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राम चरन भाग एक सौ अड़तालीस

Ram charan

हैदराबाद को देख राम चरन को लग रहा था जैसे दो विपरीत विचारधाराएं जन्म ले चुकी हैं और शहर में दोनों समानान्तर बह रही हैं।

राष्ट्र प्रेम की पवित्र विचारधारा का प्रतीक सुमेद का क्रांति वीर संगठन सर उठाए पूरे हैदराबाद पर हावी होता जा रहा था। होने वाले सम्मेलन में पूरे भारत से लोग भाग लेने चले आ रहे थे। जगह-जगह पर शिविर लगे थे। कारों और बसों से शहर नाक तक भर गया था। राष्ट्र ध्वज शहर के चप्पे-चप्पे पर फहरा रहा था। जय श्री राम के नारे यदा कदा सुनाई दे जाते थे।

सम्मेलन का आरम्भ कवि प्रवीर द्वारा लिखे राष्ट्र गान से होना था और इसे संघमित्रा ने गाना था। आचार्य शंभु शास्त्री ने सम्मेलन को संबोधित करना था और आचार्य प्रहलाद ने संपूर्ण क्रांति का जयघोष करना था।

देश के युवक और युवतियां इस सम्मेलन को पर्व की तरह मना रहे थे।

“ये तो अभी तक खड़ा है?” शहर में घूमते फिरते युवक और युवतियां आम तौर पर चार मीनार को देख कर चौंक पड़ते थे। “गुलामी की जंजीर है ये तो।” उनका कहना था। “इस बार तोड़ कर रहेंगे।” कई युवक अपना इरादा व्यक्त करते सुने गए थे।

“अरे रे। ये क्या करिश्मा कर डाला तुमने सज्जाद मियां?” राम चरन चाऊ महल के नए रंगरूप को देख हैरान रह गया था। “तुमने तो ..?” राम चरन दंग रह गया था। जो वो देख रहा था वो तो वास्तव में ही सराहनीय था। “लेकिन .. लेकिन ये हुआ कैसे? इत्ता पैसा ..?” पूछ लिया था राम चरन ने।

“चुनाव जो आ रहे हैं, जनाब।” हंस गया था सज्जाद। “सी एम साहब अपनी मुट्ठी में हैं। मुसलमानों का वोट नहीं लेना?” उसने राम चरन को नई निगाहों से देखा था। “अजी साहब ये तो कुछ नहीं है। हम मांगेंगे तो जान हाजिर है।”

सच में ही सज्जाद मियां ने हैदराबाद में कमाल का काम कर दिखाया था।

पूरे शहर की नाके बंदी इतनी चुस्त दुरुस्त थी कि परिंदा भी पार नहीं जा सकता था। एक बार अल्लाहू अकबर का नारा लगने के बाद तो काफिरों को गाजर मूलियों की तरह काटना था। इस बार हैदराबाद से जिंदा बच कर कोई हिंदू बच्चा तक न जाना था। गोलकुंडा के किले में पूरी तैयारियां थीं। रसद राशन से लेकर हथियार और अम्यूनिशन तक हाजिर था। लश्कर अपनी-अपनी जगह पहुंच चुके थे।

“और ये क्या? रंगीली सैर से आप का मतलब ..?” राम चरन ने सज्जाद मियां से पूछा था।

“ये हमारे हुजूर नवाब हैदराबाद साहब का शगुल था, जनाब।” सज्जाद मियां बताने लगे थे। “सात सौ बेगमों का यहां जमावड़ा था। शाम को रौनक होती थी तो नवाब साहब ..” सज्जाद मियां ने एक सांस में हैदराबाद के निजाम की शानो शौकत का बयान कर डाला था। “आप का भी दौलत खाना हैदराबाद में ही होगा न?” सज्जाद मियां ने राम चरन को प्रश्न वाचक निगाहों से घूरा था।

राम चरन के दिमाग में ऐशियाटिक अंपायर का नक्शा अचानक ही उतर आया था।

“यू कैन हैव द वूमन फ्रॉम ..?” राम चरन का मन प्रसन्न हो कर बोला था। “एंड वाई नॉट?” वह स्वयं से पूछ रहा था। “अ ब्यूटी इज ए ब्लिस। गैट द ब्यूटिफुल वूमन फ्रॉम ऑल ओवर यौर अंपायर।” राम चरन अब भिन्न प्रकार की उमंगों से भर आया था।

“और संघमित्रा?” एक दूसरा सवाल था जो राम चरन के सामने आ खड़ा हुआ था।

पंडित कमल की आवाजें सुनने लगा था राम चरन।

“अवकाश चाहिए सर। हैदराबाद जाएंगे हम दोनों। एक सप्ताह लगेगा। आचार्य प्रहलाद पहुंच गये हैं। संघमित्रा और सुमेद भी कल पहुंचेंगे। और हम भी ..”

“जाइए-जाइए!” राम चरन ने हंसते हुए कहा था। “मोद मनाइए।” उसने कहीं दूर देखा था।

सहसा राम चरन को याद आया था कि संघमित्रा अब हैदराबाद में ही होगी।

“अब नहीं।” राम चरन ने अपने आप को वर्जा था। “सारा खेल बिगड़ जाएगा दोस्त।” उसने स्वयं को चेताया था।

लेकिन मन तो मन था। माना ही न था और संघमित्रा के संग रंगीली सैर पर चला गया था। खुशियों का बाजार लगा था। सब कुछ बे मोल तोल के बिक रहा था। वह चाह रहा था कि आज संघमित्रा पूरा जहान अपने लिए खरीद ले और वह उसके कीमत अदा करे। कई-कई बार उसने संघमित्रा की लंबी सुघड़ उंगलियों का स्पर्श किया था। उसके गुलाब की नरम पंखुरियों से लाल-लाल होंठ उसे बुलाते रह गए थे।

और वह – राम चरन अपने मन पर मजबूरियों का एक भारी पत्थर रख कर दिल्ली लौट आया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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