ना जाने क्या मजबूरी है
लोग राष्ट्र को नहीं
पार्टी को
देते हैं महत्व ज्यादा
बात लोकतंत्र की होती है
पर
नेता नहीं बदले जाते
पार्टी मे जिनकी
परिवार तंत्र
वो लोकतंत्र समझाते हैं
इस्तीफ़े आते हैं प्यादों के
जो हैं हार के जिम्मेदार
वो साफ साफ हैं
बच जाते!
ना जाने क्या मजबूरी है
क्यों एक नाम जरूरी है?
क्यों एक ही नाम
जरूरी है??
- आशीष वर्मा