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राम चरन भाग अठहत्तर

Ram Charan

चिराग ऑडीटोरियम मुनीर खान जलाल जैसे ही आगंतुकों से खचाखच भरा था। दुनिया के हर कोने से खलीफाओं के नुमाइंदे पधारे थे। उन सब का एक ही उद्देश्य था – जिहादी इस्लाम! उस अंतिम जिहाद की रूपरेखा तय होनी थी जिसके बाद दुनिया में इस्लाम के सिवा और कोई धर्म न बचेगा।

अचानक ऑडीटोरियम की विशाल स्क्रीन सफेद रोशनी से सजग हो उठी थी। फिर बादलों की गर्जन तर्जन जैसा नाद निनाद सुनाई दिया था। फिर एक ऐलान आना आरंभ हुआ था –

अल्लाह आसमानों और जमीन की रोशनी है। उसकी रोशनी की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक उसमें एक चिराग है। चिराग एक शीशे के अंदर है। शीशा ऐसा है जैसे एक चमकता तारा। वह जैतून के एक ऐसे मुबारक दरख्त के तेल से रोशन किया जाता है जो न पूर्वी है न पश्चिमी। उसका तेल ऐसा है गोया आग के छूए बगैर ही खुद ब खुद जल उठेगा। अल्लाह अपनी रोशनी की राह दिखाता है – जिसे चाहता है। और अल्लाह लोगों के लिए मिसालें बयान करता है और अल्लाह हर चीज को जानने वाला है।

जैसे ही आवाज बंद हुई थी सभी लोग खबरदार हो कर बैठ गए थे।

इस बार ऑडीटोरियम की विशाल स्क्रीन पर दुनिया का नक्शा उभरा था। नक्शे पर हरे, ला और पीले रंगों से मुसलमान, ईसाई और हिन्दुओं को दर्शाया गया था। नक्शा देखते ही दर्शकों की समझ में संसार की विभिन्न आबादियों का अनुमान लगाना आसान हो जाता था।

“इस्लाम ने जो हासिल किया है वो बेजोड़ है।” वही आवाज लौटी थी। “रहा कितना है जीतने के लिए? बस इस बार – यानी कि आखिरी बार आप लोगों ने दम लगाना है और ..” आवाज रुक गई थी। “इस बार का कठिन मोर्चा हिन्दुस्तान से ही है।” आवाज ने कह सुनाया था।

मुनीर खान जलाल, शगुफ्ता सोलंकी और मंजूर अहमद ने एक दूसरे के हाथ कस कर पकड़ लिए थे!

“मुसलमानों ने हिन्दुस्तान की ईंट से ईंट बजाई, नर संहार किए। लालच दिए। धर्म परिवर्तन कराए लेकिन इन जनेऊ धारियों को जीत नहीं पाए। न जाने क्या जज्बा है इस जनेऊ में कि अंग्रेज भी पूरी ताकत लगा कर इन्हें गुलाम नहीं बना पाए। एक फकीर ने – जिसका नाम था गांधी अंग्रेजों को फटकार कर देश से बाहर भगा दिया। अंग्रेजों ने मुगलों को हरा दिया था लेकिन वो हिन्दुओं को जीत न पाए थे।

आवाज रुकी थी तो एक चुप्पी छा गई थी। वहां बैठे इस्लामिक विद्वानों ने फिर से अपनी अकल के घोड़े दौड़ाए थे तो पाया था कि दुनिया की कोई भी शक्ति सनातन को परास्त न कर पाई थी। हिन्दू इस सनातन की छांव में बैठे हमेशा से फले फूले हैं, जबकि आक्रमणकारी सनातन को मिटाने में जुटे रहे हैं।

“सनातन को जीतने के लिए एक ही उपाय है – हिन्दुओं के पेट में घुस कर बम फाड़ना!” वही आवाज लौटी थी। फिर बम फटने का निनाद सुनाई दिया था। पूरा चिराग ऑडीटोरियम कांप उठा था। “इस बार वो गलती नहीं करनी!” अंत में एक हिदायत भी सुनाई दी थी।

शांति लौटी थी तो होश भी लौट आया था।

“आप तो अब हिन्दुओं के पेट में घुस चुके हैं, सर!” शगुफ्ता सोलंकी ने हंस कर कहा था। “अब तो आपने केवल बम फाड़ना है।”

“नहीं जी!” मंजूर अहमद ऐंठता हुआ बोला था। “इतना आसान नहीं है माई डियर। ये हिन्दू लोग जिस माटी के बने हैं वो और किसी भी कॉन्टीनेंट में नहीं मिलती। इन जैसी देश भक्ति मैंने और कहीं नहीं देखी। इनके स्कूल में क्या स्क्रिप्ट लिखी है कोई बांच ही नहीं सकता!” मंजूर अहमद ने उन दोनों को एक साथ देखा था। “हम हमारे मदरसों में रात दिन कुरान रटाते हैं। अल्लाह के आदेश बताते हैं फिर भी हिन्दुओं जैसी बेलॉस कुर्बानी हम नहीं कर पाते!”

“साइकोलॉजिकली दे आर सुपीरियर, सर!” शगुफ्ता सोलंकी ने अपना मत बताया था। “मुसलमानों को ये बराबरी पर बिठाते कब हैं?”

“अब हम इन्हें बराबरी पर नहीं बिठाएंगे!” मुनीर खान जलाल ने आंखें तरेरी थीं। “इस बार हम नहीं हारेंगे, मंजूर अहमद!” उसने दृढ़ स्वर में कहा था।

“आई विश यू ऑल दि बैस्ट सर!” मंजूर अहमद ने हंस कर मुनीर खान जलाल का हाथ दबाया था।

“क्या आज रात भी सितारों के साथ सैर पर निकलोगे?” शगुफ्ता सोलंकी ने पूछा था और वो खिलखिला कर हंस पड़ी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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