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राम चरन भाग बानवे

Ram charan

शिव चरन के जन्म के साथ-साथ इंद्राणी का भी जैसे पुनर्जन्म हो गया था।

इंद्राणी शिव चरन को ढोलू शिव का ही अवतार मानने लगी थी। ढोलू शिव की कृपा से ही उनका वंश फिर से हरा भरा हो उठा था। राम चरन भी तो ढोलू शिव की ही देन था। वरना तो सुंदरी ने तो राह ही दूसरी गही थी। न जाने कैसे उसका मन बदला और राम चरन से नेह लग गया।

और अब इंद्राणी का स्नेह शिव चरन से जुड़ गया था। पूरे मन प्राण से वो शिव चरन के लालन पालन में लगी थी। सुंदरी मस्त थी। दूध पिलाने के लिए ही कभी कभार इंद्राणी उसे पुकार लेती, वरना तो उस नन्हे फूल को वो अपने ही हाथों सींचती।

सुंदरी का मन राम चरन के साथ हॉसपिटेलिटी के व्यापार में जा जुड़ा था।

ये एक ऐसा व्यापार पैदा हुआ था कि सफलता पर लगा कर आसमान पर उड़ती नजर आती थी। आज के लोगों का शौक बदल गया था। फाइव स्टार होटलों में ठहरना, शादी करना और दावतें देना तथा सप्ताहों तक ठहर कर शौक मौज करना चलन बन गया था। मुंह मांगा महसूल मिलता था – कमाल ही था। ढोलू चेन ऑफ फाइव स्टार होटल्स फेमस होने लगी थी। राम चरन ने जैसे कमाल कर दिखाया था।

तनिक सी बूंदा बांदी भी महरौली को महकाने लगती थी।

“चलो, चलते हैं।” सुंदरी का आग्रह था। “आज लंबा घूम कर आते हैं।” उसने फरमाइश की थी।

दोनों महरौली के माहौल में घुसे थे तो आपा ही भूल गए थे। एक और लोगों के ठठ लगे थे और कोई बहस मुबाहिसा चल रहा था। दोनों ठहर कर सुनने लगे थे कि आखिर माजरा क्या था?

“शमशुद्दीन इल्तुतमिश के इस मकबरे के पास मैं जब भी आता हूँ मेरा मन न जाने क्यों सारी मोह माया त्यागने को कहता है।” एक बूढ़ा आदमी जमा भीड़ को बता रहा था। “मैं हर बार यहां से एक नई प्रेरणा ले कर जाता हूँ।” उसने जमा भीड़ को आंख उठा कर देखा था।

“गुलामी का अहसास तो नहीं होता सर?” भीड़ में से एक युवक ने पूछा था।

“गुलामी नहीं – ये तो गौरव की बात है बेटे! इसने दिल्ली पर 25 साल तक राज किया था। लेकिन दिल्ली उसे अब भूल चुकी है।”

“कितनी बुरी बात है, सर?” दूसरा अधेड़ उम्र का आदमी बोल पड़ा था। “मुगलों को तो भारत से जाना ही नहीं चाहिए था। बुरा हो उन अंग्रेजों का जिन्होंने मुगलों की सल्तनतें उखाड़ दीं!”

“तुम मेरा मखौल उड़ा रहे हो?” वह बूढ़ा व्यक्ति नाराज हो गया था। “मैं इतिहास का ज्ञाता हूँ। प्रोफेसर ओम प्रकाश फ्रॉम डलहौजी यूनिवर्सिटी ..”

“तो क्या अंग्रेज और मुगल, दोनों के दलाल हो? हाहाहा! होहोहो!” पीछे खड़े सभी लोग हंस पड़े थे।

“बेवकूफ ..!” बूढ़ा प्रोफेसर भीड़ के भीतर से उस आदमी पर पिल पड़ा था।

घूंसा लात आरंभ होने से पहले राम चरन और सुंदरी वहां से चल पड़े थे।

“ये नई पीढ़ी के हिन्दू बिच्छुओं की तरह डंक मारते हैं।” राम चरन ने मन ही मन सोचा था। फिर उसे याद हो आया था कालू और उसके दोनों बेटे। “चलते हैं आज कालू के यहां खाना खाते हैं।” राम चरन का सुझाव था। “बड़े दिन हुए ..”

“ओह यस! सुंदा खाना खिलाता है बड़े प्यार से!” राम चरन ने याद दिलाया था।

राम चरन की निगाह पड़ी थी तो वो हैरान रह गया था। बोर्ड पर लिखा था – कली राम का ठिकाना – पेट भर के खाना। होटल के सामने खूब भीड़ लगी थी। कालू काम में बेदम था। लेकिन राम चरन और सुंदरी को आया देख वह खुशी से उछल पड़ा था।

“प्रणाम सर!” उसने राम चरन के पैर छूए थे। “नमस्ते मेम साहब!” उसने विनम्रता पूर्वक सुंदरी का अभिवादन किया था। “अंदर केबिन में बैठिए!” उसने आग्रह किया था।

कली राम के ठिकाने पर आ कर आज राम चरन और सुंदरी एक बार फिर कालू के प्रति सम्मान से भर आए थे।

“दोनों बेटे नहीं दिखे?” राम चरन का प्रश्न था। “आज तो संडे है!” उसने कालू को याद दिलाया था।

“बिहार चले गए हैं।” कालू का चेहरा उतर गया था। “दोनों ने शादी नहीं की। श्यामल बीमार रहती है और अब तो मेरा भी मन ..”

“हुआ क्या?” सुंदरी ने पूछ लिया था।

“देश सेवा करने गए हैं। कहते हैं दिल्ली में सब बिहारी कह कर हमें गाली देते हैं। बिहार पिछड़ा है। हम बिहार को भारत का सर्व श्रेष्ठ प्रदेश बना कर दिखाएंगे।” कालू की आवाज डूबने लगी थी।

अचानक राम चरन ने प्रोफेसर ओम प्रकाश पर पड़ते लात घूंसे देख लिए थे।

आज की ये दोनों घटनाएं राम चरन को सताने लगी थीं।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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