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खानदान 167

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” तू इस बुढापे के पास सामान को रखवा दे.. मैं इसे हाथ भी नहीं लगाऊंगा!”।

रमेश कहा-सुनी के बीच सुनीता से बोला था.. चाहता था, कि सुनीता अपने गहने अपने संग न ले जाकर उसकी माँ के पास ही रखवा दे.. ससुराल का मामला था.. छुट्टी बिताने दिल्ली पहुंचना था.. चारों तरफ़ से घिरी क्या करती..

” फ़िर मैं अपना वो वाला सामान रखवा दूं.. न! इनके पास!”।

सुनीता ने एकबार अपनी सबसे बडी दुश्मन रमा को अपना समझते हुए.. सवाल किया था।

” हाँ! अब सबके सामने बात आ गई है.. न! तो तू आराम से इसी के पास रखवा दे! ये बिल्कुल कुछ भी नहीं करेगी!”।

रमा ने तमाशे का मज़ा लेते हुए.. और एक चालभरी मुस्कुराहट फेंकते हुए.. सुनीता से कहा था।

रेल का टाइम हो रहा था.. सुनीता ने अपना गहना एक चादर में बाँध.. सासू-माँ को पकड़ाते हुए, कहा था..

” आप please! मेरा यह सामान संभाल कर रखना.. ,जब तक मैं घर से न आ जाऊं!”।

सासू माँ की आँखों में शरारत झलक रही थी.. शातिर मुस्कुराहट फेंकते हुए.. बोलीं थीं..

” धर लूँगी संभाल के!”।

सारे नाटक की रचयिता के हाथ में समान सौंप सुनीता बच्चों संग मायके पहुँच गई थी।

पर मायके पहुँच कर भी सुनीता का मन एक अजीब सी चिंता से भरा हुआ था.. और एकबार फ़िर परिवार के आगे सबकुछ बता डाला था.. जिसमें मुकेशजी ने सुनीता को राय देते हुए कहा था..

” कोई बात नहीं! जो कुछ जाना है.. वो तो जाएगा ही.. पर कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न देनी पड़े.. अपने परिवार को बचा ले.. ultimately बेटा! घर तेरा रमेश के साथ ही बसेगा! You cannot build castles without him”

पिता के शब्दों ने सुनीता को रमेश के साथ चलने के लिए.. एकबार फ़िर मजबूर कर दिया था.. समय का पहिया घूमता ही चला जा रहा था.. प्रह्लाद और नेहा अब बडे हो चुके थे..  लेकिन लालची परिवार के नाटकों का कोई भी अंत नहीं आ रहा था.. ससुरजी तो इस दुनिया में रहे नहीं थे.. और न ही कोई वे दोनों भाइयों का लिखित में कोई भी फैसला करके गए थे.. क़िस्सा हिस्से का ही था.. जो परिवार रमेश को देना ही नहीं चाहता था.. पर बात भी सामने नहीं आने दे रहे थे..

दोनों बच्चों के पैर भी अब इस दल-दल में रखा गया था.. पिता के शब्दों ने सुनीता को एकबार फ़िर मुड़कर और सोचने पर मजबूर कर दिया था। सुनीता का मायका संकट में घिर गया था.. वक्त ने कुछ ऐसा किया.. कि गवाह और सबूत सब सामने आ गये.. और पिता की पगड़ी को ध्यान में रखते हुए.. सुनीता ने अपना फैसला ले लिया..

आइये एकबार फ़िर सुनीता का फ़ैसला सुनने के लिए जुड़ते हैं.. खानदान के संग।

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