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राम चरन भाग एक सौ आठ

Ram charan

बलूच चमकता तारा होगा – हिन्दुस्तान हमारा होगा।

अचानक फिजा पर ये नारा तैरने लगा था। देश वासियों को अहसास होने लगा था कि अब जो नया चीफ – बलूच बनेगा, उसने हिन्दुस्तान को फतह कर लेना था। पाकिस्तान की यह मन की मुराद थी। हर पाकिस्तानी इसी सपने को ले कर बैठा था। और अब बलूच ने हवा गरम कर दी थी।

“अमरीका तो डबल करता है।” बलूच ने बात अफवाहों के तौर पर फैलाई थी। “लेकिन चीन हमारा आयरन फ्रैंड है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त हुआ कि नहीं?” वह हर किसी को पूछता। “चीन भारत का दुश्मन है तो हमारा दोस्त ही तो हुआ।” वह लोगों को समझाता था। “चीन के पास असला है, मसाला है और हथियार हैं। हवाई जहाज से ले कर टैंकों तक चाहे जितना ले लो और चाहे जितना ..” वह चीन के गुण गाता ही चला जाता था। “अगर दोनों मिल कर जंग लड़ेंगे तो अकेली इंडिया क्या बेचेगी बेचारी?”

लोगों का मन खुशी से झूम उठता। सभी को एक आस थी कि किसी तरह कोई हिन्दुस्तान को जीत ले। फिर तो सभी के वारे न्यारे थे।

बलूच क्योंकि वुड बी चीफ था अतः सेना की हर फॉरमेशन में विजिट करना उसका फर्ज था। टेकओवर करने से पहले उसे सब कुछ देख समझ लेना था।

जहां भी बलूच जाता लोग आगत स्वागत में बिछ-बिछ जाते। मोटी-मोटी गिफ्टें देते और खूब खातिर खुशामद होती। बलूच भूलता नहीं था ये बताना कि मरहूम जरनल नारंग अइयाश था और अइयाशी करने में ही मरा था। वह अमेरिका का चमचा था। उसने कभी नहीं लड़ना था। वो तो अमेरिका में अपना ठिकाना बना रहा था। किसी दिन भी उसने सलमा को ले कर फरार हो जाना था। हाहाहा। वह खूब हंसता था।

बलूच के इस प्रोपेगेंडा के चलते लोग नारंग को भूल गए थे और हुई संगीन खूनी घटना अब किसी मोल की न थी।

“एक बार – बस एक बार किसी तरह से हिन्दुस्तान हाथ में आ जाए फिर तो इसलाम का परचम दुनिया पर फहराएगा – हर मुसलमान ये मानता था। चीन और पाकिस्तान अगर मिल कर लड़े तो बात बन सकती थी – इसमें किसी को भी शक न था। चीन तो भारत से कई गुना शक्तिशाली था यह भी सबको पता था।

बलूच को पी एम से मिलने जाना था।

बलूच को अब उम्मीद थी कि उसकी कही हर बात पी एम के कानों तक तो पहुंचती ही होगी। चीन की ओर से उसकी सिफारिश पहले ही पहुंच गई थी। नारंग के खून होने की घटना पर भी अब तक खूब मिट्टी पड़ चुकी थी। अब बलूच ने फौरन विजिट भी प्लान किया था। वह चीन जा रहा था – एक सप्ताह के लिए – अकेला।

पी एम की पैनी निगाहें सब कुछ देख सुन रही थीं – चुपचाप।

बलूच के बारे इंटैलीजेंस की रिपोर्ट सही नहीं थी। बलूच भरोसे का आदमी नहीं था। उसपर शक था कि कहीं न कहीं बलूच नारंग के हुए खून से जुड़ा जरूर था। उसका हाथ था – इस घटना में। लेकिन खून इतनी चतुराई से हुआ था कि कहीं कोई सुराग मिल ही नहीं रहा था।

मुनीर खान जलाल का यूं पागल हो जाना भी शंका के दायरे में था। लोगों की संवेदनाएं मुनीर खान जलाल के साथ थीं। उसका एक जिगरी दोस्त नारंग और उसकी परम प्रिया पत्नी सलमा को किसी ने गोलियों से भून डाला था मानो किसी को कोई उससे प्रतिशोध चुकाना था।

फर्स्ट नवंबर ज्यादा दूर न था। चीन से लौटने के बाद ही बलूच को अपना क्लेम ठोक देना था।

और बलूच को सुपरसीड कर देना कोई आसान काम न था – लोहे के चने चबाना जैसा था।

पी एम के भी पर कतर दिए थे – बलूच ने।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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