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राम चरन भाग एक सौ अठारह

Ram charan

संघमित्रा और राम चरन .. नहीं-नहीं – मुनीर खान जलाल और – और बेगम। नहीं भाई नहीं। खलीफा जलाल और जाने जन्नत की मुहब्बत की कहानी के लिए हिन्दुस्तान में जन्नते जहां कहां बनाया जाए – राम चरन यही तय नहीं कर पा रहा था।

आज ऑफिस की छुट्टी थी। अलसाए बदन को आजू बाजू मरोड़ता तोड़ता राम चरन कुछ तय न कर पा रहा था कि करे तो क्या करे? ताज महल तो वह कई बार देख आया था। उसे वह जँचा न था। पुरानी छाप का एक संगमरमर का घोंसला लगा था उसे। लेकिन अब, आज जब दुनिया जहान में नए-नए प्रयोग हो रहे हैं तो खलीफा जलाल की जन्नत कैसी बसे – वह इस बार तय कर लेना चाहता था।

“चन्नी!” सुंदरी ने पूरे ख्वाब का जायका खराब कर दिया था। “विल यू प्लीज हैल्प मी टुडे?” वह पूछ रही थी।

उसका मन तो आया था कि सुंदरी को धक्के मार कर महल से बाहर कर दे और संघमित्रा को आवाज दे – आओ-आओ मेरी जाने जहां। लेकिन ..

“आज मेरी महिला संघ की मीटिंग है, चन्नी।” सुंदरी उसे पटाने लग रही थी। “संघमित्रा आ रही है।” उसने सूचना दी थी।

“क्या ..?” राम चरन बिस्तर में उछल पड़ा था। “क्या कहा ..?” उसने सीधा सुंदरी की आंखों में देखा था।

“हिन्दू राष्ट्र एजेंडा है उसका।” सुंदरी ने बताया था। “देश विदेश से गण मान्य नारियां आ रही हैं। मुझे मरने तक की फुरसत नहीं है। लेकिन ..”

“लेकिन ..?” राम चरन अब सजग था। उसकी नींद तो न जाने कब की उड़ गई थी।

“इस श्याम चरन ने मेरी लाइफ हैल कर रक्खी है चन्नी।” तनिक मुसकुराई थी सुंदरी।

“माजरा क्या है?” राम चरन ने सीधे-सीधे प्रश्न पूछा था।

“श्याम चरन को शिव चरन भाभी जी के पास तक नहीं फटकने देता। और कम ये श्याम चरन भी नहीं है। ये भी शिव चरन को मुझे छूने तक नहीं देता। अब श्याम चरन को अकेला छोड़ कर मीटिंग में जाना ..”

“तो ..! इसमें मेरा क्या रोल है भाई?” राम चरन ने आंखों में तैर आई खुशी को छुपा लिया था।

“मेरे साथ चलो! आज छुट्टी है तुम्हारी। श्याम चरन को संभाल लेना प्लीज। तुम से बहुत अटैच है!”

राम चरन के दिमाग में एकाएक पूरा विगत आ बैठा था।

“शिव चरन और श्याम चरन दोनों मुगल हैं।” वह मन में हंसा था। “अपना-अपना हक कोई नहीं छोड़ेगा।” वह जानता था। “दोनों ही मेरे बेटे हैं। बेटे तो अमन चमन भी थे लेकिन थे कहां मेरे?” हंसा था राम चरन। “लेकिन .. लेकिन बेटे तो संघमित्रा के भी होंगे? उसने मान लिया था। “नादिर शाह या और कोई वैसा ही सूरमा जो खलीफात को संभलेगा और ..”

“मीटिंग के बाद चाय है।” सुंदरी ने बताया था। “तब तुम आ जाना।” वह हंसी थी। “तुम्हारा भी परिचय हो जाएगा।”

“बाप तो पहले ही सात नंबर बंगले को लात मार कर चला गया है।” राम चरन के दिमाग ने उसे तुरंत बताया था। “बेटी कुछ बेचती नहीं है, खरीदती है।” वह जानता था। “एक बार .. हां-हां, एक बार तो उसके हाथों बिकना ही होगा – संघमित्रा की शर्तों पर!” उसके उपजाऊ दिमाग में एक नई फसल की तरह नए संसार का शुभारंभ हुआ था। “चलते हैं।” उसने ठान ली थी।

राम चरन को अपना सपना आज साकार होता लगा था।

आश्चर्य ही था – राम चरन सोचने लगा था। असंभव को संभव होते देर नहीं लगती, वह आज मान गया था। संघमित्रा उसकी जन्नत जहां होगी और वो होगा पूरी दुनिया का अकेला खलीफा – शायद नहीं, यह तो होने वाला ही था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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