“कुंवर साहब चाहते हैं कि जवानों की तरह किसानों को भी हम वो सुविधाएं दें जो ..” राम चरन ने रुक कर जनरल फ्रामरोज के चेहरे को पढ़ा था। “छह महीने के बाद चुनाव हैं।” राम चरन ने सूचना दी थी। “चुनावों से पहले ..!” राम चरन तनिक सा मुसकुराया था। “पी एम बनना चाहते हैं – कुंवर साहब।” उसने सूचना दी थी। “भले आदमी हैं – देश का भला होगा।”
जनरल फ्रामरोज चुप थे। रोजी किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी। किचन से उड़ कर नाना प्रकार की गंध सुगंध राम चरन तक कई संदेश लेकर पहुंच रही थी। उसे सहसा सलमा याद हो आई थी। सलमा भी बड़े सलीके से नाश्ता तैयार करती थी। सलमा के हाथ की बनी कॉफी के बहुत सारे सीनियर ऑफीसर ग्राहक थे। सलमा की कॉफी की किचन से उठती सुगंध ..
“गदर हो जाएगा, सर।” जनरल फ्रामरोज ने चुप्पी तोड़ी थी। उनकी आंखें तनिक सी तन आई थीं। “आप अंदाजा नहीं लगा सकते लेकिन .. लेकिन ऐसा गदर होगा ..!”
“तो हो जाने दो।” राम चरन ने बेधड़क कहा था। “आप भी तो देख रहे हैं सर कि हमारा जवान और किसान किस तरह भूखा है और ये नेता व्यापारियों के साथ मिल कर देश लूट रहे हैं।” राम चरन तैश में था। “आप जैसे सज्जन लोग ..”
“देश के लिए मरते हैं, हम तो सर।” जनरल फ्रामरोज ने गंभीर होते हुए कहा था।
“और किसान भी तो इस देश का अन्नदाता है। उसे ही क्या हासिल होता है? चुनावों से पहले कुंवर साहब किसान सम्मेलन बुलाएंगे। अब अगर उस सम्मेलन में किसानों के लिए कुछ सुविधाएं आप एनाउंस कर दें तो ..?”
“जवानों में और किसानों में फर्क है, सर।” जनरल फ्रामरोज अपनी राय रख रहे थे। “सैनिकों को सुविधाएं देने में कोई आवाज नहीं उठी। आप ने देखा कि किसी पत्रकार ने भी कोई विरोध नहीं किया। लेकिन क्यों?”
“इसलिए कि सैनिक ..?”
“हां। सैनिक इज ए सैलिब्रिटी इन इटसैल्फ।” जनरल फ्रामरोज ने बताया था। “लेकिन किसान तो लाभार्थी है। वह तो कमाता है। और जो किसान कमाते हैं उनका तो ..” जनरल फ्रामरोज ने रुक कर राम चरन की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।
राम चरन को यही उम्मीद थी। वह जानता था कि जनरल फ्रामरोज का व्यू पॉइंट बहुत बड़ा था। उन्हें हर अच्छे बुरे की समझ थी।
“अब सैनिकों की प्रतिक्रिया बिलकुल अलग है।” जनरल साहब बताने लगे थे। “मानोगे ग्यारह सर्विंग जनरल्स ने मुझे रिक्वैस्ट भेजी है कि रिटायमेंट के बाद मैं उन्हें भी कहीं एडजेस्ट कर लूँ।” वह तनिक हंस गए थे। “और जो हमारे साथ अभी तक जुड़ गए हैं आप जानकर हैरान हो जाएंगे सर कि ..”
“दैन यू टेक ओवर दि कंट्री सर?” अचानक राम चरन की ओर से एक बड़ा ही बेतुका प्रस्ताव आया था। “पाकिस्तान में तो हर दूसरे दिन तख्ता पलट होता है।” राम चरन बताने लगा था। “आप आएंगे तो देश बच जाएगा, सर। मिलिट्री शासन हो जाएगा एक बार तो ये सारी गंद धुल जाएगी।”राम चरन गंभीर था।
जनरल फ्रामरोज कई पलों तक चुप बने रहे थे।
“आई विल स्पीक टू रोजी।” अंत में उनका उत्तर था।
तभी रोजी नाश्ते की ट्रे लेकर किचन से टेबुल तक पहुंची थी। उसने सुन लिया था जनरल साहब का उत्तर।
“औरत का दिमाग घर की चौखट के बाहर का कुछ नहीं जानता, सर।” हंस गया था राम चरन।
पहली बार ही था जब रोजी ने राम चरन को मारक निगाहों से घूरा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड