पाकिस्तान लौट रहा था बलूच लेकिन चीन उसे रह-रह कर याद आ रहा था।
“वॉट ए नेशन यार!” बलूच का मन बोला था। वह भी अब चीन जैसी बुलंदियों पर ही उड़ रहा था। “पाकिस्तान को भी ..” मन बार-बार पाकिस्तान को भी समर्थ, वैभवशाली और आधुनिक देश देखना चाहता था। “बट फॉर द अमेरिकन्स ..?” एक जटिल प्रश्न उसके सामने आ खड़ा हुआ था।
एक बार – बस एक बार टेकओवर हो जाए!” बलूच फिर से फिजा से बातें कर रहा था। “फिर तो मैं .. मार खाऊंगा – इन लुटेरों को।” बलूच का चालाक दिमाग काम से लगा था। “चीन से तो तय हो गया था।” वह मन ही मन प्रसन्न हुआ था। “वैल बिगन इज हाफ डन।” उसने अपनी पीठ थपथपाई थी।
हवाई जहाज से उतरने से पहले बलूच ने हवाई अड्डे पर नजर दौड़ाई थी।
मिलिट्री के लोगों की आवाजाही देख वह तनिक चौंका था। उसे शक हुआ था। उसे तुरंत ही मुनीर खान जलाल याद हो आया था। कहीं उसने मुंह न खोल दिया हो – बलूच को शक हुआ था।
“मुनीर ये गलती नहीं करेगा।” बलूच ने मान लिया था और हवाई जहाज से नीचे उतरने लगा था। जैसे ही उसने जमीन पर पैर रक्खा था दो मिलिट्री यूनीफॉर्म में सजे वजे ऑफीसर्स सामने आए थे और दोनों ने एक साथ कहा था गुड मॉर्निंग सर।
“ओह, हैलो!” बलूच ने संयत रहते हुए कहा था और उन दोनों को गौर से देखा था। “हाऊ कम?” उसने उन्हें प्रश्न पूछ लिया था।
“आप को लेने आए हैं सर!” दानों ने एक साथ कहा था।
बलूच अब कुछ न बोला था। बाहर आते ही जरनल करीम काजमी से मुलाकात हुई थी। दोनों की निगाहें मिली थीं। काजमी उसका धुर विरोधी था। कई बार फंदा फेंका था बलूच ने लेकिन वह बच निकला था। लेकिन आज ..
“कैसे तकलीफ की?” बलूच ने सधे अंदाज में पूछा था। उसे पता था कि वो टेक ओवर करने जा रहा था। और हो सकता था कि काजमी की कोई गरज उसे यहां ले आई हो। “लुकिंग वैरी-वैरी स्मार्ट!” बलूच ने सहज होने का प्रयत्न किया था।
“यू आर अटैच्ड विद लाहौर कोर हैड क्वाटर्स!” करीम काजमी ने आदेश दिया था। “लैट्स गो!” वह बलूच को लेकर चल पड़ा था।
अब बलूच चारों ओर से मिलिट्री के ऑफीसर्स और सैनिकों से घिरा था।
“हुआ क्या करीम?” हिम्मत जुटा कर बलूच ने पूछ ही लिया था।
“मुझे कुछ पता नहीं।” करीम ने एक बेहद उबाऊ अंदाज में उत्तर दिया था।
“ब्लाडी अमेरिकन्स ?” बलूच धीमे से बुदबुदाया था। “द मीटिंग हैज लीक्ड!” उसका अनुमान था।
लाहौर कोर हैड क्वाटर्स में अजब तरह की हलचल थी। वुड बी चीफ को हिरासत में ले लिया था – एक आश्चर्य जनक खबर थी। बलूच की अरैस्ट का असर अलग-अलग तरह से हुआ था। कुछ लोग थे जो उसकी सलामती के लिए दुआएं कर रहे थे तो कुछ थे जो शर्मसार हो गए थे।
मैस के एक कमरे में बलूच को ठहरा दिया गया था। साथ में एक सीनियर ऑफीसर भी था जो उसके एस्कौर्ट का काम देख रहा था। पहरों पर दूसरे सैनिक चुस्ती के साथ खड़े थे। मैस का माहौल टेंस था।
“हुआ क्या मिल्लू?” बलूच ने एस्कौर्ट का काम संभाले ब्रिगेडियर मुस्तफा से पूछा था।
“आई हैव नो आईडिया सर!” विनम्रता पूर्वक मुस्तफा ने उत्तर दिया था।
शाम घिर आई थी। रात होने को थी। अंधकार था। बलूच को अभी तक ये भनक तक न लगी थी कि उसे आखिरकार अटैच क्यों किया गया था?
और वह फर्स्ट नवंबर को होने वाला टेकओवर ..?
उसके प्रश्न का उत्तर अब कोई न देगा – बलूच को विश्वास था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड