दिन ढल रहा था
अँधेरा बढ़ रहा था
निशाचरों का साम्राज्य था
मन डोल रहा था
डर था कि क्या अब
रहेगा अँधेरा ही?
लम्बी जरुर थी रात
पर अब
अँधेरा छंटने लगा है
उजाला बढ़ता ही जा रहा है
निशाचर छुपने लगे हैं अब
मत व्यथित हो मन
नई सुबह आने को है!
दिन ढल रहा था
अँधेरा बढ़ रहा था
निशाचरों का साम्राज्य था
मन डोल रहा था
डर था कि क्या अब
रहेगा अँधेरा ही?
लम्बी जरुर थी रात
पर अब
अँधेरा छंटने लगा है
उजाला बढ़ता ही जा रहा है
निशाचर छुपने लगे हैं अब
मत व्यथित हो मन
नई सुबह आने को है!