बरसात के मौसम में जब मेहरौली भीग कर खड़ी हो जाती है तो मोर नाच-नाच कर उसका उत्साह दोगुना कर देते हैं। दर्शकों की बहुरंगी भीड़ को बैठने तक की जगह नहीं मिलती। स्टूडेंट से लेकर जाने-माने स्कौलर तक यहां हाजिरी लगाते हैं।
सुंदरी का मन बहलाने के लिए राम चरन उसे ले कर इस मन मोहिनी भीड़ में आ मिला था। प्रेग्नेंसी का ये पीरियड सुंदरी को बेचैन बनाए था।
“बताओ चन्नी इन दो कब्रों में से रजिया सुल्तान की कब्र कौन सी है?” सुंदरी ने यों ही पूछा था राम चरन से।
“मुझे क्या पता!” राम चरन ने कंधे उचका कर साफ मना कर दिया था।
“क्यों? इतिहास नहीं पढ़ा!” सुंदरी ने प्रश्न दागा था। “अगर महेंद्र होता तो ..!” सुंदरी ने रुक कर राम चरन को देखा था। “हम दोनों इतिहास के स्टूडेंट्स थे। उसी ने बताया था कि रजिया की कब्र ये वाली है। और वो वाली ..!”
“ये फिजूल की बातें हैं, सुंदा!” राम चरन ने खीजते हुए कहा था।
“नहीं चन्नी! मैंने इसी सब्जैक्ट को ले कर केंब्रिज में रिसर्च पेपर लिखा है। एंड यू नो आई गौट माई ऑनर्स ..! मैंने रिसर्च में साफ-साफ लिखा है कि महरौली ही रजिया सुल्तान की राजधानी थी तो फिर उसका तुर्कमान गेट पर दफन होना क्या अर्थ रखता है? लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि रजिया सुल्तान की कब्र हरियाणा के कैथल शहर में है और इसे देखने सन् 1938 में लॉर्ड लिलिथगो गए थे। दिल्ली के इतिहासकार आर वी स्मिथ कहते थे कि रजिया सुल्तान के दौर में शाहजहानाबाद के नाम की कोई जगह नहीं थी। और चन्नी कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि रजिया सुल्तान राजस्थान के शहर टोंक में चिर निद्रा में सो रही हैं।”
“क्या मतलब निकलता है इसका सुंदा?”
“निकलता है! मतलब निकलता है!” सुंदरी ने जोर देकर कहा था। “मैं तो बचपन से ही रजिया सुल्तान की फैन हूँ। कहते हैं – बहुत न्याय प्रिय शासक थी। भेद भाव नहीं करती थी – हिन्दू मुसलमान के बीच। बेहतर घुड़सवार थी और कहते हैं कि ..”
“कभी कोई जंग नहीं लड़ी थी?” राम चरन ने बात काटी थी। “बुल शिट!” उसने सुंदरी का प्रतिवाद किया था।
सुंदरी चुप हो गई थी। उसे राम चरन का किया प्रतिवाद बुरा लगा था। उसे न जाने क्यों आज महेंद्र की याद हो आई थी। महेंद्र हमेशा ही उसका मन रखता था और ..
“हिन्दुओं को फिर से गुलाम बनाने का इससे अच्छा वक्त और कभी नहीं आएगा!” राम चरन अचानक रूमी की आवाजें सुनने लगा था। हिन्दुस्तान में घुसने से पहले छह महीने तक उसने उसे रात दिन ट्रेनिंग में रगड़ा था। उसने हिन्दुओं की एक-एक आदत, नस और नाड़ी खोल-खोल कर उसे समझाई थी। “ये अपना सब कुछ भूले बैठे हैं।” वह कहता था। “अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म ये भूल चुके हैं। न अब ये मौर्य हैं न आर्य हैं। अनपढ़ गंवार हैं। पढ़ने के लिए ईसाइयों के पास इंग्लैंड चले जाते हैं और वो इन्हें मुगल इतिहास पढ़ा कर वापस भेज देते हैं। हाहाहा!” रूमी दहाड़ मार कर हंसा था।
राम चरन बैठा-बैठा हंसने लगा था तो सुंदरी ने उसे मुड़ कर देखा था।
“इट्स रियल टाइम टू सबजूगेट देम।” रूमी की आवाज में दम था। “इस्लाम ही एक ऐसा धर्म है जो धतूरे की बेल की तरह बढ़ा है!” फिर से हंसा था रूमी। “और अबकी बार ये ईसाई भी हारेंगे!” उसका अनुमान था। “बच्चे हैं नहीं! बूढ़े हैं।” रूमी ने कैच पॉइंट सामने रख दिया था। “और देखो! ईसाइयों से सावधान रहना। ये हमसे भी आगे चल रहे हैं – हिन्दुस्तान में!”
“बेशक!” राम चरन ने स्वीकार में सर हिलाया था। “इनकी पकड़ बहुत मजबूत है। शिक्षा के लिए हिन्दू युवक इनकी शरण में आ बैठा है।”
“नाराज हो गए ..?” सुंदरी ने आहिस्ता से पूछा था। “क्या है कि .. इतिहास मुझे ..”
“मुझे अच्छा नहीं लगता।” राम चरन का दो टूक उत्तर था।
“सॉरी बाबा ..!” सुंदरी ने राम चरन को जांघ पर छू दिया था।
“चलो! तुम्हारे फेवरेट गोल गप्पे खिलाता हूँ।” राम चरन ने सुंदरी को आंखों में देखा था।
राम चरन आज कहीं बहुत गहरे में अपनी जीत का जश्न मना रहा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड