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राम चरन भाग बयासी

Ram Charan

दुबई लौट कर राम चरन को लगा था जैसे वह जहन्नुम से भाग जन्नत में पहुंच गया था।

एक खतरनाक सोच था – सब को तबाह कर खलीफात कायम करना। न जाने क्यों आज वह इस सोच को छूना तक न चाहता था। वह चाहता था कि अगर वो सुबह-सुबह का देखा स्वप्न सच हो जाए तो ..? कहते तो हैं कि सुबह के शुभ लग्न में देखे ख्वाब सच हो जाते हैं। इतना तो वह भी जानता था। और अब वो ये भी जानता था कि हिन्दू बुरे नहीं थे। फिर इनका कत्ल करना तो गुनाह था।

“बहको मत मुनीर!” रूमी की आवाज थी। “सपने कभी सच नहीं होते। मौका मिल रहा है तुम्हें और अब मंजिल के पास आ कर खड़े हो। फिर शंका क्यों?”

“तुम क्या सोचते हो कि हिन्दुस्तान हार जाएगा?” मुनीर ने आज पहली बार फन मारा था। “मुझे तो याद है जब बाबर धू-धू कर जला था ओर कराची बंदरगाह तहस-नहस हो गया था। रूमी, तुम नहीं जानते कि ..”

“तुम नहीं जानते मुनीर कि बाबर पानीपत में कैसे जीता था! पृथ्वी राज चौहान भी हारा था और मराठे भी पानीपत में खेत रहे थे।” रूमी की आवाज में दर्प था। “बल से बड़ा छल है मुनीर! और ये हिन्दू छल करते नहीं। मुसलमान हार मानता नहीं और हिन्दू हिंसा से डरता है, जबकि मुसलमान के लिए हिंसा एक खेल है – खूनी खेल!” रूमी हंस रहा था।

“हिन्दू राष्ट्र ..?” मुनीर ने अंत में पूछ ही लिया था।

“कभी नहीं बनेगा!” ठहाका मार कर हंसा था रूमी। “हिन्दू आपस में ही लड़ते रहेंगे। हिन्दू कभी एक मत होंगे ही नहीं। ये इनकी जन्मजात बीमारी है।”

मुनीर ने महसूसा था कि वो सुबह-सुबह का देखा ख्वाब अब खंड-खंड हो कर रेगिस्तान की रेत की तरह हवा के साथ उड़ गया था।

“कहां थे अब तक?” सुंदरी का फोन था। वह प्रश्न पूछ रही थी।

अब आ कर मुनीर राम चरन के चोले में लौट आया था।

“काम में नाक तक डूबा था – सुंदा!” राम चरन की आवाज मीठी थी। “अपनी बेगम के लिए ड्रीम लैंड बनाने में व्यस्त था, डार्लिंग!” राम चरन के दिमाग में अब नई कहानी आती जा रही थी। “क्या है कि बुर्ज खलीफा वाले फ्लोटिंग सिटी बना रहे हैं। समुंदर पर तैरता हुआ शहर बसाने जा रहे हैं। नया आईडिया है। हमें भी ऑफर है कि ड्रीम लैंड ढोलू का निर्माण हम इस नए तैरते शहर में करें। इट्स वैरी इंटरैस्टिंग, सुंदा!”

“लेकिन इत्ते दिन से तुम ..?”

“अरे यार! समझा भी करो सुंदा! साइट सीइंग पर लॉन्च से निकले थे। वहां नैट था ही नहीं, और समय तो लगना ही था।” तनिक हंसा था राम चरन। “तुम्हारी याद तो आती रही सुंदा लेकिन ..”

“लौट कब रहे हो?”

“लग सकता है – थोड़ा और वक्त!” राम चरन ने संभल कर कहा था। “वैसे तुम तो ठीक हो न डियर?”

“हां-हां! मैं तो भाभी जी के चार्ज पर हूँ।” सुंदरी हंसी थी। “उन्हें मुझसे ज्यादा मेरी फिक्र है।”

“क्यों नहीं!” राम चरन ने हामी भरी थी। “उम्मीदों पर ही तो जीते हैं – हम!” उसने दर्शन बघारा था।

लंबे पलों तक राम चरन सुंदरी के बारे ही सोचता रहा था।

“हमारा धर्म इसार – त्याग और बलिदान पर आधारित है! मैं अपनी जान इन लोगों की एवज देने को तैयार हूँ।” सुंदरी की आवाजें आती ही जा रही थीं और राम चरन कच्चा होता ही जा रहा था।

“हिन्दू ही हैं जो औरों की एवज बलिदान देते हैं!” राम चरन ने स्वयं को सुना कर कहा था। “और मुसलमान ही हैं जो ..” राम चरन की जुबान रुक गई थी।

पलट मत जाना! हिन्दुस्तान तुम्हारे हाथ लग सकता है, मुनीर, रूमी कह रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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