Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

राम चरन भाग अट्ठाईस

Ram Charan

कालू की आज छुट्टी थी। लेकिन राम चरन को मरने तक की फुरसत न थी।

आज शिव चौदस थी। मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटी थी। पूजा पाठ चल रहा था। शिव पर लोग दूध चढ़ा रहे थे, बेल पत्र अर्पण कर रहे थे और न जाने कौन-कौन किस-किस तरह की पूजा अर्चना में उलझा था। पंडित जी को भी सांस लेने तक की फुरसत न थी।

“क्या वो भी आएगी ..?” राम चरन ने स्वयं से प्रश्न पूछा था।

उसका मन मंदिर में न था। वह तो सुंदरी की तलाश में किन्हीं बियाबानों में भटक रहा था। लाख कोशिश के बाद भी राम चरन सुंदरी के हुस्न के जादू को मोड़ नहीं पाया था। उसे आज जैसे नया जन्म मिल गया था और वो चाहता था कि सुंदरी के साथ फिर से संबंध बनाए और ..

विगत बार-बार आ कर राम चरन से चिपकता था। बार-बार उसे याद हो आता था कि किस तरह वह प्रेम सागर में हिलोरें खाता-खाता सात समुंदर पार पहुंच जाता था और ..

अचानक राम चरन ने देखा था कि मंदिर के फर्श पर बिछी दरी पर लोग बैठने लगे थे। पंडित कमल किशोर ने आसन ग्रहण किया था। सामने धरे माइक पर उन्होंने प्रवचन आरंभ किया था।

“हमारी भाव प्रक्रिया ही हमारा व्यक्तित्व बनाती है।” पंडित जी कह रहे थे। “जैसे-जैसे हमारा चिंतन चलता है, वैसे-वैसे ही हमारा निर्माण भी होता रहता है। हमारी विचार धारा का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।”

राम चरन को पहली बार अहसास हुआ था कि पंडित कमल किशोर प्रकाण्ड विद्वान थे। उसने सुना तो था लेकिन देखा आज ही था। जो पंडित कमल किशोर बता रहे थे उसकी तो समझ से बाहर ही था। वह तो ..

“अभी तक वो क्यों नहीं आई?” राम चरन ने फिर से प्रश्न पूछा था।

औरतों के हुजूम उमड़ पड़े थे। लेकिन वो कहीं भी नजर नहीं आई थी। फिर राम चरन अनुमान लगाने लगा था कि वो शायद .. इस तरह के पूजा पाठ में विश्वास नहीं रखती होगी। क्या था – मूर्ति पर दूध चढ़ाना? मूर्ति को भोग लगाना? उसे तो केवल सुंदरी ही सत्य लगी थी – ढोलू शिव नहीं! ढोंग था – वह सोचे जा रहा था। जबकि सुंदरी तो सौंदर्य का समुंदर थी। उसका मन था कि एक बार उस सुख के समुद्र में छलांग लगाए और बहता ही चला जाए – कहीं तक भी!

“ढोलू शिव चुप क्यों हैं?” राम चरन के मन में एक संवाद घटा था।

“हां! व्रत है!” उसी के अंतर से उत्तर आया था। “लेकिन सुंदरी ही जीवंत है। वह तो .. वह तो ..” राम चरन का दिमाग अब सुंदरी का गुलाम था।

देर रात तक शिव चौदस का समारोह चला था। पंडित जी को विदा कर हारा थका राम चरन गर्भ गृह में लौटा था।

“आई नहीं!” राम चरन ने निराश उदास स्वर में कहा था।

और तब इसी निराशा के बीचों-बीच उसका विगत आ खड़ा हुआ था।

“नहीं-नहीं! मैं तुम्हें नहीं जानता!” राम चरन कूद कर अलग खड़ा हो गया था। “मैंने कुछ नहीं किया!” उसने धीमे स्वर में कहा था। “मैं तो वहां था ही नहीं!” वह बताता रहा था। “मेरा तो कोई दुश्मन भी नहीं ..” उसने स्पष्ट कह दिया था।

अब विगत भी व्रत बन गया था। टल ही नहीं रहा था। जा नहीं रहा था। डरा रहा था। राम चरन को न उसे उगलते बन रहा था न निगलते! पंडित कमल किशोर का प्रवचन सुन राम चरन को उबकाइयां आने लगी थीं। जिस पवित्रता की बातें पंडित कमल किशोर करते रहे थे वह तो उसकी समझ से बाहर की बातें थीं।

“क्या मुझसे भी झूठ बोलोगे? मुझे भी दगा दोगे?” सुंदरी प्रश्न पूछ रही थी।

“नहीं-नहीं! नहीं सुंदरी मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगा! मैं वायदा करता हूँ – कि ..”

राम चरन सुंदरी की खातिर अपने संसार को त्याग बैठा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Exit mobile version