” बेटा उठो..! जल्दी से नहा-धोकर तैयार हो जाओ! आंटी बुला गईं हैं! अष्टमी की पूजा के लिए.. उनके घर जाना है!”।
बात दीवाली से पहले वाले नवरात्रों की है.. जब हमें कन्या भोज का निमंत्रण दिया जाता था.. वैसे भी हमें नवरात्रों का इंतज़ार हमेशा ही रहा करता था.. खाने की प्लेट लेकर, तैयार हो.. सहेलियों के संग दौड़े चले जाते थे।
मौहल्ले में जहाँ-जहाँ का निमंत्रण होता था.. अपनी सहेलियों की टोली संग दौड़े चले जाते थे।
वाह! वाह! उन काले देवी माँ के प्रसाद के छोलों, हलवे और पूरी की सुगंध और स्वाद की बात ही कुछ और हुआ करती थी।
अब नवरात्रों में कंजक क्यों बिठाई जाती हैं! या फ़िर कन्या-भोज क्यों कराया जाता है.. इस बात से हमें उन दिनों कोई भी लेना-देना नहीं था.. बचपन जो था! हमें तो बस! प्रसाद में मिलने वाले.. पूरी हलवे की चिंता शगुन के रुपए और छोटे-मोटे तोहफ़े की हुआ करती थी। बहुत मज़ा आया करता था.. हमें उन दिनों घर-घर जाकर प्रसाद की प्लेटें लाने में और अपनी पूजा करवाने में।
कन्या से नारी का रूप लेने के बाद ही हमें पूरी तरह से ज्ञान हुआ.. कि वास्तव में कंजक क्यों बिठाई जाती हैं! मित्रों! जो लोग माँ शेरोवाली के भक्त हैं! और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं.. वे अष्टमी या फ़िर रामनवमी पर कन्या भोज करवाते हैं.. और जो आठ या दस कन्या बिठाते हैं.. उनमें देवी के सभी स्वरूपों के दर्शन करते हैं.. और कन्या भोज करवाते समय यह प्रार्थना करते हैं.. कि जब यह कन्याएं बड़े होकर महिला बनें.. तो इनके प्रति मन में कोई भी कुविचार नहीं आए.. और साथ ये भी देवी स्वरूप हों।
आज हम भी अपने बचपन की कंजक पूजा को याद करते हुए ही.. नवरात्रों में रामनवमी वाले दिन पूरी श्रद्धा के साथ कंजक बिठाते हैं.. और उनमें माता रानी के दर्शन करते हुए.. नन्ही कन्याओं को प्रसाद और छोटे पर सुन्दर उपहार देते हैं।
” बोलो जय कारा शेरों वाली माँ का!”
” साँचे दरबार की जय!”