तुम मरणासन्न थे – मैंने तुम्हें दूध पिलाया – जिलाया और बड़ा किया! तुम गुलाम थे – मैंने तुम्हें ज्ञान दिया – स्वतंत्र होने की प्रेरणा दी! तुम समर्थ हुए – मैंने तुम्हें संवाद दिये – तुमने तहलका मचाया – आजाद हुए! अब तुम प्रबुद्ध हो – मैं तुम्हें प्रज्ञा दूँगी – ताकि तुम विश्व को प्रकाशित कर दो! मैं तुम्हारी जननी हूँ – मैं हिन्दी हूँ! हिन्दी दिवस पर विशेष मेजर कृपाल वर्मा