ब्रज का कान्हां ……!!
भीड़ क्यों इकट्ठी हो रही है ….? अरे, रे ..! क्या हुआ …! हुआ क्या …जो अवलाओं के हाथों में लाठियां हैं …? आँखों में क्रोध …..नहीं , नहीं रोष ….नहीं,नहीं …आक्रोश …..अरे , नहीं यार ! प्रेम-प्रीत के सागर उमड़ते लग रहे हैं ….
"चोर पकड़ा है !" चर्चा है . "भाग गया था …बहुत पहले . झांसा देकर गया था ….कि …मैं ……"
"अपराध ….?" प्रश्न उठे हैं . "कुछ चुराया भी तो होगा ….?"
"जी, हाँ ! हमारे चीर चुरा कर …ये कदम पे चढ़ गया था !" उत्तर आता है . "हम कुंड में नहा रहे थे . मौज मना रहे थे . वो हमारा नित्य -कर्म था- इसनान …करना ! हम स्वेच्छाचारी …गोपियाँ ….निर्वसन …हो …कुंड में इसनान किया करती थीं ! ये हमारा सुरक्षित और गुप्त स्थान था . न जाने कैसे इस ने सेंध लगाईं …? न जाने कब और कैसे …चुपके से आया ….और हमारे अंग-वस्त्र उठा कर …कदम पे जा चढ़ा …!"
"फिर ……?"
"फिर ….? हम तो अपनी इसनान-क्रीडा में मस्त थे ! हमें किसी का क्या डर था ….! हम तो अपना 'लोग-लुगाई' का खेल खेल रहे थे ! अचानक इस ने बांसुरी की तान छेड़ दी ! अरे, दैया ….! हम सब दंग …!! मधुर बोल थे बांसुरी के ….पर कैसा भय था …इस का …? फिर हमने सोचा – बजाने दो इसे बांसुरी ….! हमारा क्या लेगा …? लेकिन चंदा बोली – रे, भेना …! चीर चला गया ….!!"
"क्या …..?" थर-थर कांपने लगीं थीं …हम …!
ले गया था सब के चीर . जा चढ़ा था – कदम के ऊपर …! अब मस्त तान छेड़ दी थी …बांसुरी की …हमें ….सुनाने के लिए !
हम्मारी आँखों में आँसू थे . हम भयभीत थे . बांसुरी थमी तो हमने कातर स्वरों में भीख मांगी ….कहा – गलती हुई , कान्हा ! देदो …हमारे चीर ….!
"जल से बाहर आओ ….!!"
"लो …..!!"
"और बाहर आओ ….!!"
"और नहीं, कन्हेयाँ ….! हम मर जाएंगी , सांवरे ….! हम कान पकडती हैं ….अब कभी भी …हम …" वचन भरे थे – हमने …तव इस ने हमें मुक्त किया था !!
"फिर ….?"
"फिर भाग गया द्वारका …! सारे कौल-करार…तोड़े , इस ने ….! आया ही नहीं . आज हत्थे चढ़ा है ….!! इस की लठ …मार …मार कर ….आज काया में …भुस भर देंगीं ….!! मारो री छोरियों ….लट्ठ …! दे …लट्ठ …दे लट्ठ ….!!
बरसाने में स्याम आजु होरी , रे …..!!
संगीत बजने लगा था ! रसिया गाने लगे थे ….
कौन के हाथ कमूरा सोहे …तौ …कौन के हाथ कमोरी रे ….
बरसाने में स्याम आजु होरी रे …..
लट्ठ चल रहे थे . रसिया अपना तन बचाने के लिए हर विफल प्रयत्न कर रहे थे !
बरसाने में श्याम आजु …होरी रे …
राधा के हाथ कमूरा सोहे …..तौ …कान्हां के हाथ कमोरी रे ……..
बरसाने……में …..
……………
श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!