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राम चरन भाग चौहत्तर

Ram Charan

“दुबई इज सेकेंड होम ऑफ अस इंडियंस!” राम चरन दुबई जा रहा था तो सुंदरी को उसके बारे में बता रहा था। “हर कोई छोटा हो या बड़ा हो, अमीर हो या गरीब हो और चाहे टुच्चा हो या लुच्चा हो दुबई भाग रहा है।” हंस रहा था राम चरन। “तुम मानोगी नहीं सुंदा कि अब फाइव स्टार कल्चर इज नो मोर ए हेट थिंग!” उसने मुड़ कर सुंदरी को देखा था। “आज तो हर कोई पांच सितारा सुख भोग की कामना लेकर चलता है। आज हर कोई पांच सितारा में बैठ खूब खाना उड़ाना चाहता है। उसे खाने में स्टाइल चाहिए, सोने बैठने में स्टाइल चाहिए और यहां तक कि नहाने धोने और ..” जोरों से हंसा था राम चरन। “नाचने कूदने में ही उसे देसी नहीं विदेसी विस्की चाहिए।”

“मैंने देखा है दुबई!” सुंदरी ने मधुर मुसकान बखेरते हुए कहा था।

“लेकिन अब जो मैं क्रिएट करूंगा सुंदा वो तो यूनिक ही होगा! देखोगी तो तुम भी उसे चमत्कार ही कहोगी!” राम चरन ने सुंदरी को अपनी बलिष्ठ बांहों में थाम लिया था। “आई बिलीव इन वन अपमैनशिप, सुंदा!”

“सो तो है!” सुंदरी ने हामी भरी थी।

“लेकिन तुम इस प्रेग्नेंसी की हालत में अकेली रहोगी तो मुझे ..”

“अरे, मैं अकेली कहां हूँ भोंदू!” सुंदरी ने राम चरन पर बलिहारी होते हुए कहा था। “देखते नहीं भाभी जी मेरी परछाईं तक को हाथों में लिए रहती हैं और भाई साहब की तो अब आवाज ही अलग है। आने वाले के इंतजार में .. भाई साहब ..”

“इसे कहते हैं – बॉर्न विद ए सिलवर स्पून!” राम चरन बताने लगा था। “आई से ही विल बी ए वैरी-वैरी लक्कि चाइल्ड!” राम चरन कहते-कहते चुप हो गया था। उसका अंतर आज फिर से चुपचाप बोला था। “एक हम थे – जब पैदा हुए थे तो देशों का बंटवारा हुआ था और फिर बेहद बुरी बदनसीबी के दर्शन हुए! मुहाजिर बने बैठे हैं – आज तक!” सहसा राम चरन को याद हो आया था कि उसे दुबई जाना था। “टेक केयर डार्लिंग!” उसने जाते-जाते सुंदरी का माथा चूमा था।

राम चरन के जाने के बाद सुंदरी को आज कुछ भी खाली-खाली न लगा था।

उसे लगा था – उसके साथ कोई है। कोई है – जो उससे बतियाना चाहता है। कोई है – जो उसके सुख दुख में शामिल है। कोई ऐसा है जिसको उसका खयाल है, उससे प्यार है! वो भाभी जी वाला प्यार नहीं – मम्मी वाला प्यार है।

“आज तुम्हें होना चाहिए था मां” आज सुंदरी को बहुत दिनों बाद मां याद हो आई थी। “आज तुम होती तो .. शायद ..”

“मैं मरी कहां हूँ सुंदर!” मां बोल पड़ी थीं। “पगली मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ रहती हूँ।” मां उसे बता रही थीं। “बेटी का तो मां की कोख पर कर्जा होता है। इसे कभी चुकाया नहीं जा सकता सुंदर!”

“तो फिर मैं भी तो ..?”

“हां-हां मां बनोगी तो कर्जा तो होगा!” हमेशा की तरह हंस रही थीं मां। “लेकिन इस कर्ज को चुकाने में आनंद आता है, सुंदर! प्रसव पीढ़ा – पीढ़ा नहीं होती! ये तो एक अलग और अनूठा आनंद है, जिसका केवल और केवल मां ही भाग करती है।”

“और संतान ..?”

“अपने लिए आती है!” मां बताती रही थीं। “स्त्री की उत्पत्ति उसके अपने लिए नहीं हुई। उसे तो मानवता का ऋण चुकाना होता है, परवरिश करनी होती है – प्रकृति की!” मां ने सुंदरी को सायास देखा था। “अब तुम देखना शरीर में आते उन परिवर्तनों को जिन्हें देख तुम दंग रह जाओगी, सुंदर!”

“इसका मतलब – मां होना ही सब कुछ होना होता है?” सुंदरी ने प्रश्न पूछा था।

“हां, बेटी!” मां ने स्वीकार में सर हिलाया था। “संसार का यही एक पहला सच है!” उन्होंने विहंस कर बताया था।

मां जा रही थीं और सुंदरी उन्हें जाते देखती रह गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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