“स्वामी जी!” वंशी बाबू बोले हैं। उनके हाथ में एक चिट्ठी लगी है। “अविकार साहब का पत्र है!” वंशी बाबू हंसे हैं। “हर साल की तरह श्रावणी पर परिवार सहित पधार रहे हैं। बेटे का जन्म दिन भी यहीं मनाएंगे और एक सप्ताह तक ..”
“अच्छा है!” मैं प्रफुल्लित हो उठा हूँ। “अंजली आ जाएगी तो उत्सव में चार चांद लग जाएंगे!” मैंने मन की बात कही है। “साक्षात मीरा जैसी लगती है, अंजली!” मैं कहता रहा हूँ। “जब सुर साध कर मीरा बाई का भजन गाती है तो ..”
“आनंद विभोर हो जाते हैं श्रद्धालु!” वंशी बाबू बीच में बोले हैं। “कोकिला कंठ हैं!” वह भी बता रहे हैं। “पुराने पुण्य से मिलता है ऐसा जोड़ा!”
“सच कहते हैं वंशी बाबू!” मैंने समर्थन किया है।
मुझे शुभ सूचना दे कर चले गए हैं वंशी बाबू।
लेकिन मैं अचानक ही अविकार और अंजली के जोड़े को लेकर असहज हो उठा हूँ। पीतू और गुलनार का जोड़ा भी हंसों का जोड़ा था – मुझे याद आने लगता है। लेकिन अब हंस और हंसनी अलग अलग शाखाओं पर बैठते हैं। अबोला है उनके बीच में और एक अज्ञात भी है जिसे मैं भी नहीं जानता! मैं नहीं जानता कि गुलनार का रचा बसा उपवन कैसे उजड़ गया? मैं ये भी नहीं जानता कि ..
“मैं नहीं जानता स्वामी जी कि मुझे पागलखाने में क्यों भरती कराया जा रहा है!” अचानक मैं अविकार की बातें सुनने लगता हूँ।
एक बड़ा ही आकर्षक और होनहार युवक था अविकार जो अचानक ही मेरे सामने आ खड़ा हुआ था। उसका हुलिया धूल धूसरित था। वह कोई सताया भगाया युवक था। अस्त व्यस्त था और निराश भी।
“लेकिन तुम पागल तो नहीं हो!” मैंने बड़े ही सहज भाव से कहा था।
“नहीं! लेकिन गाइनो .. मतलब कि मेरी गर्लफ्रेंड गाइनो ग्रीन कहती है कि मैं पागल हो गया हूँ!”
“लेकिन क्यों?”
“क्योंकि .. क्योंकि .. वो चाहती है कि मैं अवस्थी इंटरनेशनल लिमिटेड उसके नाम लिख दूं। तभी वो मुझसे शादी करेगी और तभी वह मुझे ..”
“मार डालेगी!” मेरे दिमाग में अचानक ही उत्तर कौंधा है। औरत अपने पर आ जाए तो ..” मैं आगे गुलनार के बारे और कुछ सोचना नहीं चाहता।
“तुम कैसे जानते हो उसे?” मैंने अलग से प्रश्न पूछा है।
अविकार चुप है। उसका चेहरा भाव शून्य है। वह एक विभ्रम में डूबा है। अपनी गर्लफ्रेंड को कैसे जानता है – वह कुछ कह नहीं पा रहा है।
“कहां मिले थे उससे?” मैंने फिर से प्रश्न पूछा है।
“बार मैं!” अविकार ने कठिनाई से कहा है। “मैं अकेला था। वहां पीने पहुंचा था। बैठा था तो ये आ गई। मुझमें कोहनी कूच कर बोली – पिलाएगा नहीं? मैं गड़बड़ा गया था। बड़ी ही खूबसूरत थी। नीली नीली आंखें मुझे घायल कर गई थीं। मैंने ड्रिंक्स ऑडर किए थे और हम दोनों ने टिका कर पी ली थी। फिर हाथ में हाथ डाले हम बाहर बगीचे में चले आए थे। न जाने कब और कैसे हम दोनों आलिंगन बद्ध बगीचे में पड़े रहे थे ..”
“कैसा आनंद आया?” सुबह सूरज उगने पर उसने मुझे पूछा था।
मेरे सर में हलका हलका दर्द था। मैं चुप था!
“इसे कहते हैं – हैवन!” वह बोली थी। “ये रास्ता – प्रेम का रास्ता हमें वहां ले जाएगा जहां कोई नहीं जाता! जीने की सच्ची राह यही है अवि!” उसने बताया था।
मेजर कृपाल वर्मा

