महान पुरुषों के पूर्वा पर की चर्चा !
भोर का तारा – नरेन्द्र मोदी .
उपन्यास अंश :-
ललचाई आँखों से मैं दिल्ली की ओर देखने का अपराध कर बैठा था !!
एक जिद्दी सैनिक की तरह -मैं भी अब सामने मुंह फाड़े खड़ी मौत के मुंह में बढ़ता ही जाना चाहता था ….अपने बढ़ते क़दमों को रोकना न चाहता था ! अंजाम की अगर सैनिक को परवाह न थी …तो मुझे भी कब थी ? मैं भी सैनिकों की तरह ही ‘आगे-आगे’ बढ़ने को बावला हो गया था !
पीछे मुड कर देखना मेरे गणित के हिसाब से गलत है !!
पर हाँ,मेरी द्रष्टि बार-बार उठ कर मुझे उन संग्रामों के द्रश्य दिखा रही थी …जिन्हें हमारे अगुआ हार गए थे …और जिन्हें विरोधियों ने चाल-चालाकियों से जीता था ? अपमानित किया था -उन्हें …कठोर दंड दिए थे …और फांसियां तोड़ीं थीं . मुझे एहसास था कि दिल्ली में कुर्सी पर ईसा बैठा है ! मैं जानता था कि ईसा और इस्लाम ने -प्रथ्विराज जैसे वीर को मारा था …भगत सिंह जैसे देश-भक्त को फांसी की सज़ा दी थी ….और जलियाँ वाला बाग़ जैसा काण्ड किया था …? उन्हें जनता से नहीं -सत्ता से प्यार था ….! ये सब कुछ अपने स्वार्थ के लिए करते थे ….?
आज भी …हमारी आँखों के सामने दिल्ली में वही सब हो रहा था …जो हमारे हित में नहीं ….उन के हित में था ! और वही आश्चर्य था …कि हमीं …हमारे लोग ही …भारतीय उच्च वर्ग के लोग ही ….उन के सहयोग में थे …जब कि जनता ……
न जाने कैसे मैं अब अपने हुए शहीदों की लाशों से बतियाने लगा था ….?
“हमारी मांगें पूरी हों ….!!” पहली ही बार मैं दिल्ली में -झंडा हाथ में लिए नारे लगा रहा था ! ये सन १९७१ का समय था ! इंदिरा जी का शाशन काल था . अटल बिहारी बाजपाई उन के विरोध में उतरे थे . “हम अपना हक ले कर रहेंगे ….!!” हमारी आवाजें आसमान तक जा पहुँचीं थीं .
तभी पुलिस ने आ दबोचा था -हमें ! पकड़ कर जेल में बंद कर दिया था !
तब …हाँ …तब मैं सकते में आ गया था ! तनिक डर भी गया था . मुझे लगा था कि ये खेल इतना आसान न था – जितना कि लगता था …? सत्ताधारियों के सामने खड़े हो कर …अपनी बात कहना – बहुत कठिन बात थी ! हाँ,हाँ ! तभी …तभी मुझे गाँधी जी याद आए थे – जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के सामने अपनी आवाज़ बुलंद की थी …आज़ादी मांगी थी ….और ….
“घबराना मत,नरेन्द्र !” अटल जी मुस्करा रहे थे . “ये जेल यात्राएं …देश-भक्तों के लिए …गहनों जैसी हैं …जो उन्हें चमका देती हैं ! आये हो तो …डटे रहना ….!!” उन का आदेश था .
इंदिरा जी का शाशन काल बड़ा ही रोचक था ! देश ने युद्ध जीता था ! देश का मान बढ़ा था . देश में प्रगति हो रही थी . पोकरण में विस्फोट हुआ था ….तो भारत एक और इनाम पा गया था ! पाकिस्तान के दो टुकडे हो गए थे ! ये एक बड़ी उपलब्धि थी ! अमेरिका भारत से प्रसन्न न था . लेकिन रूस के साथ २० साल तक साथ रहने के वायदे हो चुके थे ! ब्रिटेन अपनी अटकलें लगा रहा था ….ताकि खाने-कमाने का उस का भी जरिया लगा रहे …..
छोटी-मोटी राजनैतिक पार्टियों के लिए देश में जगह न बची थी ! कांग्रेस का रूप-स्वरुप खूब बड़ा हो चला था ! पुराने कांग्रेसी नेता …मार खा कर लौट गए थे …और अब घाव चाट रहे थे ! इंदिरा जी ने कांग्रेस से अलग हो कर …अब अपनी अलग पार्टी बना ली थी ! संजय गाँधी पूरी तरह से राजनीति में आ चुके थे ! अब उन की मारी ही हलाल थी ….
संजय गाँधी का मारुती उद्योग भी अब जोरों से चर्चा में था ….!!
“सच मानिए , मिश्र जी !” वरुण जी बता रहे थे . “मेरा माथा तो तभी ठनका था …. जब मैंने श्रीमती इंदिरा गाँधी को ..लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर …हँसते देखा था …?” उन की आँखों में एक अजीब आश्चर्य था . “मैं तो तभी भांप गया था कि …अब नेहरू-गाँधी का ही राज रहेगा ….देश में …” उन्होंने हाथ झाडे थे . “और वही बात सच है …!!” उन का इशारा संजय गांधी की ओर था .
बात भी साफ़ होती जा रही थी ! होते सुधार …संचार …प्रगति …और प्रतिष्ठा में …केवल एक ही परिवार का नाम बार-बार आ रहा था ! इंदिरा …नेहरू …और गाँधी के अलावा …और किसी नाम की चर्चा ही न थी …? जैसे भारत का पूरा-का-पूरा विगत …मर गया था …? जैसे यहाँ न कोई शहीद था …और न ही कोई सैनिक …! जैसे सारे-का-सारा श्रेय एक ही परिवार के नाम लिख दिया गया था ….?
रोकता भी तो कौन …? इंदिरा जी ने सब नेताओं को तो घर बिठा दिया था …?
और अब जो कोई हिम्मत भी करता …उस के लिए संजय गांधी ब्रिगेड तैयार हो चुका था ! यूथ -पावर को …संजय गाँधी ने अपने हाथ में ले लिया था ! हर संभव …और असंभव ..काम अब उनके ही ज़रिए होने लगा था ! उन्हें भावी प्रधान मंत्री के रूप में लोग देखने लगे थे !!
हम ….हमारी पार्टी …और हमारा रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ….किसी गिनती में न था ! हमें तो जड़-मूल से मिटाने की मुहीम बन रही थी ! हम तो छुप-छुप कर ही अपना काम कर पा रहे थे ? लेकिन अपने धेय के साथ …पूरी लगन से हम लगे थे !!
सुना था कि ….बिहार में कोई चिंगारी सुलग उठी है ….? रेल-वे में भी उन्हीं दिनों …जबरदस्त स्ट्राईक चल रही थी ! कोई थे -जार्ज फर्नांडिस …जिन्होंने बीड़ा उठाया था ..शाशन के खिलाफ ! लेकिन उन्हें हटाने ,,,और मिटाने के लिए …पुरजोर कोशिशें होने लगीं थीं ! इंदिरा जी भी जिद पर थीं ….कि वो जार्ज के सामने और नहीं झुकेंगी ….! और जो भी हो रहा था – सब ठीक था …श्रेष्ठ था !! उन की जय-जयकार थी ! हर ओर उन्ही का जय-घोष था …स्वागत था ! लोग अब इंदिरा जी का लोहा मानने लगे थे ! फिर ये जार्ज जैसा मच्छर उन का बिगड़ भी क्या लेता ….?
हम जैसों की गिनती तो अब तमाशबीनों में ही थी !
और जो जलजला बिहार में आया था -उस के प्रणेता थे – जन -नायक श्री जय प्रकाश नारायण ! कहते थे – ये गांधीवादी हैं ….और सर्वोदय चलाते हैं ! ये समाजवाद के संवाहक हैं और प्रजातंत्र की वकालत करते हैं ! ये स्वतंत्रता सेनानी हैं …और देश की आज़ादी के लिए जेलों में रहे हैं ! गाँधी जी के साथ कन्धे-से-कन्धा मिला कर इन्होने स्वतंत्रता संग्राम में काम किया है !
मैंने भी अब मन से जय प्रकाश नारायण को खोजा था ! देखा था …टटोला था …कि अगर वहां कुछ है तो मैं भी ले लूं ….इन्हें आत्मसात कर लूं …? मैंने पाया था – कि जय प्रकाश नारायण …एक शु द्ध समाजवादी आत्मा थे …अपूर्व थे …और उन के सपने अभी तक उन के ही पास बैठे थे ! उन की बातें न तो गाँधी जी ने सुनीं थीं ….और न ही नेहरू जी ने मानीं थीं ! उन्हें बस यों ही एक खाली स्थान पर रख दिया गया था ….जहाँ उन्हें खप जाना था ….वक्त के साथ-साथ ……
लेकिन जय प्रकाश नारायण भी किसी जलजले की तलाश में ही जी रहे थे …..?
उन्होंने उन तमाम विद्रोहियों ….क्रांतिकारियों ….और उन समर्थ समाजवादियों को पढ़ा था …जो आज के समय में प्रासंगिक थे ! मार्क्स .लेनिन ,माओ और लिंकन …तक उन्होंने सब को कुरेदा था ! लेकिन भारत के सन्दर्भ में उन्हें कोई उत्तर आज तक न मिला था ! वह चाहते थे ‘सर्वोदय’ और वो चाहते थे …एक ऐसी सम्पूर्ण व्यवस्था ‘राम राज्य’ जैसा एक स्वप्न …जहाँ हर कोई जिए …हक़ के साथ रहे …और प्रगति करे !
लेकिन अब तो देश …पूरा -का-पूरा देश एक ही परिवार की मुट्ठी में आ कर बैठ गया था ….?
अब तो केवल संजय गाँधी ही प्रासंगिक रह गए थे ….??
इंदिरा जी की आड़ में संजय शाशन चल पड़ा था ! हर किसी अनुयाई को अब संजय गाँधी का खौफ सताने लगा था ! और लोग मानते थे कि जय प्रकाश नारायण का उठा जलजला भी …शांत हो जाएगा ….कुछ कर न पाएगा …?
लेकिन जब जार्ज फर्नांडिस …आ कर जय प्रकाश नारायण से मिले …तो बात ही बदल गई ! लगा -तूफ़ान आएगा ….! अवश्य आएगा …! और जो नेता बैठ कर घाव चाट रहे थे – वो भी ….अब सक्रिय हो गए ….और जय प्रकाश नारायण के साथ आ मिले ! देश के आर-पार एक साथ एक आवाज़ गूँज गई ! हवा हिल गई ! सत्ता डर गई ! तब इंदिरा गाँधी ने ईसा-मूसा के दिए महामंत्र का जाप किया ….और राष्ट्रपति फकुरुद्दीन अहमद से कह कर …देश में एमेर्जेंनसी …लगा दी !!
ये भी एक आश्चर्य ही था ….? मुझे याद है कि …एक भू-कंप जैसा देश में आया था …और रातों-रात नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं थीं ! उन्हें जेलों में भरा गया था …और चारों ओर एक अनाम-सा संग्राम छिड़ गया था . तब मैं भी तनिक-सा समझदार हुआ था ! तब मुझे भी काम मिलने लगा था ! मुझे कहा गया था कि मैं बच कर रहूँ ! कहीं मैं जेल न चला जाऊं …? क्यों कि मुझ जैसे लोगों को ही तो अब काम चलाना था …? पार्टी देखनी थी …काम देखना था …और जिन्दा भी रहना था …?
हाँ,मैं मानता हूँ कि रंग भी खूब आया था ! मैं कभी सिख बन कर भागता … तो कभी साधू बन जाता था ! मुझे गुप-चुप नेताओं से मिलने में …बहुत आनंद आता था ! उन के मन की बात और मंसूबे दूसरे नेताओं तक ले जाने में …मुझे गर्व महसूस होता था …! और तब …हाँ-हाँ तब मुझे भी कुछ-कुछ राजनीति समझ आई थी ! तब एक अलग -से …कोमल-सा अंकुर मेरे भीतर उगा था …जहाँ सियासत समझना …चलाना …और चरितार्थ करना …आना मुझे आवश्यक लगा था ! साधारण आदमी बन कर जीना तो …जीना ही है -कुछ करना नहीं है ? लेकिन कुछ करने के लिए तो …आदमी को सब कुछ आना आवश्यक है !!
“मैं कहता हूँ , आप लोग इस शाखा-वाखा का राग अलापना छोड़ दो !” मैने जय प्रकाश नारायण जी को कहते सुना था . “विलय कर दो …आर एस एस को …जनता पार्टी में ?” उन का कहना था . “हिन्दू राष्ट्र अब कोई ‘संभावना’ नहीं रह गई है ! ये मात्र एक विचार है – जो बौना है ! सर्वोदय को अपनाईये …जहाँ देश में …सब रहें-सहें …समान अधिकार ले कर सब चलें ….और सुखी जीवन जियें …?” उन की सलाह थी
“गलत कह रहे हैं , श्रीमान जी !” न जाने क्यों मैं चीख पड़ना चाहता था . “ये आप का सर्वोदय -ही अधूरा विचार है , हिन्दू राष्ट्र नहीं !” मैं चिल्ला कर कहना चाहता था . “हिन्दू राष्ट्र तो एक सही ‘संभावना ‘ है – जो आज नहीं तो कल -जैसी किसी सत्यता की तरह सही है ..और ये तो हो कर रहेगा …!” लेकिन तब मैं था -क्या …? एक मच्छर ही तो था ….उन महान जय प्रकाश नारायण जी के सामने …?
“ये ईसा और मूसा कभी नहीं चाहेंगे कि …हिन्दू धर्म,हिन्दू संस्कृति …और हिन्दू राष्ट्र बने …या हिन्दू किसी तरह से आगे बढ़ें …? ये तो हिन्दूओं को ….उन के धर्म को ….भाषा को …समाप्त कर के …समूल नष्ट कर के ही मानेंगे, श्रीमान !” मेरे विचार बहने लगे थे . “आप फिर एक बार गलती कर रहे हैं ?” मैं कह देना चाहता था . “ये देश को हिन्दूओं से फिर छीन लेंगे ! ये विश्वासघात करते हैं ! ये जाहिल हैं ….न्रशंस हैं …हत्यारे हैं ! आप इन्हें क्यों गले लगाना चाहते हैं ? ये हिन्दूओं के सगे नहीं हैं ….?” मैं अपने उदगारों को रोक ही न पा रहा था .
उस दिन ….हाँ,हाँ …उसी दिन ….आप के इस जिद्दी सैनिक नरेन्द्र मोदी का जन्म हुआ था ! उस दिन मैंने राजनीति को समझ कर और अपने गुरु अटल जी के चरणों में प्रणाम कर -हिन्दू राष्ट्र और हिंदुत्व की रक्षा करने का व्रत ले लिया था !
और आज मैं -उसी अपनी जिद पर कायम था !!
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श्रेष्ठ साहित्य के लिए -मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!