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राम चरन भाग छब्बीस

Ram Charan

“अच्छा नहीं लगता राम चरन जी – आप रात को बाहर ही पड़े रहते हैं!” पंडित कमल किशोर ने सौहार्द जताया था। “अब तो आप ढोलू शिव के अनुचर हैं, भक्त हैं और सेवक भी हैं।” पंडित जी ने प्रसन्न होकर राम चरन के गुणों का गुणगान किया था। “क्यों नहीं आप मंदिर के गर्भ गृह में ही अपने रहने सहने की व्यवस्था बना लेते?” पंडित जी का प्रश्न था। “जो खर्चा लगे बता कर ले लेना।” पंडित जी ने अनुमति प्रदान की थी।

राम चरन चौंका था। उसने पंडित कमल किशोर को खोजी निगाहों से देखा था। कोई जाल तो नहीं फेंक रहे पंडित जी – राम चरन सोच रहा था। पंडित जी के इस हृदय परिवर्तन का सबब वह जान लेना चाहता था।

पंडित कमल किशोर आज बेहद प्रसन्न थे। राम चरन को कुंवर खम्मन सिंह की नजरों से चुरा कर अपने लिए रख लेना – उनका मुख्य अभीष्ट था। राम चरन अब उनके लिए दुधारू गाय था। राजेश्वरी को हर रोज मोटा माल मिलता था – तो घर में आनंद ही आनंद भर जाता था।

सुमेद का कॉन्वेंट में एडमीशन होने के बाद तो राजेश्वरी राम चरन की आभारी हुई थी। उनके दिन राम चरन के आने के बाद ही फिरे थे – यह भी एक सत्य ही था।

किस्मत आदमी के दो कदम आगे चलती है – राम चरन ने आज फिर से इस बात की पुष्टि की थी। बिन मांगे भी मोती मिल जाते हैं – सोच-सोच कर वह हंसता ही रहा था। पंडित जी ने स्वयं ही मेरे मन की मुराद पूरी कर दी – वह आश्चर्य से भरने लगा था। क्या .. क्या .. राम चरन ने आते अपने विचार को छुपा लिया था!

“और अगर वो आई तो?” सहसा राम चरन को सुंदरी याद हो आई थी। “बाई गॉड!” राम चरन का मन बोल उठा था। “आज तक मैंने इतनी सुंदर औरत नहीं देखी।” वह अनुमान लगा रहा था। “क्या .. क्या सुंदरी ..?” राम चरन के दिमाग के भीतर सुंदरी को लेकर शक का समुंदर खड़ा हो गया था। “सुंदरी ..?” वो आज फिर न जाने क्यों रोमांटिक हो उठा था। “राम चरन कौन?” उसने सहसा सुंदरी की आवाज फिर से सुनी थी।

क्या उत्तर देता राम चरन – तब उसकी समझ मे ही न आया था। लेकिन क्यों उत्तर देता? किस लिए बताता उसे कि ..

“नहीं-नहीं!” राम चरन का मन अब बदल रहा था। “वो उसे प्यार ..” वह अब अपने आप को समझा रहा था। “बता दे उसे कि राम चरन कौन था। कह दो कि मैं .. कि मैं – आई लव यू!”

लेकिन दूसरे ही पल राम चरन सुंदरी की परछाईं को भी छूने से डरा था।

“यह नहीं चलेगा!” राम चरन ने तनिक संभल कर अपने आप को समझाया था। “नादान नहीं है – वह!” राम चरन ने अपने आप को सचेत किया था।

“कोई और ही जाल फेंका जाए!” राम चरन के दिमाग की उपज जमीन पर बहुत सारे षड्यंत्र उगाने लगी थी। “तनिक सी भी गलती हुई तो जान दे बैठोगे बेटा!” डर रहा था राम चरन। “लेकिन मुझे तो चाहिए सुंदरी!” उसका मन मान कर ही न दे रहा था।

“आए थे हरि भजन को – ओटन लगे कपास!” कोई राम चरन के कान में कह रहा था। “औरत की औकात जान कर भी तुम मौत-मौत का खेल क्यों खेलना चाहते हो?”

“नहीं-नहीं! मैं नहीं मरूंगा!” राम चरन ने जैसे शपथ ली थी। “मैं सुंदरी को अब पा कर ही दम लूंगा!” एक पंथ दो काज करूंगा। देख लेना तुम मैं सुंदरी को ऐसा फांसूंगा .. ऐसा चकमा दूंगा कि ..” सुंदरी से मिलने के लिए अब राम चरन का बेईमान मन मचल उठा था।

लेकिन तभी राम चरन की आंखों के सामने एक बहुमंजिला इमारत ढही थी और खाक हो गई थी।

राम चरन अपने खंडहर बने विगत में आज फिर बे मन डोलता रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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