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हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग तिरेसठ

Hemchandra Vikramaditya

बाबर ने पंजाब पर तीसरी बार हमला कर दिया था।

पहले भी बाबर सन 1519 और 1522 में पंजाब पर हमला कर चुका था। तब पंजाब की लूट पाट कर वह लौट गया था – दोनों बार! लेकिन अब सन 1524 का यह हमला संदिग्ध निगाहों से देखा जा रहा था। अभी तक बाबर का मंतव्य पता न लगा था। वह चाहता क्या था – कोई नहीं जानता था। लेकिन हॉं उसकी बढ़ती कीर्ति से अब सब आतंकित अवश्य हो उठे थे।

होती हलचल के बारे में हेमू ने गौर से सुना था।

पंजाब प्रांत एक बारगी हेमू की आंखों के सामने पसर गया था। कितना वैभव था – पंजाब का? वैदिक काल का सप्त सिंधु कहलाने वाला ये प्रांत प्रकृति ने जैसे विशेष रूप से बनाया था! पंजाब के मैदान, बहती नदियां और उपजाऊ डेल्टा भगवान का दिया एक वरदान जैसा लगता था। हेमू को तो पंजाब देश का दरवाजा जैसा लगा था जिसे खोलकर ही कोई आक्रमण कारी भारत में घुस सकता था! और उसी दरवाजे को दिल्ली में बैठा ये इब्राहिम लोधी खोलकर क्यों बैठा था?

“रामायण और महाभारत काल में हमारा हिन्दू साम्राज्य काबुल और कांघार तक था! इस्लाम तो हमारे देश में पीछे के चोर रास्ते से चुपचाप छल कपट और धोखाधड़ी के बल पर घुसा है!” हेमू अचानक गुरु जी की आवाजें सुन रहा था।

“और अब पूरे देश की नस नस में इस्लाम व्याप्त है!” हेमू स्वयं से कह रहा था। “बाबर आ रहा था। अफगान जा रहे थे तो मुगल आ रहे थे! नत्था सिंह हो या बुद्धा सिंह फर्क कहां था?”

अंधकार था! दरवाजा खुला था! देश खुला था और व्यवस्था चौपट थी! हिन्दू मानसिक तौर पर गुलाम बनते जा रहे थे और इस्लाम ..

“फौरन ही फौज भेजी जाये!” पंजाब से हरकारा आया था। “बाबर ने चढ़ाई कर दी है!” सूचना थी। “पूरे दल बल से आ रहा है बाबर। हमसे अकेले अकेले न संभलेगा!” साफ लिखा था।

सुलतान इब्राहिम लोधी को मति भ्रम हुआ लगा था!

जिसका उसे डर था वही होने लगा था। बाबर – जिसे वो बार बार टाल रहा था, कमजोर कह रहा था, भूल जाना चाहता था अबकी बार फिर उसकी छाती पर आ चढ़ा था! वह जानता था कि पंजाब को बचाने के लालच में वह दिल्ली दे बैठेगा! वह जानता था कि राजपूतों के साथ दो लड़ाइयां लड़ने के बाद उसमें बहुत कम दम बचा था!

इब्राहिम लोधी ने अपने आस पास को आंखें उठा कर देखा था!

पंजाब लुट रहा था लेकिन दिल्ली को कुछ न मिल रहा था! बंगाल ने भी बगावत कर दी थी और वहां से भी कुछ न आ रहा था। दक्खिन का रास्ता तो पहले ही बंद हो चुका था। पुर्तगालियों के आने के बाद अरब सागर अरबों के हाथ से जाता रहा था। अरबी घोड़े अब आ कहां रहे थे? बंगाल – जहां से सूरा पूरा माल आता था अब सूखा पड़ा था। और काबुल का रास्ता बाबर रोक कर बैठ गया था! अफगानों का तो अब आना जाना भी बंद हो गया था!

जिस आगरा में बैठ कर वह अपने आप को सुरक्षित समझने लगा था आज घोर असुरक्षित हो उठा था!

“हेमू को भेजो पंजाब के मोर्चे पर!” इब्राहिम लोधी के दिमाग में उल्लास की एक लहर दौड़ गई थी। “चाहे बाबर मरे या हेमू उसका क्या जाएगा?” सुलतान का चेहरा खिल उठा था। “एक ओर एक दो होंगे तो जीत अवश्य होगी!” वह यह भी जानता था। “और हेमू तो अवश्य ही कुछ कर दिखाएगा!” उसका मन मान रहा था।

“पंजाब को लेकर बैठ जाएगा! फिर काबुल को छीन लेगा! और फिर दिल्ली रह कितनी दूर जाएगी? राजपूत उसे सहारा दे गये तो .. पार कर जाएगा हिन्दुस्तान!” उसका अंतर बोल उठा था। “और फिर हिन्दुओं से मेल मिलाप रखने में न तो खुरासान खुश था और न हीं अखिल विश्व अरब खलीफा संगठन!” सुलतान को सब कुछ याद हो आया था।

“अपना मरना जीना क्यों नहीं देखते सुलतान?” फिर से उसका दिमाग बोला था।

“हेमू वफादार है – गद्दार नहीं! हिन्दू दगा नहीं देते!”

“चचा जानी कौन कम जहरीले नाग हैं जो मैं इन्हें जिलाऊं?” अब सुलतान लोधी का क्रोध उमड़ आया था। “एक बार मिट जाने देता हूँ – इन गद्दारों को!” उसने निर्णय ले लिया था।

सुलतान इब्राहिम लोधी जानता था कि बाबर पंजाब को लूट कर लौट जाएगा! उसका इतना बड़ा कलेजा नहीं है कि वो दिल्ली पर चढ़ बैठे? लेकिन अब वह बाबर को भूलना भी नहीं चाहता था। लाहौर को चचा जानी से लेकर बेशक हेमू के हवाले कर देगा – उसने सोच लिया था!

उधर राजपूत भी पंजाब को अकेले अकेले लड़ते देख रहे थे!

बाबर भी खुश था! उसका मन चाहा जो हो रहा था!

उदास निराश लाहौर के शासकों की आंखों में निराशा ही निराशा भरी थी!

मांगने के बाद भी दिल्ली से कोई मदद न पहुंची थी। और न ही महाराणा सांगा ने ही कोई खबर या सेना न भेजी थी। अब लाहौर अकेला निहत्था ही जैसे शेर के सामने बकरे की तरह भेंट स्वरूप डाल दिया गया था!

“लड़ेंगे आलम!” दौलत खान ने उन सब की हिम्मत बंधाई थी और होंसला अफजाई की थी। “हमें लड़ना आता है और मरना मारना भी हम जानते हैं! हम अफगान हैं .. हमारा बाबर ..” वह कुछ यूं ही कहते रहे थे। लेकिन उन्हें सुन कोई न रहा था!

“मैं छापे मार का खेल खेलूंगा!” तातार खान कहने लगा था। “मेरे घुड़ सवारों को आप देखना ताया जी कि किस तरह बाबर को नाच नचाते हैं!”

लेकिन तातार खां की ओर किसी ने ध्यान तक न दिया था!

“अबकी बार हम बाबर को काबुल से ही खदेड़ देते हैं!” आलम खान कह रहे थे। “मेरा इरादा है कि हम काबुल को कब्जे में ले लें और ..”

“और फिर तो दिल्ली और फिर ..” दौलत खां ने आलम खां के इरादों का जमा जोड़ किया था। वह जानता था कि आलम खां भी इब्राहिम की तरह सब सटक जाएगा और ..

सब कुछ अपने लिए ही ले लेने की अफगानों की आदत बन चुकी थी। उनके बीच चलते गृह कलह का मूल भी यही था। बांट कर खाना उन्होंने बंद कर दिया था। जबकि बहलोल लोधी ने सब को हिस्सों से भी कहीं ज्यादा दिया था और तमाम अफगानों की सहमति से ही सल्तनत कायम की थी!

बाबर के सामने भी मुसीबतों के पहाड़ खड़े थे!

समरकंद और फरगना को हार कर वह जान बचा कर भागा था और खाली पड़ी काबुल की कुर्सी पर आ बैठा था। यहां आकर उसने सेना का फिर से गठन किया था और भारत की ओर आंख उठा कर देखा था। उसे एक सपना सच हो गया लगा था। पर उस सपने तक पहुंचना अभी शेष पड़ा था!

“समरकंद लौट कर क्या करेंगे?” बाबर अपने घर लौटने की जिद पर अड़े सैनिक सरदारों को समझा रहा था। “खाली हाथ लौटेंगे तो लोग क्या कहेंगे दोस्तों? गिरे को कौन उठाता है? मरे पर तो कोई कफन तक नहीं डालता! लेकिन अगर हम बादशाह बन जाते हैं तब हमें पूरा जहान सलाम करेगा!” वह हंसा था। “चलो, लड़ते हैं और शहंशाह बनते हैं!” बाबर ने फिर अपनी लिखी कविताएं उन्हें सुनाई थीं और उनका मनोबल बुलंद किया था।

और फिर तो पंजाब की जुझारू सेनाओं पर बाबर के सैनिक गिद्धों की तरह टूटे थे और चीर-फाड़ करने लगे थे। बाबर ने अपने सैनिकों को मंगोल और तुर्कों के तरीकों से हुनर सिखाए थे। और यही कारण था कि लाहौर की सेना को उन्होंने मुठ्ठी में भर लिया था, चारों ओर से घेर लिया था और फिर तुगलमा और अरेबा का इस्तेमाल कर तहस नहस कर डाला था। बाबर के घुड़ सवारों ने जब तीर बरसाए थे तो लाहौरियों के लिए ये नए थे! पहली बार उन्हें अहसास हुआ था कि बाबर ने कुछ नया हासिल कर लिया था!

जैसे तैमूर और चंगेज खां भारत पर साथ साथ आक्रमण कर रहे थे – ऐसा लगा था! और इन्होंने अपनी मिली जुली रण नीति से फिर एक बार कहर ढा दिए थे!

“क्या चाहिये?” बंदी बने अफगान सरदारों से बाबर पूछ रहा था।

“जनाब! हमें तो इब्राहिम ने भी हमारा हक नहीं दिया .. और ..” दौलत खां बोले थे। “मेरे बेटे दिलावर को भी कैद में डाल दिया था। वह भाग आया वरना तो ..” वो रोने रोने को थे।

“मैं तो उसका चचा हूँ जनाब!” आलम खां भी बोल पड़े थे। “लेकिन .. लेकिन मेरी भरे दरबार में जो उसने बेइज्जती की वो इब्राहिम ..”

बाबर तनिक मुसकुराया था!

“पंजाब – तुम तीनों का!” एक गहरे सोच के बाद बाबर बोला था। “हमने दिया – तुम तीनों को – बराबर बराबर!” बाबर ने घोषणा की थी।

अब तो लाहौर में जश्न मना था। उल्लास की लहरें पूरे पंजाब पर छा गई थीं। पहली बार ही इतिहास में कोई इस तरह की घटना घटी थी।

बाबर के नाम के साथ जैसे चार चांद और आ जुड़े थे! बाबर के सैनिक भी अब उसे शहंशाह मान बैठे थे और वो मान बैठे थे कि बाबर को कोई भी परास्त न कर पाएगा! वह मान गये थे कि बाबर स्वयं मन प्राण से लड़ता था और सैनिकों के सुख दुख में साझी रहता था!

लौट गया था बाबर इस बार भी!

मेजर कृपाल वर्मा

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