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राम चरन भाग छत्तीस

Ram Charan

“चुनावों की घोषणा हो गई!” कुंवर खम्मन सिंह ढोलू लंबी उच्छवास छोड़ कर बोले थे। हाथ में लगे अखबार को सामने की मेज पर पटक कर उन्होंने साथ बैठी इंद्राणी और सुंदरी को चलती निगाहों से देखा था। “मुझे तो अब फुरसत मिलना मुश्किल है इंद्राणी!” वह बताने लगे थे। “पार्टी ज्वाइन करने के बाद बड़ी जिम्मेदारियां मिल गई हैं।” उन्होंने सुंदरी को देखा था।

“और भी कुछ तो मिलेगा?” सुंदरी ने व्यंग किया था।

“शायद!” कुंवर साहब मुसकुराए थे। “कोई मिनिस्ट्री मिले!”

अब इंद्राणी की नींद खुली थी। मात्र मिनिस्ट्री मिलने की उम्मीद पर उसका चेहरा खिल उठा था।

“होम मिनिस्ट्री लेना!” इंद्राणी ने आग्रह किया था।

“और तुम दोनों मिल कर इस बार का मेला संभालना!” कुंवर साहब ने भी उन दोनों को काम बताया था। “चार चांद लगा देना – अब की बार मेला में!” हंसे थे कुंवर साहब। “ढोलू शिव की कृपा होगी तभी कोई काम बनेगा!” उनका अपना विश्वास था।

“राम चरन ..!” अचानक ही सुंदरी के मन प्राण में बादलों सा कुछ गरज गया था।

सुंदरी को होम मिनिस्ट्री से अब कुछ लेना देना नहीं था। न उसे होने वाले चुनावों से कोई सरोकार था। वह तो राम चरन के हाथ को हाथ में लिए ढोलू शिव के जुड़े मेले में निफराम डोल रही थी।

“आई लव यू ..!” लोगों की नजरें बचा कर राम चरन बोला था।

कैसी विचित्र अनुभूति हुई थी सुंदरी को! सदियों से उजाड़ बियाबान बना उसका तन मन न जाने क्यों एकाएक पल्लवित हो उठा था। मन बगिया में खिले गुलाबों की सुगंध निराली थी। ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था। महेंद्र के प्रेम निवेदन भी उसे उल्लसित करते थे लेकिन राम चरन ..

“आई लव यू टू!” सुंदरी ने मुंह में जीभ को अजीब तरह से घुमाया था।

आंखों में शरम के सूरज उगे थे। अंग प्रत्यंग प्रफुल्लित हो उठा था। मन हुआ था कि लपक कर राम चरन को छू ले। स्पर्श करे उसकी लंबी-लंबी कठोर ऊंगलियों का और हल्के से दबा दे उसके हाथ को!

“क्या मांगोगी ढोलू शिव से?” राम चरन ने प्रश्न किया था। “यहां सभी लोग अपनी-अपनी मुरादों के साथ आए हैं। तुम्हारी मुराद ..?” हंस गया था राम चरन।

सहसा सुंदरी को आभास हुआ था कि वो तो मुरादें मांगना न जाने कब से भूल बैठी थी। महेंद्र के जाने के बाद तो उसने बहारों को विदा कर दिया था। वह तो समाज सेवा में जुट गई थी। उसे तो पराए गमों से रिश्ते निभाने में आनंद आने लगा था। वह अपने आप को तो न जाने कब का भूल बैठी थी। दिन रात वह डोलती रहती – सभाओं में, गोष्ठियों में – सेमिनारों में और चर्चा करती रहती औरों के लिए सुख जुटाने की। लेकिन आज ..

“मेरी मुराद ..?” सुंदरी ने राम चरन के प्रश्न को दोहराया था। उसने चकित दृष्टि से राम चरन के तेजस्वी चेहरे को कई पलों तक सहेजा था – सराहा था और फिर उसने राम चरन की आंखों में आंखें डाल कर कहा था। “मेरी मुराद – तुम हो तुम! तुम – राम चरन अब से – आज से – इस पल से मेरी मुराद हो – मेरे हो!”

लेकिन ये राम चरन था कहां – दुविधा की लंबी टीस ने सुंदरी को अचानक भीतर तक बेध दिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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