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जीने की राह अठहत्तर

“कुमार गंधर्व की गायकी कैसी लगी?” अमरीश ने चलती गाड़ी में प्रश्न पूछा था। अंजली ही कार चला रही थी और वो दोनों पीछे बैठे थे।

“कनसुरा हो जाता है पापा!” अंजली ने उत्तर दिया था। “गुरु ने संपूर्ण ज्ञान नहीं दिया है।” उसकी राय थी। “यूं ही कोई टुच्चा पुच्चा ..”

“क्या कह रही है तू!” सरोज ने विरोध किया था। “कितनी धारदार आवाज है।” सरोज ने प्रशंसा की थी – कुमार गंधर्व की। “गाता है तो रंग बरसता है।”

“गाता तो अच्छा है अंजू!” अमरीश ने बड़े लाढ़ से कहा था। “लेकिन .. लेकिन अंजू क्या तुम्हें नहीं लगता कि कुमार गंधर्व की आवाज कहीं अविकार से ..?” अमरीश ने मुड़ कर सरोज की आंखों को पढ़ा था। वहां स्वीकार था।

लेकिन अंजली चुप थी। अंजली बड़े ही मनोयोग से कार चला रही थी। मात्र अविकार के प्रसंग ने ही उसे विचलित कर दिया था। अभी तक वो अपने मनोभावों को छुपाए छुपाए लुकती छिपती आश्रम में पलट कर लौटी थी। यों लौटने का तो उसका मन ही न था लेकिन अब मन था कि कुमार गंधर्व से ..

अब कैसे बताए अंजली कि उसका मन मयूर तो अविकार को कभी का टेर रहा था और पुकार रहा था और फिर न जाने क्यों कुमार गंधर्व अविकार ही बन कर उसके सामने उपस्थित हो गया था। भूले मन की मुराद सा अविकार आया था और प्रेम दीपक जला गया था और उजाला कर गया था – उसके मन प्राण में! अंजली की आंखों में अचानक ही शर्म चढ़ आई थी और उसका चेहरा आरक्त हो गया था। अविकार ..

“लेकिन हाव भाव और वेशभूषा से तो कुमार गंधर्व सच्चा संन्यासी ही लगता है!” सरोज ने अपना मत बताया था। “आश्रम के लोग भी तो ..”

“और हो भी सकता है कि अविकार पागलखाने से भाग कर और संन्यासी बन कर यहां चुपचाप रह रहा हो?” अमरीश ने अब अपनी राए बताई थी। “मेरा मन तो पहले दिन से ही कह रहा है कि कुमार गंधर्व ..”

“हो भी सकता है – अविकार ही हो!” सरोज फिर बोली थी। “डर कर भागा हो। यहां आ गया हो और ..”

“डरेगा किससे?” अंजली का प्रश्न था।

“गाइनो से!” उत्तर अमरीश ने दिया था। “मुझे नहीं लगता कि अविकार इस औरत को प्यार करता होगा! लगता है इस औरत ने ही जाल बिछाया है। फांस लिया होगा अविकार को और अब ..”

अंजली को ये संभावना बहुत भली लगी थी। उसे आभास हुआ था कि उसका अविकार अब उसे मिलने वाला था। वो किसी गाइनो को प्यार नहीं करता था। वो तो उसी का था! कुमार गंधर्व की उसे खोजती टटोलती आंखें अचानक ही अंजली को याद हो आई थीं। उसका मन भी तो ..

“अगर कुमार गंधर्व अविकार है तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे अंजू!” अमरीश बताने लगे थे। “एक परिवार तो डूब गया – अब हम भी डूब जाएंगे! बिना किसी कसूर के हम बर्बाद हो जाएंगे अंजू!” कहते कहते चुप हो गए थे अमरीश।

सरोज रोने लगी थी।

“मैं खोजती हूँ अविकार को पापा!” अंजली ने जिम्मा ओटा था।

“यही वक्त है अंजू!” अमरीश का स्वर सचेत था। “गाइनो यहां नहीं है। उसका वकील मस्त है कि वो केस जीतेगा। और अगर हमें अविकार मिल गया तो ..”

“अगले शनिवार को भी आना होगा पापा!” अंजली ने सुझाव दिया था।

“आ जाते हैं!” सरोज मान गई थी।

“लेकिन अंजू! ये काम इस तरह करना है कि एक कान की बात दूसरा कान न सुने!” अमरीश ने हिदायत दी थी।

“अब ये काम आप मेरे ऊपर छोड़ दो पापा!” अंजली नई तरह से प्राणवान हो उठी थी। कुमार गंधर्व अगर अविकार है तो ..” लजा गई थी अंजली।

अब डूबते जहाज को रोशनी दिखाई दे गई थी। जीने की एक नई राह अचानक ही उजागर हो गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा

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