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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बत्तीस

Hemchandra Vikramaditya

फतेहाबाद के उजाड़ में कवायदें करते शाही सैनिक और उनके विशाल कौशल से लगा था जैसे ये लोग फतह का जश्न मना रहे थे .. जीत गये थे जंग और अब चहूँ दिक प्रसन्नता की उमंगों की हिलोरें थीं ..

मर्दाना को काफी समय लगा था – उस दुर्गम जंगल को पार करने में! छोटी-छोटी घाटियां और वादियां जैसे लुका छुपी का खेल खेल रही हों ऐसा लगता था। अचानक ही हेमू को एक ध्वस्त किला सा कुछ नजर आया था। यही था शायद फतेहाबाद जो कभी गुले-गुलजार था और किसी से भी कभी फतह नहीं हुआ था।

किला तो अब जैसे अपनी उम्र ही गंवा बैठा था – पर रौनक तो थी .. आस-पास खूब रौनक थी! मर्दाना को आया देख लोग भी इकट्ठे हो आये थे!

पीर मुनीर का विधिवत आगत-स्वागत हुआ था। उनके लिए नियुक्त आवास में उन्हें ठहराया गया था। हेमू के लिए भी उनके साथ में ही बंदोबस्त था। और .. और सामने ही था कादिर का ..

“दोस्त!” कादिर की ही आवाज थी। वह बाहें पसारे हेमू को बुला रहा था!

दोनों की निगाहें मिली थीं!

फिर दोनों दोस्त बाहें पसार-पसार कर मिले थे। दोनों हंस रहे थे। दोनों प्रसन्न थे। दोनों एक दूसरे को नई निगाहों से देख रहे थे। और जमा लोग भी उन दोनों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। दोनों ही एक युवा शक्ति का सम्मेलन जैसा लग रहे थे!

“अकेला ही आया होगा?” कादिर पूछ रहा था। “नीलोफर कल ही गई है!” उसने सूचना दी थी। “शाही जनानखाना यहीं था!” कादिर बताता ही जा रहा था। “शहजादे साहब शिकार पर गये हैं!” कादिर ने महत्वपूर्ण सूचना दी थी। “मिलोगे तो दिल खुश हो जाएगा!” वह हंसा था। “सच में ही इस आदमी में शहंशाहों जैसा कुछ है!” कादिर ने जलालुद्दीन की प्रशंसा की थी। “इब्राहीम की तरह यह आदमी ..” कादिर कुछ बताते बताते रुक गया था।

“तुम्हारा कैसा चल रहा है?” हेमू ने मुस्करा कर पूछा था।

“मस्ती है!” दोनों हाथ हवा में फेंक कर कादिर ने कहा था। “हजार सैनिकों पर हजारी हक है! नरवान किले पर मैं ही कब्जा करूंगा!” सगर्व कहा था कादिर ने। “मैंने हॉं भर ली है!” उसका ऐलान था। हेमू को चुप होते देख सहसा वह संभल गया था। “देखेगा मर्दों का रंग राग?” कादिर ने विषयान्तर किया था। “आ मिलाता हूँ तुझे अपने जांबाज से!” कादिर हेमू को हाथ पकड़ कर खींचता ही ले गया था।

“हकीक, मुरीद और ये है सईद!” कादिर अपने प्रशिक्षित ओहदेदारों से हेमू को मिला रहा था। “ये तीनों तीन तीन मोर्चों को संभालते हैं! और जब हम हमला करते हैं तो दुश्मन पर कयामत की तरह टूटते हैं! तीरों की वर्षा होती है .. एक आंधी जैसी उठ खड़ी होती है! दुश्मन अंधा हो जाता है .. फिर भागता है और हम ..” हंस रहा था कादिर!

“इसके अलावा भी और कुछ ..?” हेमू ने अलग से प्रश्न पूछ लिया था।

“हॉं हॉं! हैं न! हमारे पास गिलोलें भी हैं! किले में भीतर मार करने के लिए .. पत्थर बरसाने के लिए .. और बारूद में बाण बांध कर किले के भीतर कयामत ला देते हैं ..”

“बारूद!” अचानक हेमू को अब्दुल याद हो आया था। “ये क्या बवाल है भाई?” हेमू पूछ बैठा था।

“बवाल नहीं, बहुत बड़ी बला है! बहुत बड़ी बला! ठिकाने पर पहुँच जाए एक बार फिर तो ..” कादिर बताता रहा था। “चल दिखाता हूँ तुझे!” वह हेमू को लेकर चल पड़ा था। “ये देख हमारा गिलोलखाना!” कादिर बताने लगा था। “सब तैयार है! नरवान किले पर हमला बोलने की देर है बस!”

“तोप भी कुछ है?” हेमू पूछ रहा था। “क्या है तोप?”

“सुना तो है जनाब!” एक सैनिक बताने लगा था। “लेकिन अभी तक कहते हैं तुर्कों के पास है!” उसने सूचना दी थी। “ये भी बारूद से ही चलती है!”

हेमू सोचने लगा था कि अब्दुल की बताई संभावना – तोप कहीं शरीर पा चुकी थी। संभावनाएं भी सोच के साथ-साथ ही चलती हैं और समय आते ही शरीर धारण कर लेती हैं – तोप की तरह! कादिर के धनुर्धर भी हेमू को एक संभावना का ही नाम जैसे लगे थे। वक्त आने पर ये संभावना क्या रूप लेगी वह अभी अनुमान न लगा पा रहा था!

“आप तो बादशाह की खिदमत में हैं न ..?” गिलोल मास्टर पूछ रहा था।

“जी, जी हॉं!” हेमू ने एक अलग ही अदब के साथ उत्तर दिया था।

कादिर के जैसे कान खड़े हो गये थे। उसे अचानक ही एहसास हुआ लगा था कि हेमू की पद प्रतिष्ठा उससे कहीं कई गुना बड़ी थी। हेमू को अब नाम से तो सब जानते थे .. केवल वक्त ही था जब हेमू ..

कादिर बुझ सा गया था!

“सलाम बजा लाता हूँ .. सिपहसालारों की ..!” एक अजनबी सा आदमी अचानक उन दोनों के सामने आ खड़ा हुआ था। “बंदे को अल्लाउद्दीन शेरवानी कहते हैं!” उसने अपना परिचय दिया था। “आपकी खिदमत में हाजिर होने का हुक्म हुआ तो चला आया!” वह हंस रहा था।

हेमू और कादिर दोनों इस आदमी को गौर से देख रहे थे। उसके आधे खुले बाल कंधों तक झूल रहे थे। छोटी-छोटी मूंछें होंठों को बखूबी ढांपे थीं और काली काली आंखों में अजब गजब की खुशियां तैर रही थीं। कद काठ भी अच्छा था। पहनी पोशाक भी उसकी पेशानी पर जम रही थी!

“पहले तो कभी नहीं देखा, तुम्हें ..?” कादिर ने प्रश्न पूछा था।

“ग्वालियर घराने से हैं जनाब!” शेरवानी बता रहा था। “कलाकार हैं! हुक्म हुआ है कि आपके स्वागत में आज रात हम अपना हुनर पेश करें!” वह फिर से मुस्कराया था। अब की बार उसने हेमू को लक्ष्य करके कहा था। “शहजादे जलालुद्दीन ने .. आपके स्वागत में ..”

“गवइए हो?” कादिर ने तनिक मुंह ऐंठ कर पूछा था। अब तक का उन दोनों का भ्रम जाता रहा था।

“ग्वालियर घराने से हो ..?” हेमू का प्रश्न था। “तब तो तुम महाराजा मान सिंह से मिलते रहे होगे?” हेमू पूछ रहा था।

“और .. मृग नयनी को भी .. जरूर देखा होगा?” कादिर मुसकुराया था। “बहुत सेना है कि ..”

कई सारे प्रश्नों के नीचे दबा शेरवानी घबराया न था। शायद उसे इस तरह के प्रसंगों की उम्मीद रहती होगी! उसने उन दोनों युवकों को बड़े ही सम्मान की दृष्टि से देखा था। फिर बड़े ही संयत स्वर में बताने लगा था।

“महाराजा मान सिंह तो महा मानव थे!” शेरवानी की आवाज असरदार थी। “उनकी मौत तो .. पूरे राजपूत समाज के लिए एक कलंक है!” दर्द था शेरवानी की आवाज में। “जातिवाद के जहर ने उनकी जान ले ली!”

“कैसे?” हेमू पूछ बैठा था।

“राजपूतों को उनका गुजरी रानी मृग नयनी के साथ किया विवाह बुरा लगा था। जबकि उनका अभिप्राय था – जाति प्रथा को समाप्त करना! कुछ ईर्ष्यालु राजपूतों ने षड्यंत्र रच कर उन दोनों श्रेष्ठ कलाकाराें की हत्या की!” दर्द था शेरवानी के दिल में। “कैसा जुर्म किया?” हाथ झाड़े थे शेरवानी ने।

“आपने तो शिरकत की होगी – मृगनयनी के साथ?” कादिर ने शरारती स्वर में पूछा था।

“आप इसे छोटी बात मान रहे हैं, जनाब!” शेरवानी ने कादिर को सीधा संबोधित किया था। “मैं आपको बताता हूँ कि .. जब महाराजा के साथ बैठकर मृगनयनी ध्रुपद में आलाप उठाती थीं तो लगता था सूरज निकल आया हो और जब उनका स्वर गूँजता था – कान्हा ..कान्हा ..! आनंद विभोर हुए श्रोता झूम जाते थे!” अब शेरवानी ने उन दोनों को पलट कर देखा था। “तानसेन और बैजू बावरा की चोट का गाते थे दोनों!” शेरवानी ने जोर देकर कहा था।

“कैसी थी मृगनयनी ..?” जिज्ञासा वश हेमू भी पूछ बैठा था।

“बेजोड़ सुंदरी और श्रेष्ठ वीरांगना!” शेरवानी ने संक्षेप में बताया था। “साथ लड़ती थीं महाराजा के ..!”

“और एक आप हैं ..!” कादिर ने व्यंग पूर्वक हेमू को लक्ष्य किया था। “अकेले अकेले बेगम को छोड़कर?” कादिर ने हेमू की आंखों में देखा था। “मैं होता तो घोड़े पर बिठा कर कभी का भाग जाता और .. और ..” अब सब लोग एक साथ हंस रहे थे!

लेकिन लौट आये एकांत में केसर शिद्दत के साथ सताने लगी थी हेमू को!

मन के घाेड़े पर बैठा हेमू भी अब केसर को भगा कर लिए जा रहा था। कादिर के धनुर्धरों ने जब उन्हें घेरा था तो उनके तीरों से बचने के लिए हेमू केसर को लेकर रेत के विस्तारों में लुढ़क गया था! और केसर ..?

फिर हेमू ने देखा था कि वह आंचल में मुंह ढांपे हंस रही है!

मेजर कृपाल वर्मा

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