हम किस लिए लड़ते हैं?
इसलिए कि हमारे स्वार्थ आपस में टकराते हैं! हम हक मारना चाहतें हैं उनका जो कमजोर हैं, विवश हैं! हमारी आकांक्षाएं और हमारी महत्वाकांक्षाएं हमें जंग के मैदान में घसीट लाती हैं और खूब बिफर बिफर कर लड़ाती हैं!
हम लड़ रहे थे। भारत लड़ रहा था। इसलिए कि भारत का पड़ोसी सब कुछ हासिल करने के बाद भी अब फिर से सब कुछ छीन लेना चाहता था। उन्हें भारत ही चाहिये था क्योंकि उनके पुरखों ने भारत को जीत लिया था और अब उन्होंने जीत लेना था!
उन्होंने रात भर गोलाबारी की थी और हम रात भर बेचैन रहे थे कि ये इतना बड़ा तोपखाना कहां से ले आए जो लगातार बम वर्षा कर रहा था और वो भी हर बार नई दिशा से, नए स्थान से और नए अंदाज से!
“क्या करें वर्मा ..?” कर्नल डागर – पलटन के कमांडिंग अफसर ने मुझ से राय मांगी थी क्योंकि मैं उनका तोपखाने का सहायक और समर्थ ऑफिसर था।
“सर, एअर अटैक करा देते हैं!” मेरी राय थी। “वो लोग ऊपर से देख लेंगे कि मामला है क्या?” मेरा सुझाव था। “और नैपाम बम से हमले के लिए मांग रख देते हैं।”
“डिमांड बना कर भेज दो।” कर्नल डागर सहमत थे। “मैं कमांडर से बात कर लेता हूँ।” कहकर वो चले गये थे।
मैंने सुबह नौ बजे का समय देकर डिमांड बनाई थी और तीन सॉर्टी के लिए आग्रह किया था। तीन लड़ाकू विमानों ने आना था – नैपाम बम से लैस और ऊपर आकाश में उड़ान भर कर इन गोले बरसाते शैतानों को तलाश कर बर्बाद कर देना था। दो घंटे के बाद ही मुझे सूचित किया गया था कि हमारी डिमांड मान ली गई थी और विजय, अजय और राजा हमले पर आ रहे थे। मेरा मन फूल जैसा खिल गया था।
उनके आने से पहले अब मैं अपनी तैयारी में जुटा था। मैंने दुश्मन के इलाके में टारगेट चुने थे और उन्हें मोड़, पहाड़ी और रिज नाम देकर उनका डेटा तैयार किया था और तीनों को तीन रंग के धूंए से उजागर कर आने वाले दोस्तों को बताना था कि उनका संभावित क्षेत्र ये था और यहां ये शैतान थे .. लेकिन ..
ठीक नौ बजे मुझे रेडियो पर तीनों सूरमाओं ने आकर सलाम किया था और हुक्म मांगा था।
“गुड मॉर्निंग वैम्स!” ये विजय था जो मुझे पुकार रहा था। “मिशन ..?” उसका सीधा प्रश्न था।
“गो फॉर मोड़, स्मोक रेड!” मैंने विजय को मिशन बता दिया था।
अब विजय का काम था। उसने कहीं दूर पीछे भारत से मिले मिशन की ओर उड़ान भरी थी। चूंकि लड़ाकू विमानों की गति सुपरसॉनिक होती है अतः दूरी इन के लिए महत्व नहीं रखती। अगले ही पल विजय आसमान पर किसी अजूबे की तरह प्रकट हुआ था और सीधा दुश्मन के देश में जा डूबा था। उसने अब अपने मिशन को पहचाना था जिस पर लाल धुआं दिखाई दे रहा था।
“गॉट इट वैम्स!” विजय ने मुझे सूचित किया था। “नाला है, गहरा सूखा नाला! तोपों को गाड़ियों पर माउंट किया है ओर पूरे नाले में यहां से वहां जाकर ..”
अब आकर मेरी दृष्टि साफ हुई थी। अब आकर समझ आया था कि किस तरह तोपों का फायर भिन्न भिन्न दिशा और स्थानों से आता था।
विजय भारत में चला गया था और चंद मिनटों के बाद ही लौट आया था। वह अब दुश्मन के देश में सीधा घुसा था, फिर लौटा था और उसने सीधी जमीन की ओर डाइव मारी थी। फिर मोड़ पर आकर उसने नैपाम बम से हमला किया था! धरती हिल गई थी और मैं खुशी से उछल पड़ा था। धूंए का गुबार हवा पर छा गया था।
“डन इट वैम्स!” विजय बोला था।
“थैंक्स पार्टनर!” मैंने भी आभार व्यक्त किया था।
अब अजय आ रहा था।
“गुड मॉर्निंग वैम्स!” उसकी आवाज रेडियो पर चटकी थी। “मिशन ..?” उसने भी पूछा था।
“गो फॉर पहाड़ी! स्मोक ग्रीन!” मैंने उसे मिशन दिया था। “बेस्ट ऑफ लक अजय!” मैंने प्रसन्न होकर कहा था।
अजय ने भी सीधी दुश्मन के देश में उड़ान भरी थी और मिशन की पहचान की थी और भारत लौट गया था। फिर लौटा था – दुश्मन के देश में उड़ान भर लौटा था और कबूतर की तरह आसमान से जमीन पर गिरा था। फिर पहाड़ी पर नैपाम से वार किया था और .. वही वीभत्स दृश्य उठ खड़ा हुआ था। मैंने भी इस बार तालियां बजाई थीं।
“हैप्पी ..?” जाते जाते अजय ने पूछा था।
“माइटी हैप्पी! थैंक्स अजय!” मेरा उत्तर था।
और अब अंतिम प्रहार के लिए राजा आ रहा था। मैंने दुश्मन के देश में मचे हाहाकार के बारे सोचा था। बेहद प्रसन्नता हुई थी मुझे क्योंकि इन शैतानों ने हमारी नीद हराम करके रख दी थी।
“गुड मॉर्निंग वैम्स!” राजा का स्वर रेडियो पर चटका था। “मिशन ..?” उसने मांग की थी।
“वैरी वैरी गुड मॉर्निंग राजा!” मैं हंस रहा था। “गो फॉर रिज – स्मोक ब्लू!” मैंने उसे मिशन बांटा था।
मुझे अब पूरी पूरी उम्मीद थी कि राजा के प्रचंड प्रहार से रिज पर छुपा दुश्मन धराशायी हो जाएगा! हमारी सारी मुसीबतों का अंत आ जाना था।
“गॉट दी मिशन वैम्स!” राजा भारत में उड़ गया था। और फिर चंद मिनटों के बाद ही वह लौटा था, दुश्मन के देश में उड़ा था और बाज की तरह रिज पर झपटा था। मैंने उसे नीचे आते हुए देखा था। अब उसने रिज की ओर उड़ान भरी थी। लेकिन ये क्या ..?
मैं दूर बीन से राजा को सुपरसॉनिक गति से अपनी सीध में आते देख रहा था। उसने न जाने क्यों रिज पर हमला नहीं किया था। और जब वह मेरे सर पर आ पहुंचा था तो मेरी आंखें बंद हो गईं थीं! फिर उसने हमला किया था और नैपाम बम को पोस्ट में दे मारा था। सारी पोस्ट उड़ गई थी लेकिन मैं अभी भी अचेत हुआ घट गई घटना को समझ न पा रहा था। मैंने नैपाम बम को अपने सर के बालों को छूकर जाते महसूसा तो जरूर था .. लेकिन ..
“सॉरी पार्टनर!” राजा की आवाज थी। “मिस्ड दी मिशन!” उसने कहा था।
“ओह ब्लडी क्लाउन!” मुझे होश लौटा था तो मैं बोला था। “यू ऑलमोस्ट किल्ड मी!” मैंने शिकायत की थी।
चूंकि पोस्ट खाली थी अतः हमारा अपना कोई नहीं मरा था! लेकिन कर्नल डागर खुश नहीं थे। कोई भी और कैसी भी सामरिक चूक शुभ नहीं होती – उनका कहना था!
“आई वांट टू टैस्ट यॉर फायर प्लान!” कर्नल डागर का आदेश था। आक्रमण करने से पहले वो निश्चित कर लेना चाहते थे कि हमारा तोपखाना हमारी योजना के हिसाब से दिए और किये टार्गेट पर निश्चित किये समय पर गोले बरसाएगा? हमारी जीत का हमारी फायर प्लान एक अनमोल अवयव थी। “गेट मी ए राउंड ऑन गट्टा यारू!” उनका आदेश था।
अब होना ये था कि मैं अपने तोपखाने से एक गोला गांव गट्टा यारू पर फायर करूं। गट्टा यारू दुश्मन की पोस्ट थी जिसपर हमें आक्रमण करना था। मेरे ऑपरेटर ने मेरे कहने पर तुरंत ही फायर के आदेश भेजे थे और अब हम गट्टा यारू पर दूर बीन लगाये गोले के आने का इंतजार कर रहे थे। गोला आया था। फटा भी था। लेकिन गट्टा यारू गांव के ऊपर न फट वो हमारे सरों से तनिक दूर पोस्ट के नीचे ही जा फटा था और उसके फटने से जो धरती दहलाई थी, हम दंग रह गये थे!
“एरर एट गन!” मैंने आदेश दिये थे।
लेकिन कर्नल डागर का चेहरा जर्द पीला पड़ गया था। उनकी ऑंखों में घोर निराशा भरी थी।
“नो अटैक! आई विल नॉट गो फॉर गट्टा यारू!” वह कह रहे थे। फिर उन्होंने मुझे घूरा था। “कॉल यॉर बैटरी कमांडर!” उनका आदेश था।
एक अजूबा ही घट गया था। अगर गोला तनिक सा भी और आगे फटता तो हमारी जानें चली गई होतीं!
“सर गनर से गलती हुई है। उसने एक चार्ज बैग कम डाला था। उतना ही गोला शॉर्ट गिरा है।” मैं कर्नल डागर को मनाने लग रहा था। “एक मौका और सर .. जस्ट वन मोर चांस?” मैं आग्रह कर रहा था।
“तुम मेरी जगह होते तो क्या करते?” उनका प्रश्न था। “मैं अपनी पलटन को जान मान कर नहीं मरवा सकता!” वह कह रहे थे। “फॉर वन सिली मिस टेक ..”
“प्लीज़ सर! वन मोर चांस!” मैंने भीख जैसी मांगी थी। मेरा तो सारा हुनर ही दाव पर लगा था।
“ओके!” बड़ी ही सख्त आवाज थी उनकी।
तब गट्टा यारू पर एक गोला फायर के बाद फटा था तो कर्नल डागर तनिक आश्वस्त हुए थे। फिर एक के बाद एक गोला एक के बाद दूसरे टारगेट पर फटा था तो वो प्रसन्न हो गये थे। मेरी भी जान में जान लौट आई थी!
गट्टा यारू पर आक्रमण जिस तरह कामयाब हुआ था – एक कहानी जैसी ही लगी थी। हमारी उन दो गलतीयों से दुश्मन को अंदाज हो गया था कि शायद ही हम उन पर चढ़ाई करें। चालाक दुश्मन को नादान हमलावर के आने की उम्मीद थी। लेकिन जब रात के ठीक दो बजे मैंने तोपों का फायर खोला था तभी उनकी नींद टूटी थी! फिर क्या था? हम एक के बाद दूसरे मोर्चे को समेटते ही चले गये थे। हमने चुन चुन कर दुश्मन को मारा था, बंकरों से निकाल निकाल कर उन्हें कैदी बनाया था और उनकी पूरी पोस्ट को तहस नहस कर डाला था।
और अब हम अपने अपने नए बंकरों में थे। हमने अपने आप को पुन: संगठित कर लिया था और अब रात ढल गई थी, अंधेरा कोहरे को चाबी सोंप चला गया था। अब आकर तनिक सांस आई थी तो सैनिकों ने बोतलें संभली थीं और जंगल झाड़ी जाने लगे थे।
“धड़ धड़ धड़ धड़ाम!” मशीन गन का फायर आया था। सारा वातावरण बोल उठा था एक साथ!
“ये कौन सी बला टूटी?” सबका एक ही प्रश्न था।
शांति लौटी थी तो फिर किसी ने शायद बंकर से मुंह उठाया था और फिर फायर आया था। और अब तो जिसने भी बंकर से बाहर आने का जुर्म किया था, उसी के सर पर गोलियां बरसी थीं।
कर्नल डागर आग बबूला हुए गोलियों के एवज में गालियां दे रहे थे! किसी को कोई सूझ न थी। कोई नहीं जानता था कि ये गोलियां कौन, कहां से दाग रहा था और क्यों दाग रहा था? सुबह के नौ बज चुके थे। कोहरा तनिक छट गया था। लेकिन हम सब अपने अपने बंकरों में कैद थे!
“ये है साला सनीचर!” तभी मैंने देखा था कि करम वीर एक घायल हुए सैनिक को टांग से पकड़े घसीटता चला आ रहा था।
अचानक गोली आना बंद हो गई थी। हम सब की बंद छूट गई थी। जिसे करम वीर घसीटता ला रहा था – वह दुश्मन का सैनिक था। उसकी टांग में एल एम जी का बर्स्ट लगा था जो करम वीर ने मारा था। वह टेकरी पर बने गुप्त बंकर से बरामद हुआ था। रात की ढूंढ खखोर में ये गुप्त बंकर दबा ढका पहचान में ही न आया था। ये सैनिक अकेला रह गया था चूंकि इसका साथी मर चुका था!
“इसे कंबल दो। सर्दी में सिड़सिड़ा रहा है!” कर्नल डागर साहब का आदेश आया था।
“अरे, मानू इसे एक कप चाय भी पिलाओ!” मेजर दामोदरन भी बोल पड़े थे।
अचानक ही हम सब उस दुश्मन के सैनिक और हमारे प्राण लेवा सनीचर की सेवा में जुट गये थे!
लेकिन मैंने देखा था कि वो लाख प्रश्न पूछने पर मौन ही बना रहा था। उसका चेहरा निस्तेज था लेकिन उसकी ऑंखें बोल रही थीं। उन लाल पीली ऑंखों में जो मजमून लिखा था – मैं पढ़ कर हैरान रह गया था।
“गफलत में न रहना लोगों!” वह पुकार पुकार कर कह रहा था। “हम को मौका मिला तो हम तुम्हें बोटी बोटियों में काटेंगे .. ऑंखें निकालेंगे .. और .. और .. और ..”
उन लाल पीली उसकी ऑंखों से घृणा टपक रही थी, आक्रोश बह रहा था और उनमें एक जानी मानी नफरत थी जिसे हमारा उपकार और उपचार जीत न पाया था।
मेजर कृपाल वर्मा

