मैं धन्ना, गांव से झोला लेकर दिल्ली आ गया था। मैंने हाई स्कूल की परीक्षा पूरी की थी। परिचित चाचा भीम सिंह के यहां रुका था। वो मोहन एंड महेंद्र मिल्स में बुनकर थे। उन्हीं ने मेरी भी नौकरी मोहन एंड महेंद्र मिल्स में लगा दी थी। मैं भी बुनकर विभाग में शामिल हो गया था।
मांडवी चचा भीम सिंह की इकलौती बेटी थी। जब मांडवी ने हाई स्कूल मिल के पीछे वाले स्कूल से पास किया था तो उन्होंने उसकी शादी मेरे साथ कर दी थी। मांडवी मुझे पसंद थी। मांडवी भी मुझे चाहती थी। उन दिनों इससे आगे कोई प्रेम कहानी न जाती थी। और वैचारिक प्रेम बाद में ही पनपता था।
अचानक मोहन एंड महेंद्र मिल्स में लंबी हड़ताल हुई थी। मालिकों और मजदूरों के बीच जब कोई समझौता न हो पाया था तो मिल बंद हो गई थी।
मुझे लेकर चचा भीम सिंह ने उजड़ी उस मिल से दो खड्डियां खरीद ली थीं और किराए पर जगह लेकर काम चला दिया था। लेकिन जब माल बन कर तैयार हुआ था तो बाजार में किसी ने तवज्जोह नहीं दी थी। उन्हें माल उधार चाहिए था और वो भी कौड़ियों के भाव।
तब चचा भीम सिंह ने मुझे माल बेचने की जिम्मेदारी सोंपी थी।
मैं कोपरेटिव स्टोर के मैनेजर मुन्ना कमाल को जानता था। मैंने जब उनसे आग्रह किया तो वो राजी हो गए लेकिन उन्होंने बीच में अपनी पत्ती बिठा ली थी। मैं राजी हो गया था लेकिन मैंने भी अपने रेट दो गुने कर दिए थे। फिर क्या था – चचा भीम सिंह का माल हाथों हाथ बिकने लगा था।
हमने और खड्डियां लगाई और माल की खपत बढ़ाई। हमने मार्केट में नाम कमाया और माल की जी तोड़ सप्लाई की। फिर हमने अपने माल को ब्रेंडेड कर दिया। धन्ना मल एंड मिल्स का नाम बाजार में चल पड़ा। फिर क्या था – जैसे एक चमत्कार हो गया था।
कांता का जन्म जब हुआ था तब मैं और मन्नो धन्ना मल एंड मिल्स के मालिक थे।
मेरी आदत सुबह चार बजे उठ कर घूमने जाने की थी।
लंबा घूमने की गरज से मैं जंगल जक पहुंच जाता था। एक दिन एक व्यक्ति ने मुझे रोका और कहने लगा कि मैं उससे जमीन खरी लूं। उसने बताया कि यहां जब कभी शहर बसेगा तो मेरे पौ बारह हो जाएंगे। सामने की झील के साथ अगर मैं जमीन ले लूं तो निकट भविष्य में वहां जो कोठी बनेगी वो तो ..
मन्नो से पूछ कर कल बताऊंगा भाई जी कहकर मैं चला आया था।
और जब मैंने मन्नो से जिक्र किया था तो वह तैयार थी। वह भी साथ गई थी और हमने दो एकड़ भूमि का सौदा तय कर दिया था। मोती झील के साथ दो एकड़ जमीन हमने खरीद ली थी और भविष्य में यहीं आकर रहने का निर्णय भी कर लिया था।
यह सब कांता के भाग्य का विस्तार था – हम दोनों जानते थे।
कांता सुंदर थी। कांता पढ़ाई लिखाई में जहीन थी। अब कांता कॉलेज जाती थी। अब हमें कांता की शादी की चिंता सताने लगी थी लेकिन कांता ने साफ कहा था मैं पहले कैरियर चुनूंगी तब शादी करूंगी।
पहली बार हम दोनों ने जनरेशन गैप को लेकर विचार किया था।
मिरांडा में पढ़ने वाली हमारी बेटी कांता हम से मीलों आगे थी। हमें समझ ही न आती थी कि उसकी शादी के लिए लड़का कैसा तलाश करें, कहां करें और फिर ..
कृष्ण कुमार – जिसे कांता के के कह कर बुलाती थी, कई बार घर आया था। लड़का बहुत ही होनहार, आकर्षक और विनम्र था। मन्नो का मन तो उस पर आ गया था लेकिन मैं अभी भी कोई निर्णय न कर पा रहा था।
फिर कांता ने ही मन्नो को बताया था कि उसका के के के साथ प्यार था। वह शादी करेगी तो के के से ही करेगी। के के भी उसे चाहता था। और बेहद प्यार करता था।
पूछने पर कांता ने ही बताया था कि के के का परिवार रांची में रहता था। उसके पिता डॉक्टर थे। और वो भी डॉक्टर ही बनेगा। वो दिल्ली में नहीं रांची में रहेगा।
हमारा मन बैठ गया था। हम तो चाहते थे कि के के हमारे साथ ही दिल्ली में रहे और हमारा कारोबार भी देखे ताकि हम ..
बेटी का सुख दुख देखने के साथ साथ हम अपना भी सुख दुख देख लेना चाहते थे। हमारा और कौन था जो ..
के के जब कभी घर आता था तो मन्नो के पैरों में पर लग जाते थे।
लड़का तो मुझे भी पसंद था लेकिन अड़चन एक ही थी। मेरे दिमाग में एक नारा गूंजने लगता था – बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ! मैं नहीं चाहता था कि ..
के के को मैंने मना लिया है मां – कांता ने जब सूचना दी थी तो हमारी खुशी का ठिकाना न था। लेकिन के के कोर्ट मैरिज करेगा ये उसकी जिद है – ये कांता ने हमें समझाया था। वह पुरातन के ढोंग ढकोसलों से कोसों दूर है। वह नहीं चाहता कि एक कानी कौड़ी भी उसपर खर्च की जाए! नो डौउरी, नो शो-शा और नो फिजूल खर्ची – कांता बताती रही थी।
मुझे एक बारगी बड़ा अच्छा लगा था। लगा था – लड़के को कोई लगाव न था। उसकी नजर हमारी जायदाद और हमारे व्यापार पर न थी। लड़का कांता को प्यार करता था। लड़का मॉडर्न खयालों का था और एक आधुनिक आदमी था जो हमारे घर बार को रोशन करेगा और कांता को कभी धूप तक न लगने देगा!
मैं और कांता और मन्नो महा खुश थे। के के भी नाराज न था। हमने उसकी हर शर्त स्वीकार जो कर ली थी।
कोर्ट मैरिज के बाद कांता और के के हनीमून पर यूरोप चले गए थे।
मेरे और मन्नो के आस पास सपने ही सपने थे – रंगीन सपने! मन्नो ने कांता कुंज को नए सिरे से सजाया-वजाया था। माली ने भी कई नए पौधे रोपे थे तो बगीचा गुलजार हो गया था। कांता कुंज की ऊपर वाली मंजिल में के के ने रहना पसंद किया था और उसे अपने टेस्ट के हिसाब से सजाया-वजाया था। मोती झील के पानी में झिलमिल करता कांता कुंज का प्रतिबिंब देखकर मेरा हिया भर आता था। वहीं बेंच पर बैठे मैं और मन्नो उस प्रतिबिंब को बार बार देखते और प्रशंसा करते!
व्यापारियों कि शिकायतें के के के बारे में आई थीं तो मैं चौकन्ना हो गया था। ऊपर की मंजिल पर रहते के के और कांता अचानक ही मुझे पराए लगे थे। लेकिन मन्नो से मैंने कोई भी जिक्र न किया था। बाजार में जाकर मैंने गुप्त जानकारी जरूर जुटाई थी।
पापा! हम कांता कुंज को अगर के के नाम पर लिख दें तो कोई हर्ज होगा – कांता ने मुझे पूछा था तो मैं सन्न रह गया था। मेरा डर सामने आ गया था। मन्नो को पूछ लेता हूँ कह कर मैंने कांता को टाल दिया था।
कांता गर्भवती है – क्या तुम जानते नहीं – मन्नो ने मुझे फटकारा था। उनकी बात मान लो। हमारा क्या है? आगे पीछे तो सब उन्हीं का है – मन्नो मुझे बताती रही थी। लेकिन नाम तो के के के करना चाहती है कांता? तो क्या हुआ – कह कर मन्नो ने बात समाप्त कर दी थी।
मेरा मन न माना था। कांता कुंज को मैं किसी भी कीमत पर के के के नाम न लिखना चाहता था। गुड और बैड – ये मेरा निर्णय अटल था।
इतवार का दिन था। हम सब घर पर ही थे। मैं ड्रॉइंग रूम में बैठा था तो के के आ गया था। कांता और मन्नो भी पहुंच गई थीं।
“पापा! आप कांता कुंज को मेरे नाम क्यों नहीं करना चाहते?” के के पूछ रहा था।
“सब तुम्हारा ही तो है के के!” मैंने विनम्रता से कहा था। “हमारा क्या है ..”
“तो फिर लिख दो मेरे नाम!”
“नहीं! मैं ये हरगिज नहीं करूंगा!”
“तो फिर आज फैसला होगा!” कह कर के के चला गया था।
मैं जान गया था कि वो जरूर ही अपनी पिस्तौल लेकर लौटेगा! मैंने भी अपनी पिस्तौल निकाल कर जेब में डाल ली थी। के के लौटा था तो मैं खड़ा हो गया था। उसने सीधा मुझपर फायर किया था। गोली बच कर निकल गई थी। मैंने भी सीधा के के पर वार किया था। गोली सीधी माथे में जाकर लगी थी और के के वहीं लुढ़क गया था।
कांता दहाड़ें मार कर के के के ऊपर जा गिरी थी। मन्नो भी उसके ऊपर जा लेटी थी। मैं कुर्सी पर बैठा दम साध रहा था। कई पलों के बाद जब होश लौटा था तो मैं रिक्शा लेकर पुलिस स्टेशन चला गया था।
मुझे आया देख इंस्पेक्टर चौधरी चकित रह गया था।
मैंने सब कुछ बता दिया था। पुलिस की टीम गई थी तो कांता को भी फांसी लगा कर पंखे से लटका पाया गया था। मन्नो बेहोश थी।
अब कांता कुंज है और मैं अकेला हूं! धन्ना मल एंड मिल्स समाप्त हो गया है। सब उजड़ गया है और कांता के साथ साथ ही सब चला गया है!
यादें हैं – और कांता कुंज का प्रतिबिंब है जो मोती झील में लहराता रहता है और मुझे चिढ़ाता रहता है – सेठ धन्नामल .. धन्ना मल एंड मिल्स और न जाने क्या क्या कहता रहता है जिसे मैं देखता तो हूँ पर समझ नहीं पाता हूँ!
मेजर कृपाल वर्मा