शाम ढलते न ढलते कीर्तन का आरंभ हो चुका था।
पूरा शहर उमड़ आया था। समाज के गण मान्य व्यक्ति भी पधारे थे। परमेश्वर की आराधना में सब ने सहयोग दिया था। पहले तो मंच पर छोटे मोटे गायक और भजनानंदियों ने उत्सव की शोभा बढ़ाई थी। लेकिन जब कुमार गंधर्व ने सुर साधे थे तो पूरी कायनात सुनने को विवश हुई लगी थी। कुमार गंधर्व की उत्तुंग आवाज जब बुलंदियों पर चढ़ कर राधे-राधे की रट लगा रही थी तो पूरा वातावरण जागृत हो उठा था।
लोग समय का ज्ञान भूल चुके थे। सभी भक्त गण पूरे मनोयोग से भक्ति रस में डूबे थे। और जब अंजली ने भजन – मेरे तो गिरिधर गोपाल गाया था तो पुष्प वर्षा होने लगी थी। कितना माधुर्य था – कितना गजब का प्रेम निवेदन था – लोग सुन-सुन कर आश्चर्य चकित हो गए थे। एक अजब आनंदानुभूति थी जिसे लोगों ने पहली बार महसूस किया था।
वो रात सोई नहीं थी। और वो दिन एक नए अंदाज में आरंभ हुआ था।
जहां लोग कुमार गंधर्व और अंजली को बार-बार याद कर रहे थे और सराह रहे थे वहीं गाइनो बार-बार सीनियर वकील रोशन को फोन लगा रही थी।
“क्या .. क्या ऐसा भी हो सकता है वकील साहब कि ..?” गाइनो पूछ रही थी।
“नहीं मैडम!” सीनियर वकील रोशन का उत्तर था।
हमारा केस तो सॉलिड है। अनलेस सम मिरेकल हैप्पन्स!” उनका कहना था।
“तो क्या कोई मिरेकल भी हो सकता है?” गाइनो ने फिर पूछा था।
“देयर इज नो होप इन हैल!” हंस रहे थे वकील रोशन।
दो बजने वाले थे। अमरीश के वकील भोला राम चाहत पूर्ण निगाहों से अमरीश के आने के इंतजार में टहल रहे थे। क्लाइंट का आना वकील के लिए किसी नजात से कम नहीं होता। और जब उन्होंने देखा था कि अमरीश आ रहे थे और एक साधू ने उन्हें संभाला हुआ था तो प्रसन्न हो गए थे। अंजली और सरोज उनके पीछे-पीछे चल रही थीं। अमरीश अस्वस्थ दिख रहे थे। तभी वकील रोशन ने अनुमान लगाया था कि अमरीश अब शायद ही जिंदा बचेगा!
गाइनो का मन बिदका था। वो साधू कौन था – यह जानने की जिज्ञासा हुई थी।
लेकिन कोर्ट में दो बजते ही आवाज लगी थी। दोनों पक्ष जज साहब के सामने आ खड़े हुए थे।
अमरीश के साथ आ खड़े हुए उस साधू को जज साहब ने कई पलों तक शकिया निगाहों से घूरा था। बहुत ही आकर्षक युवक था। कोई दिव्य पुरुष जैसा लग रहा था। शायद बीमार अमरीश को सहारा देने खड़ा हो – जज साहब ने अनुमान लगाया था।
“आप कौन ..?” जज साहब अपनी जिज्ञासा न रोक पाए थे तो उन्होंने उस युवक साधू से सीधा प्रश्न पूछा था।
“आई एम अविकार – ए ग्रेजुएट फ्रॉम सेंट निकोलस लंदन एंड सन ऑफ श्री अजय कुमार अवस्थि – सी ई ओ ऑफ अवस्थी इंटरनेशनल!” अविकार ने सीधे-सीधे अपना संपूर्ण परिचय कह सुनाया था।
“तो साधू क्यों बने हुए हैं? क्या डरे हुए हैं?” जज साहब का अगला प्रश्न था।
“जी हां!”
“क्यों?”
“क्यों कि मुझे मेरी जान का खतरा है।”
“किससे?”
“उससे!” साधू ने उंगली उठा कर गाइनो की ओर तान दी थी। “गाइनो! माई सो कॉल्ड गर्ल फ्रेंड! एंड ए फ्रॉड!” अविकार ने सारा सच कोर्ट के सामने रख दिया था।
“टेक हर इन कस्टडी!” जज साहब ने आदेश दिया था। “एंड पी पी साहब! आप इन का – अविकार का स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर लें – प्लीज!” जज साहब अचानक बड़े विनम्र हो आए थे। “सॉरी मिस्टर अमरीश!” अचानक ही जज साहब के मुंह से निकल गया था।
ए मिरेकल हैज हैप्पन्ड – गाइनो सोच रही थी। लेकिन हुआ कैसे? कहां गलती हुई? इस अंधे कानून को सही जीने की राह कैसे दिखी?
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

