Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

जीने की राह छिहत्तर

अमरीश की बीमारी लाइलाज थी – ये खबर आग की तरह फैली थी। हर किसी ने एक ही बात बोली थी – पाप का घड़ा भर गया है।

शनिवार था। अमरीश परिवार के साथ अमरपुर आश्रम जा रहे थे। अंजली कार चला रही थी और सरोज बीमार अमरीश को लिए पिछली सीट पर बैठी थी। कार का ड्राइवर साथ नहीं था। बाबा जी ही अब एक आखिरी उम्मीद थी जहां जीवन दान मिल सकता था।

“बाबाओं के पास क्या धरा है!” लोग परिहास कर रहे थे। “करता सो भोगता!” लोगों का मत था। “अजय बाबू बड़े भले आदमी थे। अवस्थी इंटरनेशनल का भी नाम था। लेकिन ..”

आश्रम में रौनक थी। आज का दिन महत्वपूर्ण होता था। भजन कीर्तन की प्रथा लोगों को बहुत भाती थी। स्वयं ही लोग खिंचे चले आते थे और अपने दुख दर्द भूल कर प्रभु की शरण में अपना अनमोल समय बिताते थे।

“लवली प्लेस!” अंजली के मुंह से आश्रम को देखते ही निकला था। “कितना सुकून है यहां मां!” उसका कथन था। “अब पापा अवश्य ठीक हो जाएंगे।” अंजली ने अपनी राय व्यक्त की थी।

सरोज ने अमरीश की आंखों को पढ़ा था। अमरीश चुप थे। अतः सरोज ने भी चुप्पी साध ली थी। अंजली के अरमान अधूरे थे – वो दोनों जानते थे। अंजली अभी तक अविकार के इंतजार में बैठी थी – ये भी सच था। लेकिन परमेश्वर को क्या मंजूर था – ये अब सिद्ध होना था।

आशीर्वाद लेने वाले श्रद्धालुओं की लाइन में अमरीश परिवार गुलाबों की मालाएं लिए खड़ा था – शांत और मंत्र मुग्ध!

स्वामी पीतांबर दास की निगाहें उन गुलाबों की मालाओं पर जा टिकी थीं!

“वही परिवार है!” स्वामी जी ने मन में स्मरण किया था। “कोई दुखियारे लोग हैं! जरूर किसी गहरी मुसीबत में फंसे होंगे!” स्वामी जी का अनुमान था। “कौन जाने क्यों उजड़ गया होगा ये संभ्रांत परिवार?” स्वामी जी की जिज्ञासा शांत नहीं हो पा रही थी।

“पव्वा!” अचानक स्वामी जी सुनने लगे थे। “तुम्हारा परिवार भी तो था! उजड़ गया! लेकिन क्यों उजड़ा? क्यों कि तुम पव्वा पीने लगे थे। परिवार से अलग होकर जीने लगे थे। एक परिवार भी तो एक संसार समान होता है! अगर कल से सूरज न निकले, चांद न चढ़े और सितारे न चमके तो संसार नष्ट हो जाएगा! परिवार में मां बाप भी चांद सूरज ही तो होते हैं! अगर वो न चढ़ें तो अंधकार ही छा जाएगा! लेकिन ये तीनों तो एक जान, एक प्राण और एक साथ दिख रहे हैं!”

स्वामी जी ने पहले की तरह ही गुलाब की मालाओं को छू छू कर देखा था। महता आशीर्वाद स्वतः ही उनके अंतर से फूटा था और उन तीनों को कृतार्थ कर गया था।

कुमार गंधर्व की गायकी ने हमेशा की तरह भक्तों का मन मोह लिया था।

सरोज ने तो कुमार गंधर्व की आवाज से ही पहचान लिया था कि वह अविकार था। निगाहों से ही उन्होंने अपनी राय जता दी थी। अब अगला पत्ता बड़ी चतुराई के साथ फेंकना था। अभी अविकार का कुमार गंधर्व बने रहना ही श्रेष्ठ था शायद!

“अब कुमारी अंजली का भक्ति गान होगा!” घोषणा हुई थी। “आप भक्तों से अनुरोध है कि इन की होंसला अफजाई अवश्य करेंगे!”

लगी भीड़ के अथाह सागर में से अंजली उठ कर स्टेज तक चलकर आई थी। न जाने क्यों कुमार गंधर्व ने बड़े चाव के साथ अंजली को आते देखा था। उसे अचानक गाइनो की याद हो आई थी। एक खट्टा चूक स्वाद उमड़ा था और गाइनो के लिए मुंह से गाली निकली थी! अंजली जैसे कोई देवांगना थी और ..

“मेरा तू घनश्याम ..!” अंजली ने भजन गाया था। “मोरे घनश्याम .. मोरे प्राण .. मोरे तुम घनश्याम!” अंजली भाव विभोर हो कर गा रही थी।

भक्त लोग अंजली के गायन का आनंद उठा रहे थे। पूरा का पूरा प्रकारांतर भी भक्ति भाव में ओत प्रोत हो डूबा डूबा लगा था!

लेकिन कुमार गंधर्व पर एक भिन्न प्रकार की प्रतिक्रिया हुई थी।

क्या अंजली उसकी कोई थी? क्या अगली जीने की राह अंजली के साथ साथ जाती थी? आखिर अंजली थी कौन? इतना श्रेष्ठ गायन तो ..

गाइनो के बताए उस सेक्स और ड्रग्स के संसार से भाग कर कुमार गंधर्व आज अंजली के आंचल में आ छुपा था।

मेजर कृपाल वर्मा

Exit mobile version