कैप्टिन अनिल का हैलीकॉप्टर आकाश में उड़ान भर रहा था। सुबह के 8.30 बजे थे। हवा में महक भरी हुई थी। धरती पर नक्शे-सा फैला दृष्य बहुत ही मोहक लग रहा था। पहाड़ चपटे चकतरों से धरती पर धरे थे। उनके गिर्द भूरे बादलों के फुग्गों से गुंथी मालाएं जड़ गईं थीं। चोटियों पर धूप आ बैठी थी और घाटियों में अब भी धूप छांव को छू रही थी। उपत्यकायें अंजली के आकार की लगती। पुष्प पत्तों से भरी घाटी नालों की पूजा में समर्पित थी। दूर बर्फीली चट्टानों का सिलसिला अनिल को न्योता-सा दे रहा था।
प्रकृति के इन अनुपम दृष्यों में अनिल अकसर खो जाया करता है, लेकिन आज वह सचेत था। पीछे की सीट पर बैठे कमांडर शमशेर सिंह को लेकर वह झंडा टेकरी जा रहा था। कल ही की सी तो बात है जब जाट बटालियन ने जान पर खेल कर झंडा टेकरी पर कब्जा किया था। कितनी जानें गईं .. कितने लोग शहीद हुए ..। अफसर, जे.सी.ओ. और जवान! लेकिन हठीले हारे नहीं। झंडा टेकरी को लेकर ही रहे।
“मैं चाहता हूँ कि स्वयं झंडा टेकरी जाकर कर्नल बब्बर को मुबारकबाद दूँ। इस बेजोड़ बहादुरी के लिये .. मैं जितना भी उसे दूँ – कम होगा”। कमांडर शमशेर सिंह ने आम ऐलान सा किया था।
और झंडा टेकरी तक पहुँचने का मार्ग -! पहाड़ी सड़क, जो हाल के हमलों से नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी थी। स्थान-स्थान पर रोड़ ब्लॉक थे। अत: हैलीकॉप्टर ले जाने का निर्णय ही एकमात्र विकल्प रह गया था। उसके लिऐ अनिल को कमांडर शमशेर सिंह ने विशेष रूप से चुना था। अनिल पहले भी कई बार कमांडर शमशेर सिंह को युद्ध की गहमागहमी के बीच ले जाता-लाता रहा था।
सैनिको के लिये लड़ाई खत्म होने के बाद एक और महत्वपूर्ण लड़ाई आरम्भ होती है, जहॉं सीखे सभी सबक दुहराए जाते हैं। तमाम हार जीतों को सभी कमांडर निधियों की तरह समेटते हैं भविष्य के लिये।
अनिल ने अचानक अपने डैश-बोर्ड को पढ़ा – एल्टीट्यूड चार हजार फीट .. बिअरिंग टू एट नाइन डिग्रीज। वायू का दवाब ओर गैस ..। वह आश्वस्थ हुआ। अपनी जांघ पर डांगरी में खोंसे छोटे नक्शे में कुछ पढ़ने सा लगा। गंभीर नाले के ऊपर हैलीकॉप्टर उड़ रहा था। अगले दस मिनट के ही बाद उसे डिलहोरी वाली तवी के ऊपर उड़ना था – फिर गिगरी गली से निकलकर गुमनाम की घाटी आ जाएगी। झंडा टेकरी वहॉं से दिखाई देती है। हैलीपैड उसी के दाहिनी ओर है। पूरी उड़ान की योजना को अनिल ने कंठस्त कर लिया था।
कमांडर शमशेर सिंह भिन्न तरह से सोच रहे थे। बार-बार उनका हिया उमड़ आता। उनकी बांहें कर्नल बब्बर को आगोश में लेने के लिए बेकरार हो उठीं थीं। बार-बार दिमाग में संवाद जन्म ले रहे थे और होठों तक आ-आकर लौट रहे थे।
“वैल डन माई डियर-चैप!” कमांडर शमशेर सिंह ने जैसे कर्नल राज बब्बर को बांहों में भर लिया हो, “यू आर द वॉर हीरो बौबी”। उन्होने राज बब्बर के संक्षिप्त नाम ‘बौबी’ से उसे पुकारा और अपने आगोश में समेंट लिया, “तुम जैसे ही वीरों पर भारत को गर्व है। तुमने यह सिद्व कर दिखाया है कि जब तक भारत का एक भी सपूत जिंदा है, भारत दासता नहीं स्वीकारेगा। सर नहीं झुकाएंगे – हम। अब यह भारत , भारत है।” यों विचार मग्न कमांडर शमशेर सिंह के सामने पूरी जाट बटालियन उमड़ आई थी।
लोगों के चेहरे रूखे-रूखे और भावहीन थे। लड़ाई की थ्कान से लाल हुई ऑंखों और सिलवटों से भरी वर्दियां। मूँह फाड़ते फटे जूते और उनके बिखरे अस्त-व्यस्त बाल।
कमांडर शमशेर सिंह को यह सिपाहियों के तमाम गुण उनपर लदे गहनों जैसे लगे थे। उनका कमाया यश और कीर्ती भारतीय सेना में मिसाल बनकर हमेंशा जिन्दा रहेगा – वो जीनते थे। उनका सीना गर्व से तन गया था। नील-पीत आकाश की ओर उंगली उठा उन्होने कहना आरम्भ किया।
“वीरों। मुझे तुम्हारी बहादुरी पर गर्व है। झंडा टेकरी को यों ले लेना लोहे के चने चबाना है। मैंने राज को कहा भी था, लेकिन आज तुम लोगों ने सिद्व कर दिया है कि लोहे के चने भी वक्त पड़ने पर दातों से तोड़े जा सकते हैं।”
अनिल ने नीचे देखा। उसे लगा, जैसे गंभीर नाला खौलने लगा हो और उसमें से भाप की लपटें बड़ी तेजी से उसकी ओर बढ रही हों। लपटें धूंऐ सी बन बादलों की श्क्ल अख्तियार करने लगी थीं। अनिल के लिए यह पहली खतरे की घंटी थी। वह एक छोटी तैयारी में व्यस्त हो गया। उसने पहाड़ की चोटियों को एक बार फिर से गिना और पुरानी पहचान-सी निकाल नमस्कार की। चोटियॉं चट्टान बनी शांत खड़ी थीं – जबकि अनिल तनिक मुस्कुराया भी था।
डिलहोरी तवी पूरी धुनी रूई के बादलों से भरी थी। ना जाने किस चतुर शिल्पी हाथ ने एक अजब करतब कर दिखाया था। नदी पूरी की पूरी नदारद। अनिल ने ऑल्टीट्यूड घटाया और वह हैलीकॉप्टर को नीचे ले आया ताकि बादलों के जिस्मों में छिपे झरोखों से कुछ ताक-झांक कर सके और जमीन के साथ अपनी पहचान को बरकरार बनाए रख्खे।
अनिल का चेहरा अब शांत था। वह पूर्ण रूप से अपने ज्ञान को केन्द्रीभूत कर हैलीकॉप्टर को दिशा दे रहा था। नीची उड़ान भरने के तमाम निहित खतरों का वह मन ही मन पाठ सा कर रहा था। बिजली के तारों में अगर रोटर का बलेड उलझ गया तो – हैलीकॉप्टर विल गो फॉर ए टॉस। उसी तरह ऊँचे-ऊँचे पेड़ .. नुकीले हिमश्रंग और .. बादलों का सामीप्य। कितने ही खतरे एकजुट हो अनिल के सम्मुख खिलखिलाकर हँस पड़े थे।
खतरों से खेलने का अनिल का ये पहला अवसर न था। वह हाल ही में कई चमत्कार जैसे करतब दिखा चुका था। युद्व के दौरान दुश्मन की एक पूरी आर्टिलरी की यूनिट को बरबाद करने का श्रेय उसे मिला था और साथ ही वीर चक्र भी। वैसे भी उसे याद आ रहा था कि किस प्रकार उसने कई बार शर्त लगा कर हैलीकॉप्टर को घामरी बराज के पुल के नीचे से गुजारकर दिखाया था। पहाड़ की चोटियों पर बने इन हथेली जैसे हैलीपैडों पर वह हैलीकॉप्टर को चुपचाप कबूतर की तरह ला बिठाता था।
लैकिन आज तो जमीन ही गायब होती चली जा रही थी। बरबस ही उसे आज एलटीट्यूड गेन करना पड़ रहा था। दिशा का मात्र ज्ञान भर रह गया था .. पहचान गायब। .. सब का सब गायब।
“व्हॉट इज हैपनिंग माई डियर बॉय।” कमांडर शमशेर सिंह ने पूछा था। अनिल की कठिनाइयों से वो भी अनभिज्ञ न थे, “बैड वैदर .. आई सपोज ..।”
“इसे मौसम का कोप कहें तो ज्यादा सही लगेगा सर।” अनिल की आवाज में एक उलाहना उग आया था, “एक चुनौती बनता चला जा रहा है मौसम ..।” उसने जैसे अबकी बार खुद से ही कहा था।
“लौट चलते, लेकिन .. बब्बर हमारे इंतजार में होगा .. और ..।” कमांडर शमशेर सिंह कोई सही निर्णय ना कर पा रहे थे।
“सर, मैं पूरी पूरी कोशिश कर रहा हूँ।” अनिल ने उन्हें आश्वस्थ किया, “वो देखिये। पहचानिये ये गिगरी गली ..।” अनिल का चेहरा अचानक ही एक चमक से भर गया था। वह अपने सही गंतव्य की दिशा में उड़ रहा था।
गली पार करने के बाद उसने गुमनाम की घाटी में झांका। भूरे झबरीले कुत्तों से बादल इधर उधर भाग दौड़ सी कर रहे थे। लुका-छुपी का उनका कोई खेल जैसा चल रहा था। अनिल को लगा आज प्रकृती उसे छकाने में लगी थी। जरूर कोई उसकी निगाहों के सामने भ्रम भरता जा रहा है। माया का कोई क्रम किसी विशेष धटना की ओर उसे लिये जा रहा है।
अनिल शांत था। एक अच्छे विमानचालक की तमाम खूबियों का पाठ सा किया उसने। धीरज धरो ..! उसका अन्तरमन बार बार कह कर उसे साध रहा था। अनिल ने अचानक बादलों के झरोखों से देखा – हैलीपैड! हैलीपैड पर उसके उतरने की तमाम तैयारियॉं हो चुकी थीं। वह झट से नीचे आया। एक ही झोंके में वह बादलों के नीचे उड़ रहा था। कमांडर शमशेर ने देखा – नीचे उनके तमाम आगत-स्वागत की तैयारियॉं हो चुकी हैं। स्टेज बना हुआ है। सब लोग उसे सुनने को बैठे हैं। एक चहल-पहल है ..। अनिल के चेहरे पर एक हर्ष भरा था। कमांडर शमशेर की आंखों में अनिल के लिए फिर से एक इज्जत उभर आई थी।
हैलीकॉप्टर थमते ही एक दौड़-भाग भर गई। कमांडर शमशेर तुरंत नीचे उतर एक फासले पर खड़े ऑफीसरों की ओर बढ़े। बादलों की दौड़-भाग से सूरज की किरणें जलती बुझती रौशनी जैसी लग रही थी। लग रहा था कि कोई विशेष दृष्य मंचित होने को है।
सामने आ खड़े हुए ऑफिसरों ने सैल्यूट दागा और आगवानी में जुट से गये। अचानक कमांडर शमशेर सिंह को शक हुआ। उनमें राज बब्बर नहीं है। वो लोग अपने नहीं है। अपने दुश्मन हैं।
अजीब सा एक इत्तिफाक था।
उन्हीं पलों में अनिल को भी होश लौटा। एक सर्द आह छोड़ कर उसने स्वयं से कहा – ‘भयंकर भूल हो चुकी है। कमांडर अब दुश्मनों के हाथों में हैं ..। अब ..?’
वह लपक कर अपनी पायलट की सीट पर जा बैठा। मन से कहा – कर स्टार्ट .. और भर उड़ान! भाग! पूरी फुरती से उपर उठा ले चल हैलीकॉप्टर को ..। लेकिन कैसे ..? कमांडर को छोड़ कर यों भाग जाना ..। अपनी जान बचाने के लिये यों कमांडर को दुश्मनों के बीच छोड़ कर जाना ..। क्या ये कायरता नहीं कहलायेगी ..? क्या ये विश्वासघात नहीं होगा? एक सैनिक अपने ही कमांडर के साथ क्या विश्वासघात करेगा ..? तो ..?
बगल वाली सीट पर कमांडर शमशेर सिंह का चश्मा पड़ा था। अनिल के मन में आया कि चश्मा देने के बहाने कमांडर को बुलाने जाये .. और चुपचाप उनके कान में कहे – ‘लौटो, भागते हैं।’ लेकिन नहीं ..। भूल सुधारने के लिये इतना वक्त कहॉं बचा था ..। भ्रम का सफल हुआ क्रम आज उनपर खुल कर हँस रहा था। “हो गया घमंड चूर .. मेरे बॉंके चालक ..?” जैसे कोई अदृश्य स्वर अनिल को चिढ़ाने लगा था।
‘क्या करे ..?’ अनिल ने दृष्टी दौड़ाई। बाएं को कमांडर की सुरक्षा के लिये मशीन गन लगी हुई थी। क्रैश हैलमेट पहने दो मटमैले रंग की परछाइयां मशीन गन के पीछे बैठी थीं। अनिल ने निर्णय लिया – अगर कमांडर नहीं लौटते .. पकड़े जाते हैं तो वह छलांग लगायेगा। उन दौनों को हताहत कर मशीन गन संभालेगा, गोलियॉं बरसाएगा ..। लड़ेगा – अंतिम सांस तक।
अच्छा तो यही होगा कि हम दोनों पकड़े जाने से पहले मारे ही जायें। मौत जैसे अनिल की मुठ्ठी में आ बैठी थी। उसने अंतिम निर्णय ले लिया था – मरने या मारने का।
लेकिन तभी कमांडर शमशेर सिंह तेजी से मुड़े। सूरज की किरणों ने उनकी पींठ को दहका सा दिया। वह चश्मा लेने के बहाने भाग से रहे थे। अनिल तैयार था, उसने एक काक दृष्टी से अपने हैलीकॉप्टर के तमाम गेजों को देखा और मुठ्ठियों में जॉयस्टिक को भरे वह गजब के उत्साह से भर गया।
कमांंडर शमशेर सिंह हैलीकॉप्टर से लटक से गये। अनिल ने फर्राटे से हैलीकॉप्टर को एक उछाल सी देकर उड़ा दिया था।
नीचे कोई बावेला जैसा मच गया। न जाने कैसे उन दो मटमैली परछाइयों ने मशीनगन का मुँह उठते हैलीकॉप्टर की ओर साध गोलियों की बौछार की। एक घातक मशीनगन का ब्रस्ट हैलीकॉप्टर की कोमल काया को भेदकर भाग गया। अनिल को पता ही न लगा। लेकिन कई गोलियां अनिल के बदन में जा छिदी थीं। वह बुरी तरह घायल हो गया था, लेकिन .. अब वह बहुत उपर उठा लाया था हैलीकॉप्टर को। तेजी से गति पकड़ वह भाग निकला था .. बिना किसी दिशा देश की परवाह किये।
घनघनाता मशीनगन का शोर पीछे घाटी में छूट गया था। हैलीकॉप्टर का रोटर उपर मधूमख्खियों की तरह भनभना रहा था।
“यू आर हिट अनिल!” कमांडर शमशेर सिंह ने अनिल के घायल शरीर से बहते रक्त को देख चीख जैसी मारी, “आह गॉड! यू आर बैडली ब्लीडिंग।” उन्होंने आह भरी।
अनिल हैलीकॉप्टर को उड़ाता ही रहा .. मार्ग पहचान कर एक सही दिशा में उड़ान भरता रहा। उसने अपने होंठ भींच लिये थे। मानों वेदना के तिरस्कार में वह कराहना ना चाह रहा हो। यन्त्रवत बहते खून को राकने के लिये कमांडर शमशेर सिंह उसी हालत में अनिल के घावों पर अपना रूमाल, कमीज की फाड़ी कत्तरें .. बनियान और जो भी उनके हाथ लगा बॉंधते रहे थे।
“हैलो! इट इज विक्टर टू वन ..” अनिल ने कठिनाई से रेडियो पर सूचना दी, “वी आर बैक ..।” उसने सांस साध कर कहा, “आई एम बैडली वून्डिड ..।” कहते कहते अनिल उसांस सी भूल गया।
हैलीकॉप्टर सही सलामत नीचे उतर आया। एमबूलैंस भागी। अनिल की सेफ्टी बैल्ट खोल उसे बाहर खींच सा लिया। वह पीला पड़ चुका था, लेकिन उसकी ऑंखों में अब भी वीरता के भाव थे। एक चमकती गर्व की चिंगारी अब भी ऑंखों में सुलग रही थी।
“अनिल ..!” कमांडर शमशेर सिंह का गला रूँध सा गया था।
अनिल उनके सामने खड़ा था। उसे आज दूसरी बार वीरचक्र मिला था।
“जब तक तुम जैसे भारत के रणबॉंकुरे हैं तब तक शिकस्त का सामना नहीं करना होगा।” उन्होंने झांक कर अनिल की ऑंखों में देखा, “अब कैसे हैं तुम्हारे घाव ..?”
“सर, घाव तो उसी दिन भर गये थे, जब आपने अपनी कमीज फाडकर मुझे पट्टियॉं बॉंधी थीं”। अनिल ने मुस्कुराकर कहा।
एक हास्य का चक्रवात हैलीकॉप्टर की तरह उड़ा और भाग गया।
(मेला में प्रकाशित)