“साब! पागलखाने से हरकारा आया है!” दरबान ने सूचना दी थी।
अविकार और अंजली बगीचे में बैठे चाय पी रहे थे। दरबान का लाया समाचार अविकार के जेहन के आर पार गोली की तरह निकल गया था। पागलखाने का हरकारा उसका पीछा करता यहां तक पहुंच गया था। अविकार हैरान था। वह डर गया था। उसे पागलखाने में भोगा नरक याद हा आया था और याद हो आई थी – गाइनो ग्रीन! उसे लाढ़ लड़ाती गाइनो, उसे खिलाती पिलाती गाइनो और पूर्णतया पागल की ऐक्टिंग करने के लिए राजी करती गाइनो – याद हो आई थी। और अब .. न जाने क्या ..
“बुलाओ उसे!” आदेश अंजली का था।
दरबान लौट गया था। अविकार ने सीधा अंजली की आंखों में घूरा था। वह भी तनिक असमंजस में थी। पागलखाने से अब क्या सरोकार रह गया था – वो दोनों अंदाज ही न लगा पा रहे थे।
पागलखाने का हरकारा सामने आ कर खड़ा हुआ था तो अविकार गंभीर था। उसने हिम्मत बटोर कर हरकारे को अपांग देखा था।
“कैसे आना हुआ भाई?” अविकार ने बड़े ही विनम्र भाव से पूछा था।
“साब! आप को गंगू ने याद दिलाने भेजा है!” हरकारे ने सूचना दी थी। “आप का ..” हरकारा क्या कुछ कहता रहा था – इसके बाद अविकार ने नहीं सुना था।
“गंगू .. कौन ..?” अंजली का प्रश्न आया था।
“हां हां! वही जो मैंने बताया था कि गंगू ने ही सलाह दी थी मुझे – भाग जाने की!” अविकार अब संयत था। “मैं उसे वायदा दे कर आया था अंजू .. कि ..!” चुप था अविकार।
“मेरे लिए क्या हुक्म है सर!” हरकारा पूछ रहा था।
“चाय पी कर जाना भाई!” अंजली ने आग्रह किए थे। “कह देना गंगू से काम हो जाएगा!” अंजली ने विहंस कर कहा था।
हरकारा चला गया था। वो दोनों अब एक दूसरे को निरख परख रहे थे। अविकार तनिक चिंतित था। अंजली का व्यवहार उसे तनिक अटपटा लगा था।
“ये क्या कह दिया अंजू! इत्ता आसान नहीं है – गंगू को छुड़ाना। उसका केस तो शोभा – उसकी पत्नी ने ही दर्ज कराया है। और ..”
अंजली कई लंबे पलों तक अविकार को पढ़ती रही थी।
“तुम्हारा दोस्त है न?” अंजली ने हंस कर पूछा था।
“हां! है तो! क्योंकि वहां उस पागल खाने में और सभी तो पागल थे। वही अकेला था जो मेरी तरह फंस गया था।”
“और निर्दोष था?”
“हां!”
“तो छुड़ाते हैं उसे।” अंजली ने अविकार को मनाया था। “मुश्किल क्या है?”
अंजली ने दरबान को बुला कर पागलखाने के हरकारे से गंगू का पता ठिकाना मांग लिया था। अविकार अंजली के सहयोग और सहारे पर अत्यंत प्रसन्न था। वह बचपन को याद कर रहा था। हमेशा ही अंजली उसका काम कर देती थी और हमेशा ही उसे सुरक्षित रखती थी। और आज भी ..
“अंजली! मुझे ये काम इतना आसान नहीं लगता कि ..”
“क्यों?”
“क्योंकि शोभा ..”
“वक्त बदलते देर नहीं लगती अवि! क्या पता अब शोभा किस हाल में हो? और गंगू अच्छा है और सच्चा है! अच्छाई कभी मरती नहीं और बुराई कभी जीतती नहीं अवि! अपने ही केस को ले लो! कितना बदनाम किया पापा को? यहां तक कि अजय अंकल की मौत ..”
“भगवान करे अंजू गंगू भी छूट जाए!” सच्चे मन से अविकार ने अर्चना की थी। “अब मेरा परमेश्वर में ही विश्वास पक्का हो गया है अंजू।”
“हां अवि! सब राहें, सब रास्ते उसी के बनाए हैं!” अंजली ने भी माना था। “अच्छे बुरे की प्रेरणा भी वहीं से मिलती है – मैं तो मानती हूँ।” हंस रही थी अंजू।
दो राही एक राह गहे थे – जीने की अच्छी सच्ची राह!
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

