बाबर को कोई नहीं चाहता था।
बाबर का आगमन पूरे भारतवर्ष ने एक अपशकुन की तरह देखा था। कौन था जिसे तैमूर याद न था। या कि तैमूर के कारनामे भूला कौन था? या कभी भुलाए जा सकते थे – उसके किये करतब! और अगर बाबर अब आ गया था तो वही सब होना था जो तैमूर ने किया था! और सबसे बड़ी मुसीबत ये थी कि बाबर लौट कर काबुल नहीं जा रहा था।
अफगानों के साथ तो लोगों का हेल मेल हो चुका था। सब किसी तरह मिल जुल कर रहने लगे थे। हिन्दुओं को साथ लेकर अफगान चलने लगे थे। लेकिन अगर बाबर आ गया था और छा गया था तो हिन्दुओं की ही नहीं अफगानों की भी खैर नहीं थी!
अत: दिल्ली और मेवाड़ ने मिल कर बाबर को देश निकाला देने की बात तय कर दी थी।
एक मत बना था – जनमत बना था और सब ने समवेत स्वर में बाबर जैसी बुराई को हिन्दुस्तान के पार काबुल तक खदेड़ना था और ये सुनिश्चित करना था कि ये मुगल फिर न लौटें इधर। इन्हें कोई चाहता नहीं था – यहां! इनका नाम आते ही लोगों की निगाहों के सामने तैमूर द्वारा किये जुल्म उठ बैठते थे!
“हैवान हैं – ये लोग!” आम राय थी लोगों की। “तैमूर ने तो अबलाओं को भी नहीं छोड़ा था। स्त्रियों को घोड़ों के सामने नंगा खड़ा कर कैसे कैसे जुल्म ढाये थे? और मृत सैनिकों की खोपड़ियों से मीनार बना कर जश्न मनाया था – तैमूर ने। और फिर दिल्ली का सर्वनाश करके ही लौटा था वह!”
“बाबर तैमूर से भी चार कदम आगे है!” लोगों की राय थी।
“अकेले अकेले नहीं, राणा साहब के साथ मिलकर लड़ते हैं!” खान जादा मेवाती का सुझाव था। “जालिम है! हम से सब कुछ छीन लेगा!” उन्होंने अपना डर बताया था। “और अगर हम सब मिल गये तो ही इसे खदेड़ बाहर करेंगे!”
“पानीपत में हम इब्राहिम की वजह से हारे!” महमूद लोधी कहने लगा था। “अगर वह अपना हाथी न रोक लेता तो हेमू तो पार हो गया था।” वह बताने लगा था। “सच मानिए! मुझे भी बहुत बुरा लगा था जब ..” महमूद लोधी का गला भर आया था। “बाबर कांप उठा था! तब अगर हमारे हाथी तोपों पर चढ़ जाते तो उसके पास बचा क्या था?” महमूद ने सभी जमा राजपूतों और अफगानों को एक साथ देखा था। “आप लोधियों की शिकायत कर रहे हैं!” उसने राणा सांगा को एक बार फिर देखा था। “मेरी राय है कि हम हेमू को हाथियों का हमला करने के लिए फिर से कहें और बाबर की गरजती तोपों का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दें!”
एक चुप्पी लौटी थी। हर कोई राणा सांगा को देख रहा था। सब जानते थे कि अब समय राणा सांगा के साथ खड़ा था।
“नहीं!” राणा सांगा एक लम्बी सोच के बाद बोले थे। “इस जंग को मैं स्वयं लड़ूंगा।” उनका ऐलान था। “राजपूतों के साथ घोड़ों की कुंडली मिलती है! हाथी – जैसे कि पानीपत में हुआ चोट खाने के बाद अपनों को ही खाने मारने लगते हैं! जबकि घोड़े जान देकर भी मालिक के लिए ही दुआएं मांगते हैं! वफादारी ..” राणा ने आंख उठा कर सभी जमा लोगों को देखा था।
“हेमू को एक और मौका देने में हर्ज क्या है राणा साहब?” सिलहादी ने पूछा था। “मैंने तो हेमू को बल्लभगढ़ फतह करते देखा है! बाबर को वही मात दे सकता है ..”
“तो फिर मैं नहीं लड़ूंगा!” दो टूक उत्तर था राणा सांगा का। “कोई जानता भी है कि कहां है हेमू?” उनका अगला प्रश्न था।
हेमू लापता था ये सब जानते थे।
“जनाब!” मशविरा करते बाबर के सिपहसालारों में से तारदी बेग उठ खड़ा हुआ था। “राजपूतों का रिसाला कयामत की कोई खास बनाई चीज लगता है!” वह बताने लगा था। “बयाना में उन्हें मैंने वार करते देखा है!” उसने अपना अनुभव बताया था। “पल छिन में छा गये थे! हमें होश ही न आने दिया और ..”
“अब हम उन्हें होश नहीं आने देंगे, तारदी बेग!” हंस कर बाबर ने कहा था। लेकिन बाबर भी इस सच्चाई को जानता था। “हो सकता है कि फिर से हेमू के हाथी ..?” बाबर के मुंह से आज निकल ही गया था हेमू का नाम।
“वो तो लापता है, सुलतान!” अली कुली ने सहर्ष सूचना दी थी। “हो सकता है .. वह ..” हंस गया था अली कुली।
“सब लोग मेरे साथ खनवा चलेंगे!” बाबर का आदेश था। “जमीन पर खड़े होकर देखेंगे – दुश्मन को और तब मशविरे को समझेंगे!” बाबर का ऐलान था।
बाबर के पास खबर पहुंच गई थी कि इस बार पानीपत से भी ज्यादा सेना होगी और राजपूतों तथा अफगानों का कोप भाजन बना बाबर शायद ही फतह का मुंह देखेगा!
बाबर भी कहीं बहुत डरा हुआ था!
आगरा में फतेहपुर सीकरी के पास बसे खनवा – एक गांव को बाबर ने युद्ध के मैदान के रूप में चुना था। खनवा के आसपास की जमीन और जंगल टूटा फूटा और ऊबड़ खाबड़ था जो बाबर को बहुत भा गया था। उसने तोपों को लगाने के ठिकाने के दोनों ओर गहरी खाइयां खुदवा दी थीं ताकि अगर हाथियों का हमला हो तो वो उसे पार न कर सकें! बैल गाड़ियों को लोहे की जंजीरों से बंधवा कर और तीरंदाजों को जंगल में छुपा कर छोड़ दिया था। स्वयं ने तुर्की रिसाले का एक बड़ा दस्ता अपने पास रख लिया था ताकि जहां भी हार हो वह मदद के लिए पहुंचे ओर मोर्चा संभाल दे! बाबर जानता था कि इस बार का मुकाबला मात्र तुगलमा और सांकेतिक चालों से नहीं जीता जा सकता था! और न ही तोपें ..
“नामुमकिन है इस बार की जीत!” अचानक बाबर के पास भाग कर एक व्यक्ति आया था। “मैं .. सिलहादी!” उसने अपना परिचय दिया था। “इनाम बोलें तो ..?” वह मुसकरा रहा था।
“दिल्ली दी!” बाबर ने बिन सोचे समझे ऐलान कर दिया था। उसे अल्लाह ने रहम करके सिलहादी दिया था। “आप बादशाह होंगे दिल्ली के!” बाबर हंसा था।
“आप का इशारा पाते ही मैं ..” कह कर सिलहादी गायब हो गया था।
लेकिन राणा सांगा ने बाबर की तोपों की परवाह किये बिना ही सामरिक तैयारियां की थीं। राजपूत ओर अफगानों की एक अजेय सेना लेकर बाबर पर बाज की तरह टूट पड़ना चाहते थे राणा और घंटों में समेट देना चाहते थे बाबर को! उनके पास दो लाख से ऊपर सैनिक थे। अफगान और राजपूत अबकी बार एक अजेय सेना के रूप में सामने आ रहे थे!
“राणा सांगा ने कभी आपको याद नहीं किया, आप सा?” केसर ने यूं ही प्रश्न पूछा था।
“बाबर की तरह उन्हें भी डर है मुझसे!” हंसा था हेमू। “आ बैल मुझे मार! राणा क्यों चाहेंगे कि ..?” हेमू ने कुछ सोच कर कहा था। “हिन्दू हारते ही इसलिए हैं केसर!” हेमू टीस आया था!
की पूरी तैयारियों ने भी आज बाबर को फतह पाने के लिए आश्वस्त नहीं किया था। उसे विगत में हुई अपनी एक एक हार याद हो आई थी। और तभी उसने अपना अंतिम हथियार इस बार फिर इस्तेमाल किया था।
“तोड़ दो ये शराब की बोतलें – दोस्तों!” बाबर अपने सिपहसालारों को हुक्म दे रहा था। “हम खुदा के बंदे हैं ..! हम यहां जिहाद को जन्म देने आये हैं!” उसने अपनी धारदार आवाज में कहा था। “इस बार अल्लाह का हुक्म है कि हम कुर्बान हो जायें – हम इस्लाम की बहबूदी के लिए जान पर खेल जाएं!” वह कहता जा रहा था। “सोचो! अगर हमारी हार हुई तो हम जाएंगे कहां? हमें तो अब जहन्नुम में भी जगह नहीं मिलेगी!” उसने ठहर कर अपने जमा साथियों को देखा था। “और दोस्तों! हम जीते तो मेरा वायदा है .. ये हिन्दुस्तान की जागीर तुम्हारी होगी .. तुम्हारी होगी ये जन्नत! दिल भर कर लूटना .. मन भर कर ऐश करना .. जागीरें बनाना – मैं तुम्हें न रोकूंगा!” उसने हाथ उठा कर वायदा किया था!
बाबर के सेनापतियों के मन एक पैशाचिक उल्लास से लबालब भर आये थे! लेकिन राजपूत और अफगान एक दूसरे की मदद में शामिल तो थे और शामिल नहीं भी थे! दोनों अपने गुप्त इरादों के साथ जंग में उतरे थे!
जंग जुड़ी थी तो एक तूफान खड़ा हो गया था!
बाबर की दहाड़ती तोपों ने दिगंत को हिला दिया था! लेकिन बाजों की तरह मुगलों पर टूटते राजपूत और अफगान तन मन से बाबर की फौज पर चढ़ बैठे थे। कहर ढाती तोपों और तीरों की वर्षा करते तुर्की तीरंदाजों ने लाशों पर लाश बिछा दी थीं। लेकिन राजपूत ओर अफगान एक के बाद दूसरा हमला कर रहे थे, जान की बाजी लगा रहे थे और बाबर को लगा था कि उसकी सामरिक चतुराइयां राजपूतों के अदम्य साहस के सामने बेकार हो गई थीं। घमासान युद्ध चल रहा था। दौड़ता भागता बाबर भी बेदम हो गया था। अब तय था कि बाबर अब हारा कि जब हारा!
तभी बाबर ने – मरता क्या न करता के अंदाज में सिलहादी को याद किया था। सिलहादी भी मौका माकूल पाकर द्रवित हो उठा था। दिल्ली का तख्त और ताज उसे अपने हाथ आ गया लगा था। बाबर का इशारा पाते ही वह अपने छह हजार सैनिक लेकर बाबर की ओर आ मिला था!
ये था – सबसे बड़ा विश्वास घात का खंजर जो विजय के करीब खड़े राणा के सीने में आ छिदा था! युद्ध बंद सा हो गया था। राणा दौड़ भाग कर किसी तरह फिर से सेना को संगठित करने में लग गये थे। और तभी उनको एक गोली ने आहत कर दिया था। राणा बेहोश हो गये थे। राजपूतों ने उन्हें सुरक्षा में ले लिया था। झाला ने युद्ध का संचालन किया था लेकिन बेशुमार कुर्बानियां देने के बाद भी बात बिगड़ ही गई थी!
हारकर भागते राजपूतों और अफगानों का बाबर ने पीछा नहीं किया था!
बाबर ने जीत का जश्न हिन्दुओं की कटी खोपड़ियों से बनी मीनार बना कर तैमूर की तरह ही मनाया था!
“मेरा इनाम बादशाह ..?” आग्रही स्वरों में सिलहादी ने याद दिलाया था बाबर को।
“अरे हॉं!” बाबर हंसा था। “उस्ताद अली कुली!” बाबर ने आवाज देकर अली कुली को बुलाया था। “इस गद्दार का सर कलम कर दो!” बाबर का आदेश था। “मैं कभी गद्दार नहीं पालूंगा!” उसने शपथ ली थी।
“गद्दारों को तो हम भी नहीं पालेंगे केसर!” हेमू ने भी केसर से वायदा किया था।
मेजर कृपाल वर्मा