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जीने की राह एक सौ अट्ठाईस

एक शुभ जैसी संभावना बन वंशी बाबू का अमरीश विला में आगमन हुआ था।

अमरीश जी, सरोज सेठानी, अविकार और अंजली हर्षोल्लास से भर उठे थे। आश्रम छोड़ कर आने में जो अपार कष्ट हुआ था – उसे उन्होंने मौन धारण करके सहा था। कोई एक शब्द भी नहीं बोला था। जबकि अमरपुर आश्रम आज भी उन्हें बुलाता रहता था .. लेकिन ..

गुलाबी ने सारे सौहार्दपूर्ण वातावरण में जहर घोल दिया था। आज भी अनायास ही उन सबके जेहन हर गुलाबी तारी थी। न जाने क्या गुल खिलाया होगा गुलाबी ने – वो अभी भी अनुमान लगा रहे थे।

“ये लीजिए अपनी अमानत!” वंशी बाबू ने हीरों का हार जेब से निकाल सेठानी सरोज के हवाले कर दिया था। “अब मैं मुक्त हुआ!” वंशी बाबू मुसकुराए थे।

ये एक सुखद आश्चर्य था। एक शुभ सूचना थी जिसने शोकाकुल वातावरण को उम्मीद के उजास से भर दिया था।

“कहां मिला?” सेठानी सरोज का ही प्रश्न था।

“गुलनार के झोले से बरामद हुआ था।” वंशी बाबू ने चुहल की थी। “और गुलाबी ने इस चोर को सजा सुनाई थी।”

“क्या?” अमरीश जी का चेहरा विद्रूप हो आया था। “गुलनार तो बड़ी भली औरत है!” उनका कहना था।

“गुलनार का सर मुड़ा कर उसे आश्रम से धक्के मार कर बाहर भगाना था। बारह बजे का वक्त तय था। सब आश्रम के लोग जमा थे। बुलाकी नाई भी आ पहुँचा था। लेकिन ..” वंशी बाबू ने ठहर कर उन सब के चेहरों को पढ़ा था। सभी त्रस्त थे।

“लेकिन .. लेकिन ..?” अविकार प्रश्न करना चाहता था।

“लेकिन तभी सूचना पा कर स्वामी जी भागे चले आए थे।” वंशी बाबू ने प्रसंग आगे बढ़ाया था।

“फिर ..?” अंजली को अब असमंजस हो रहा था।

“फिर स्वामी जी गरजे थे। मैं भी वहीं चोर की तरह छुपा था। बोले – ये क्या तमाशा है गुलाबी? गुलाबी ने कहा – ये चोर है! नहीं! ये मेरी पत्नी है – स्वामी जी ने उंगली उठा कर कहा था। ये चोर हो ही नहीं सकती! चलो गुलनार – उन्होंने आदेश दिया था। चलो मेरे साथ!” चुप हो गए थे वंशी बाबू। लेकिन सेठानी सरोज का धीरज जाता रहा था।

“फिर क्या हुआ वंशी बाबू?” सेठानी पूछ रही थी।

“फिर – स्वामी जी कड़क आवाज में बोले – वंशी बाबू! मैं उछल कर सामने आ गया था। पुलिस को बुलाओ। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाना चाहिए – उनका हुक्म था। फिर वो गुलनार को ले कर चले गए थे।”

“और गुलाबी?” अविकार से रहा न गया था तो पूछा था।

“अब गुलाबी ने मुझे गौर से देखा था। क्यों कि हीरों का हार मेरे कब्जे में था!” तनिक मुसकुराए थे वंशी बाबू। “अधीर हो आई थी गुलाबी। उसे लगा था कि उसका मठाधीश बनने का उपक्रम बिगड़ गया था।”

“पुलिस आई थी?” अब अंजली ने पूछ लिया था।

“हां-हां! मैंने पुलिस बुलाई थी। एक दबंग इंस्पेक्टर थी – कंगना दलाल! ऐसा खेल किया उसने बेटी कि सब दंग रह गए!”

“फिर ..?” अमरीश जी भी बोल पड़े थे।

“फिर .. मुन्नी और मंजू को हिरासत में ले लिया!”

“और गुलाबी?” सरोज सेठानी पूछ बैठी थीं।

“गुलाबी .. भाग गई!” हंसे थे वंशी बाबू। “पता ही न चला कि कहां समा गई। चोर के पैर नहीं न होते सेठानी जी!”

“अब ..?” अमरीश जी का प्रश्न आया था।

“आप लोग लौटिए। गुलनार को श्रावणी मां तो आपने बना ही दिया था। अब उन्हें मठाधीश भी बना देते हैं।”

“लेकिन .. वो तो स्वामी जी की पत्नी हैं?” अविकार बोला था।

“थीं! कभी उनकी पत्नी थीं! अब तो वो दोनों ब्रह्मचारी हैं, प्रभु के भक्त हैं और अनन्य वैरागी हैं।”

“ठीक कहते हैं वंशी बाबू!” अमरीश जी ने बात की पुष्टि की थी। “एक नई राह खुलेगी!” उनका कहना था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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