Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

राम चरन भाग चौरानवे

Ram charan

हमारा हिन्दू राष्ट्र की सोमवार सभा लगी थी। संघमित्रा को लगा था जैसे उसका देखा स्वप्न जीवंत हो अब घट जाने को तैयार था।

“आज की सभा संघमित्रा – हमारी संस्था की नई सदस्य के राष्ट्र गान से आरंभ होगी।” स्वयं सुमेद शास्त्री ने जमा लोगों को संबोधित किया था। “ब्रह्मचारिणी संघमित्रा संस्कृत काशी पीठ की आचार्य हैं। इन्होंने अपने आप को हमारे हिन्दू राष्ट्र के लिए आजीवन भर के लिए समर्पित किया है।” भीड़ ने सामने आ खड़ी हुई संघमित्रा को देख जोरदार तालियां बजाई थीं।

सुमेद अपने आसन पर आ बैठा था और संघमित्रा ने माइक संभाला था।

“सुजलाम .. सुफलाम मलयज शीतलाम!” संघमित्रा ने राष्ट्र गान गाना आरंभ किया था। “मातरम .. वंदे मातरम!”

जमा लोग अभिभूत हुए लगे थे। संघमित्रा की सुरीली आवाज और अभिव्यक्ति ने लोगों को मोह लिया था। स्वयं सुमेद को भी आश्चर्य हुआ था कि संघमित्रा इतना अच्छा गाती थी।

“मित्रों! ये हमारा सौभाग्य है जो संघमित्रा जैसी विदुषी हमारे बीच आज उपस्थित हैं।” मेघ दूत ने माइक लेते हुए कहा था और अपना प्रवचन आरंभ किया था। “हमें इसी तरह के प्रतिभा वान युवक और युवतियों की आवश्यकता है दोस्तों। हमारा उद्देश्य बहुत ऊंचा है और हमारी प्रतिज्ञाएं बहुत कठोर हैं। हमें अपनी संस्था के लिए जीवट वाले क्रांति वीर और कर्म वीरों की आवश्यकता है।” मेघ दूत ने हर बार की तरह अपनी मांग जनता के सामने रख दी थी।

“हम सब जानते हैं कि हमें अंग्रेज एक सेकेंड हैंड साम्राज्य दे कर गए हैं।” मेघ दूत ने खुलासा किया था। “और अब इस सेकेंड हैंड साम्राज्य की जिंदगी ज्यादा नहीं बची है। अतः हमें हमारा हिंदू राष्ट्र नए सिरे से खड़ा करना होगा।” खूब तालियां बजी थीं। युवक और युवतियों ने हाथ उठा-उठा कर मेघ दूत के आह्वान का स्वागत किया था।

“उन्होंने यह व्यवस्था हम गुलामों के लिए बनाई थी मित्रों।” मेघ दूत ने मुसकुरा कर कहा था। “वो तो हमें आजाद भी करना नहीं चाहते थे। उनके लिए हिन्दुस्तान एक कालोनी थी – ए सोर्स ऑफ इनकम थी। उन्होंने हमें कभी बराबरी नहीं दी। और न ही उनका इरादा था कि वो कभी हम गुलामों को बराबरी पर बिठाएंगे।” मेघ दूत ने निगाहें उठा कर जमा भारत वासियों को देखा था। “लेकिन .. लेकिन हमने अपना हक मांगा, अपना वतन मांगा और अपने लिए अपना राष्ट्र मांगा।” तनिक ठहर कर मेघ दूत ने लोगों की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।

“हमारी मांगो को लेकर ही हमने स्वाधीनता संग्राम लड़ा था, दोस्तों! हमने कुर्बानियां दी थीं। हमने वतन को आजाद करा कर ही दम लिया था।” मेघ दूत ने दाहिना हाथ उठा कर विजय जैसा कुछ संकेत दिया था।

जश्न जैसा माहौल पैदा हो गया था। लोगों ने जम कर तालियां बजाई थीं।

“अब हमें हमारा राष्ट्र नया बनाना है।” मेघ दूत ने घोषणा की थी। “हमारी नस-नस में जो गुलामी व्याप्त है, पहले हमें उससे निजात पानी होगी। नई शिक्षा प्रणाली लानी होगी। नई न्याय व्यवस्था बनानी होगी और नई आयुर्वेदिक स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करनी होगी। काम कठिन है लेकिन उतना भी कठिन नहीं जितना भगत सिंह और राज गुरु ने कर दिखाया था।”

एक उन्माद खड़ा हो गया था। लोग खड़े हो कर भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे।

“हमारी पहली शर्त है मित्रों कि हमारे हिन्दू राष्ट्र के लिए हम सब हिन्दुओं को एक होना पड़ेगा।” मेघ दूत ने अंतिम आदेश जैसा दिया था। “आज एक हिन्दू पिटता है तो दूसरा मुंह ताकता है। आज हमारे देश में हम ही उपेक्षित हैं। हमारा हक वो खाते हैं – जो अपना हक एडवांस में लेकर बैठे हैं! हमें खा रहे हैं, देश खा रहे हैं और इसे टुकड़े-टुकड़े कर बांटने की फिराक में हैं।”

“इंकलाब जिंदा बाद!” जमा जनता नारे लगा रही थी। “भारत माता की जय।” जय घोष होने लगा था।

संघमित्रा ने जैसे आज पहला सवेरा देखा था और सुमेद की आंखों में झांक वह लजा गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Exit mobile version