी।” उसका मन बोला था। “चलो, काशी चलते हैं।” उसका विचार बना था। “अभी तो छह महीने हैं।” उसका दिमाग बोला था। “ऐशियाटिक अंपायर के तमाम लूज एंड्स को अब गांठ लगानी होगी। संघमित्रा को ..”

“हथियार और अम्यूनिशन हर ठिकाने पर पहुंच गया है सर।” कस्तूरी किन ने राम चरन को अंतिम उपलब्धि की सूचना दी थी। “अब ट्रेनिंग जोर शोर से जारी है।” वह हंस रहा था। “इस बार सत्ता संभालने की इस्लाम की बारी है।” उसने हवा में हाथ फेंक कर ऐलान किया था।

लेकिन राम चरन ने किरन कस्तूरी को आज दूसरी निगाहों से देखा था।

“पहली गोली ..। यस-यस। इस बार चूकना नहीं दोस्त।” राम चरन ने अपने आप को सचेत किया था। “कस्तूरी किरन उर्फ मियां अब्बास के सीने में ठोक देना – उनका ऐजेंट है ये। सबसे पहले इसी कांटे को निकालना होगा।” राम चरन ने कस्तूरी किरन को मारक निगाहों से देखा था। और उठ गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Exit mobile version