“कुंवर साहब ने बुलाया है!” पंडित जी का संदेश था। “गाड़ी आई है। चले जाओ!”
राम चरन के प्राण सूख गए थे। वह तो जानता था कि कुंवर साहब ने उसे क्यों बुलाया था। वह यह भी जानता था कि कुंवर साहब आज देश की हस्तियों में से एक थे। वो राजा थे। वो जन प्रतिनिधि थे और ढोलू सराय के मालिक थे। और वो यह भी जानता था कि सुंदरी के साथ हुआ उसका इश्क – एक बहुत बड़ी रिस्क था। जान का खतरा था। जेल जाने का बड़ा सबब था – सुंदरी के साथ हुआ इश्क। कुछ भी हो सकता था।
“भागो ..!” पहला विचार आया था। “मैदान छोड़कर सीधा भागो और अलोप हो जाओ!” राम चरन के मन का कहना था। “लेकिन रास्ता ..?” राम चरन ने स्वयं से प्रश्न किया था। शक हो गया तो सीधे-सीधे जान जाएगी।”
राम चरन ने मुड़ कर पंडित कमल किशोर की आंखों में झांका था, वहां कोई शक शक-शंका न थी।
गाड़ी थी। भारत सरकार की गाड़ी। फ्लेग लगा था। ड्राइवर भी यूनीफॉर्म में था। उसने राम चरन के लिए दरवाजा खोला था। राम चरन एक पल के लिए अंधा हो गया था।
“कितना बड़ा रिस्क ले लिया?” राम चरन के कांपते मन प्राण बोल पड़े थे। “क्या करता? रिस्क लेने की तो पुरानी आदत है। दो-दो हत्याएं तुम्हारे हाथ से ही तो हुई थीं। लेकिन – भागे और बच गए।” वह तनिक सा प्रसन्न हुआ था। “अब आगे बढ़ो!” उसे उसका अगला आदेश मिला था।
किले का दरवाजा खुला था। तभी राम चरन का सोच भी टूटा था।
“कैद हो सकती है।” राम चरन का अंतर फिर से बोला था। “कुंवर साहब की छोटी बहन थी सुंदरी। तुम अपराधी हो प्रेमी नहीं। सुंदरी विधवा है। लेकिन तुम कौन हो – राम चरन?”
कुंवर साहब का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था। चेहरे पर खेलती मधुर मुसकान, आंखों में डोलता प्यार और सत्कार, लंबा चौड़ा कद काठ और खादी का परिधान – सब एक इतिहास जैसा था। जैसे भारत का स्वतंत्रता संग्राम जीवित हो चला आया था और राम चरन से बतियाने लगा था। राम चरन अचानक ही कुंवर साहब के चरण छूने के लिए झुक आया था।
“बैठो!” कुंवर साहब ने मधुर स्वर में कहा था। उन्होंने राम चरन को अपांग देखा था और उन्हें लगा था – सुंदरी की चॉइस गलत न थी। राम चरन उन्हें बड़ा ही होनहार और आकर्षक युवक लगा था। उसके फीचर्स बिलकुल राजपूतों जैसे थे। और आंखें तो बिलकुल और हूबहू राजपूतों जैसी थीं। बाल भी काले और घुंघराले थे। शरीर भी हृष्ट पुष्ट और आभा युक्त था। वह कोई गली का गुंडा न था। वह था तो कोई ..
“नाम क्या है?” कुंवर साह ने छोटा सा प्रश्न पूछा था।
“राम चरन!” राम चरन ने सीधे-सीधे उत्तर दिया था और गंभीर ही बना रहा था।
कुंवर साहब चुप थे। कई-कई बार वो एक अनुमान लगा रहे थे। हर बार एक ही निर्णय पर आते और रुक जाते। हर बार वो एक प्रश्न को अटकाते और फिर हट जाते। हर बार हंस कर उसे गले लगाने का मन होता क्योंकि वो सुंदरी का प्रेमी था। वह न जाने क्यों उन से जुड़ा था। वह सारे शक शुबहों से ऊपर उठ गया था। वह अपना जैसा ही एक युवक था।
“सुंदरी भी गलत नहीं है।” कुंवर साहब ने स्वीकार किया था। “सुंदरी अब दूध पीती बच्ची नहीं है। उसने राम चरन से पहले का जमाना भी देखा है।” कुंवर साहब ने राम चरन के पक्ष में अब दलीलें जुटाई थीं।
सुंदरी और राम चरन की शादी का प्रस्ताव ही सही था – कुंवर साहब ने मान लिया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड