Pen की भी प्यारी सी कहानी है.. और जीवन की यादों में ये pen एक महत्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं।
सभी का तो पता नहीं ! पर हाँ! मेरी यादों का तो पन्ना हैं.. ये pen
बड़ा मस्त अनुभव था.. जब पाठशाला में pen की शुरुआत हुई थी।
तरह-तरह के सुंदर ink-pen का इस्तेमाल किया था.. शुरू-शुरू में तो कागज़ पर ख़ूब ज़ोर लगा कर लिखा करते थे.. धीरे-धीरे आदत में समा गए थे.. ink-pen
वो चेलपार्क की इंक भी ख़ूब याद है.. जो जल्दी-जल्दी इंक ख़त्म कर.. pen में भरते रहते थे।
कभी-कभी जब चलना बंद हो जाता.. तब छिड़क-छिड़क कर इधर-उधर इंक के छींटे मार चलाया करते थे। या फ़िर इंक छिड़क-छिड़क , कॉपी का पीछे वाला पन्ना ही सिहाई से भर दिया करते थे।
Pen की दुनिया में ही उन दिनों ink-pen के ही भाई बॉल-pen से मुलाकात हुई थी।
Ink-pen के मुकाबले ज़्यादा भाया था.. ये बॉल pen
स्कूल में allowed नहीं था.. फ़िर भी चोरी-छुपे हम इसका इस्तेमाल ज़रूर करते थे.. इससे ink-pen के मुकाबले तेज़ लिखा जाता था.. और बार-बार इंक भरने का झँझट भी नहीं था। रिफिल बदलो छुट्टी!
उन दिनों हमारे ज़माने में pilot pen भी ख़ूब चले थे.. बहुत ही smooth चलते थे.. मस्त handwritting आता था..pilot pen use करने से।
ग्यारहवीं कक्षा में.. pen के राजा chinese pen मुझे gifit में मिला था.. वाह! सबसे मस्त pen पूरे स्कूल लाइफ में यही लगा था।
पता नहीं क्यों यह chinese pen सबसे भाग्यशाली साबित हुआ था.. मेरे लिए!
परीक्षा में इस chinese pen से पेपर करने पर बढ़िया नंबर आया करते थे। अपनी तैयारी से ज़्यादा इस chinese pen को ही lucky मान बैठी थी.. मैं।
आज भी किसी भी pen पर नज़र पड़ते ही.. सारे pen उनसे जुड़े क़िस्से और बिता हुआ, एक जीवन का पन्ना फ़िर खुल जाता है.. हाँ! और वो pen भी.. जिसमें कई सारे रंगों की रिफिल हुआ करती थी.. मेरी मन पसंद तो उसमें से हरे रंग की रिफिल थी.. याद आ जाता है।